एन टी पी सी कोरबा की मदद से महिलाएं “स्वरोजगार से आत्मनिर्भर” बन रहीं

कोरबा 7 फरवरी। देश स्वतंत्रता के समय से ही सभी ने यही चाहा है की देश सभी क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो, उस सपने को साकार करने के लिए एनटीपीसी कोरबा द्वारा नैगम सामाजिक दायित्व के अंतर्गत मिशन आजीविका प्रोग्राम के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर होने का गुर सिखाया जा रहा है, इसके अंतर्गत ग्रामीण महिलाओं को स्वरोजगार प्रदान करने के उद्देश्य से कम लागत से बनने वाले ओएस्टर मुशरूम की खेती करने का प्रशिक्षण दिया गया। एन टी पी सी के सहयोगी ग्राम धनरास, सलिहाभाठा एवं घमोटा के 12 महिला स्व सहायक समूह को प्रशिक्षण प्रदान किया गया है। इन समूह में लगभग 120 महिला सदस्य हैं। महिलाओं को ट्रेनिंग देने के लिए एनटीपीसी द्वारा श्रुष्ठि फ़ाउंडेशन के माध्यम से तकनीकी सहायता प्रदान की गई। उस ट्रेनिंग का उपयोग कर के महिलाओं द्वारा गाँव मैं भरपूर मात्रा में मिलनेवाले पैरा की उपयोग से कम पैसों की लागत एवं कम मेहनत से मुशरूम उत्पादन किया जा रहा है। इस मशरूम की स्थानीय बाज़ार में बहुत अच्छी मांग है, स्वादिष्ट एवं पौष्ठिकता से भरपूर यह मुशरूम सभी वर्ग के लोगों के लिए एक बहुत अच्छी खाद्य सामाग्री है।

ग्रामीण क्षेत्र में बहुत आसानी से मिलने वाले पैरा को छोटे छोटे काट कर फिर इसको पानी में दवाई मिलाकर कटे हुए पैरा को भिगोकर इसका उपचार किया जाता है। वाद मैं इसको पानी से अलग करके सही मात्र में नमी रखने के लिए भीगे हुए पैरा को सुखाया जाता है। पानी सुख जाने के वाद उस पैरा को पालिथीन में मुशरूम बीज डाल कर पैक किया जाता है, और उस पैक को अंधेरे कमरे मे कुछ दिनो तक रखा जाता है ताकि मुशरूम की बीज पैरा के साथ मिलकर मुशरूम बन सके। पोलिथीन पैक को 22 दिनों के वाद खोल दिया जाता है, 22 दिनों से लेकर 45 दिनों तक मुशरूम की पैदावार की जाती है। मुशरूम की एक बेड बनाने के लिए 37 से 40 रुपये की लागत आती है, एक बेड से 1 किलो मुशरूम पैदा होता है, जिसकी बाजार भाव 120 रूपये प्रति किलो है। जिस से महिलाओं को 1 बेड से कम से कम 80 रुपये की कमाई हो जाती है। मुशरूम कई प्रजाति के होते है अतः ऋतु चक्र के अनुशार अलग-अलग ऋतु में अलग-अलग प्रकार के मुशरूम पैदा किया जा सकता है।

एनटीपीसी कोरबा द्वारा ग्राम धनरास, सलिहाभाठा एवं घमोटा में 12 स्व-सहायक समूह को प्रशिक्षण प्रदान किया गया है जिस में लगभग 120 महिलाएँ जुडी हुई है। घर के काम काज के बाद बचे हुए समय में घर की चार दीवारों के अंदर ही मुशरूम की खेती कर के महिलाएँ आत्मनिर्भर होने के साथ साथ घर का गुजारा भी करने में सक्षम बने है। इस उपलब्धि पर श्रीमती सरस्वती कंवर, सचिव, महालक्ष्मी, स्व-सहायता समूह एवं श्रीमती उमवाती कायांतर, सचिव, चंडी, स्व-सहायता समूह, ग्राम-धनरास का कहना है एनटीपीसी की प्रयास से आज वो लोग समय का सही उपयोग कर के आत्मनिर्भर बनने में सक्षम हुए है।

इस पहल से जहां पैरा का सही उपयोग कर पर्यावरण को साफ सुथरा रखने का नया प्रयोग हो रहा है वही ग्रामीण महिलाएँ आत्मनिर्भर बन रही है।

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