आदिवासी शक्तिपीठ में बड़े धूमधाम से करम पर्व मनाया गया

कोरबा 06 अक्टूबर। विश्व के प्रथम आदिवासी शक्तिपीठ में बड़े धूमधाम से करम पर्व मनाया गया.यह पर्व प्रकृति-संस्कृति का जीवन दर्शन है. करम पर्व कर्म परिश्रम और भाग्य को इंगित करता है. मनुष्य नियमित रूप से अच्छे कर्म करे और भाग्य भी उसका साथ दे, इसी कामना के साथ करम देवता की पूजा की पूरे आदिवासी समाज के द्वारा की जाती है. यह पर्व भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है. करम देवता की पूजा-अर्चना और प्रसाद ग्रहण के बाद रात भर करम देवता के चारों ओर घूम-घूम कर करमा नृत्य किया जाता है. महिलाएं गोल घेरे में शृंखला बनाकर नृत्य करती हैं और उनके मध्य में पुरुष परंपरागत वाद्य यंत्र बजाते है।

आदिवासी शक्तिपीठ में अनुष्ठान करवा रहे बैगा संतराम धनवार ने बताया कि कलमी वृक्ष आदिवासी समुदाय के लिए आराध्य वृक्ष हैं. वृक्ष की पूजा होती है,आदिवासी समुदाय अपने आराध्यों को प्रकृति में ही देखता है. इसके पीछे एक पुरानी मान्यता है जो अनादि काल चली आ रही है. वही परंपरा आज भी हम मना रहे हैं और पूरे विधि विधान से अपने करम देव की पूजा कर रहें है। आदिवासी शक्तिपीठ के उपाध्यक्ष निर्मल सिंह राज ने इस पर्व के बारे में बताया की आदिवासी समुदाय मूलत प्रकृति पूजक है. समाज द्वारा जो भी अनुष्ठान किए जाते हैं उसमें प्रकृति को सहेजने और प्रकृति द्वारा दी गई चीजों के लिए उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते है. इस करम डाल की पूजा के पीछे बहुत ही अच्छा कारण भी है. आपके कर्मों से ही आपको फल मिलता है. बीज बोने पर ही पौधा से वृक्ष बनता है और हमारी जरूरत का अनुरूप उसका उपयोग किया जाता है. लेकिन आदिवासी समाज ने समय बचाने और प्रकृति को सहेजने के लिए अनादि काल में ही वृक्ष की टहनी को काटकर लगाना शुरू कर दिया था, इसके फल स्वरूप उन्हें वृक्षों से जल्दी वन उपज मिलने लगे और समय की बचत के वृक्षों की संख्या भी बढ़ती गई. यही वजह है कि आज इस रूप में कलमी वृक्ष के टहनी को पूजा करने के बाद बिना हथियार के काटकर लाया जाता है. और उसे एक स्थान पर गाड़ दिया जाता है. समाज की महिलाएं पुरुष रात भर इस टहनी के आसपास पारंपरिक कर्म नृत्य करते हैं.रात भर पूरी आस्था और विश्वास के साथ पूजा करने गाड़ी गई टहनी के जड़ निकल आते है.धनवार समाज से आए पवन कुमार सिंह ने लोकल 18 को बतया की विश्व का सबसे पहले आदिवासी शक्तिपीठ कोरबा में स्थित है जहां आज बड़े ही धूमधाम से आदिवासी समाज के सभी लोग अपनी परंपरागत पर्व को मना रहे हैं।

इस शक्तिपीठ में 33 जनजातीयों के इष्ट देवी-देवता विराजमान है. और सभी 33 जनजातियों द्वारा मिलकर यहां आयोजन किया जाता है जिससे कि समाज में एक जूता का परिचय देखने को मिलता है.पूजा की विधियों को देखें, तो उससे भी करम डाल की महिमा का पता चलता है. पूजा के दिन करम वृक्ष लाने के लिए पूरी श्रद्धा से युवा जाते हैं. करम की उस डाल पर जिसे पूजा के लिए लाना होता है, चावल की घुंडी से चिन्हित करते हैं. उसपर सिंदूर के तीन टीके लगाये जाते हैं. नये धागे को लपेटा जाता है.करम की डालियों को काटने से पहले उसे प्रणाम करते हैं. और फिर डाली को काटकर उसे सम्मान के साथ पूजा स्थल पर लाया जाता है. पूजा स्थल पर परिक्रमा के बाद डाल को जमीन पर स्थापित किया जाता है. बैगा पूजा सामग्रियों के साथ पानी, कच्चा धागा, सिंदूर, धुवन और आग की जांच करते हैं और फिर पूजा शुरू होती है. इसके बाद रात भर करम देव की सेवा की जाती है.

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