पवन नेताम ‘श्रीबासु’ की गज़ल

गज़ल
खुद के अंदर अब इंसान कहा रखतें है।
इंसानियत के वो ईमान कहां रखतें है।
वृद्धाश्रम मे रोते छोड़ आते है माँ-बाप,
अब घरो मे पुराना समान कहा रखतें है।
फिजूल की वाहवाही रखती है दुनिया,
अब सच्चाई की जुबान कहाँ रखतें है।
अच्छे दिन का इंतजार कितनो को है,
अच्छे संस्कार का ज्ञान कहाँ रखतें है।
आजकल कितने मकां बनते है शहर मे,
प्रेम वाली वो रोशनदान कहाँ रखते है।
उम्र गुजर गई इस शहर मे बसर करतें,
सफेद बालो की पहचान कहाँ रखतें है।
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पवन नेताम ‘श्रीबासु’
सिल्हाटी, कबीरधाम (छ.ग.)
संपर्क – 08770679568
E-mail- pawannetam7@gmail.com
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