सियासी जंग में दोहराई जाएगी महाभारत की पटकथा
न्यूज एक्शन। सियासत के खेल में जोड़ तोड़ की राजनीति तो चल रही है और आगामी विधानसभा चुनाव में महाभारत युद्ध की तरह राजनेता किरदार में नजर आ रहे है। चुनावी युद्ध का शंखनाद होने के पहले चतुरंगी सेना तैयार की जा रही है, लेकिन सेना की चाह में कृष्ण को भूल बैठे है। छत्तीसगढ़ की राजनीति में कृष्ण की भूमिका में अभी भी जकांछ के सुप्रीमो अजीत जोगी को सर्वश्रेष्ठ माना जा रहा है। इसका कारण यह है कि जनता के बीच नेता के रूप में उनका एक अपना अलग जनाधार है। जबकि प्रदेश कांग्रेस के नेताओं में ऐसा कोई नहीं है जो अपने दम पर पांच विधानसभा में जीत का परचम फहरा सके।
कोरबा जिला राजनीति का केन्द्र बिंदु बना हुआ है। इसका कारण यह है कि गोडवाना गणतंत्र पार्टी का जन्म कोरबा जिले में हुआ है और इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष हीरा सिंह मरकाम की कर्म भूमि है। वहीं बसपा कभी डीएस फोर के नाम से कोरबा जिले में काफी सक्रिय रही है और स्व. कांशी राम ने चुनावी राजनीति का सूत्रपात जांजगीर लोकसभा से किया था। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ की राजनीति में कोरबा का अपना एक अलग महत्व है। कोरबा लोकसभा क्षेत्र में मरवाही विधानसभा क्षेत्र शामिल है। जो अजीत जोगी की कर्म भूमि है। जोगी परिवार के लिए मरवाही विधानसभा कर्म एवं धर्म भूमि दोनों ही मानी जा सकती है। वर्तमान में छत्तीसगढ़ की सत्ता में काबिज भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए कांग्रेस प्रयास कर रही है और इस प्रयास में वह छोटे दलो का साथ भी चाहती है। ऐसी स्थिति में गोंगपा बसपा, सपा और कम्युनिस्टो से गठबंधन करना चाहती है लेकिन कृष्ण से दूरी बनाएं रखना चाहती है। जिस तरह से महाभारत में भीष्म पितामाह ने धृतराष्ट्र से कहा था युद्ध मत होने दो लेकिन धृतराष्ट्र पुत्र मोह में युद्ध को रोक नहीं पाए और एक बड़ी विनाश लीला हो गई। पाडंव तो अमर हो गए लेकिन कौरवों का कुल नाश हेा गया। यहीं स्थिति विधानसभा चुनाव के पहले भाजपा को हराने के लिए छत्तीसगढ़ में चतुरंगी सेना तैयार करने का जिम्मा कांग्रेस के एक नेता को सौंपा गया है। कांग्रेस के उक्त नेता अपने दत्तक पुत्र के कहे अनुसार कार्य कर रहे है और धृतराष्ट्र की भूमिका में आ गए है। भाजपा सरकार के खिलाफ जनता के आक्रोश को भुनाने के लिए गठबंधन तो करने की कोशिश कर रहे है लेकिन ऐसे लोगों के पास जा रहे है जो खुद कांग्रेस की वैशाखी सहारे अपनी वैतरणी पार करने की जुगत में है। क्योंकि आज की स्थिति में बसपा और गोंगपा के लिए अपने आप को छत्तीसगढ़ में जिंदा रखना ही बहुत बड़ी बात है। ऐसे लोगों का साथ कांग्रेस की चतुरंगी सेना की बजाए भाजपा के लिए मददगार बन जाएगी। हालांकि गोंगपा और बसपा का अलग-अलग क्षेत्रों में अपना वोट बैंक है लेकिन कभी भी छत्तीसगढ़ में इनकी संख्या दहाई तक नहीं पहुंच सकी है। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद गोंगपा का खाता नहीं खुला और बसपा दो से आगे विधानसभा में नहीं पहुंच सकी है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस को चाहिए कि वह कृष्ण की सेना की बजाए कृष्ण से ही समझौता कर लें तो वह उसके लिए राजनैतिक रूप से फायदा होगा। राजनैतिक गलियारों में चर्चा व्यापत है कि कांग्रेस के नेता अपने अहम और भावी सरकार बनाने के सपने के कारण किसी को भी कुछ नहीं समझ रहे है।
छत्तीसगढ़ की राजनीति में आज भी अजीत जोगी की प्रासंगिकता को नकारा नहीं जा सकता है और जनता का नेता उसी को कहा जाता है जो अपने नाम के दम पर भीड़ खींच सके और यह गुण अजीत जोगी में है। कांग्रेस के वर्तमान नेताओं में ऐसा कोई नहीं है जो अपने दम पर जनता को आकर्षित कर सके।