विशेष पिछड़ी जनजाति बिरहोर समाज की बिरस कुमारी की शिक्षिका के पद में सीधी नियुक्ति
कोरबा 06 जनवरी। पहाड़ी कोरवा और बिरहोर, जिन्हें आदिवासी वर्ग में सबसे अंतिम पंक्ति में माना जाता रहा है। वह यदि सामान्य ग्रामीण परिवेश का जीवन जीने लगे तो इसे बदलाव कह सकते हैं। लेकिन जब वे इससे भी आगे बढ़कर अपने और दूसरे समाज को शिक्षा के माध्यम से आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाने लगे तो यह बदलाव से कहीं और आगे की बात है। जी हां, कुछ पीढ़ियों पहले तक जिनकी पहचान, जंगल और पहाड़ के बीच रहने वाले और शिकार करने वालों के रूप में थी, उनकी ही नई पीढ़ी की बिरस कुमारी अब शिक्षिका बन गई हैं। अब ये समाज में शिक्षा की नई रोशनी बिखेरने को तैयार हैं।
जिले के पाली विकासखण्ड अंतर्गत आने वाले ग्राम पंचायय पोटापानी में बसने वाले विशेष पिछड़ी जनजाति परिवार की बिरस कुमारी द्वारा आने वाली पीढ़ी को शिक्षा ग्रहण कराने की यह चमकदार तस्वीर बिरहोर समाज के बदलाव को बयां करती है। बिरस का चयन सीधे शिक्षिका के रूप में हुआ है और 1 जनवरी से वह पोटापानी के प्राथमिक शाला पंडरीपानी में पढ़ने वाले बच्चों को शिक्षित करने में जुट गई है। विशेष पिछड़ी जनजाति की बिरस कुमारी को नौकरी मिलने से अब वह विकास की मुख्य धारा में शामिल होने के साथ समाज का नाम गौरवान्वित करने लगी है। पांच भाई- बहन में तीसरे नंबर की बिरस ने चर्चा के दौरान अपनी कहानी, अपनी जुबानी बताया कि पिता हीरासाय व मां सुनिबाई ने रोजी मजदूरी कर उसे उचित शिक्षा दिलवायी। जहां माखनपुर हाईस्कूल में 12वी की परीक्षा गत 2015 में उत्तीर्ण कर ली थी। गरीबी के कारण आगे की पढ़ाई नही हो पायी। बचपन से एक ही इच्छा रही कि शिक्षिका बन आगे की पीढ़ी को शिक्षित करूँ और विशेष पिछड़ी जनजातियों के उत्थान और विकास हेतु शासन की योजनाओं में मुझे आज शिक्षिका की नौकरी मिली। शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जो जीवन मे परिवर्तन लाता है। शिक्षा ही आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करती है। मैंने विपरीत परिस्थिति में पढ़ाई लिखाई की और आज समाज के साथ ग्राम को गौरव महसूस हो रहा है। बिरस अब प्रभारी प्रधान पाठक लक्ष्मी प्रसाद साहू के मार्गदर्शन में कक्षा पहली से तीसरी तक के बच्चों को शिक्षा प्रदान कर रही है। यह सरकार के प्रयास और स्वयं की जीजीविषा का ही परिणाम है कि पाली विकासखण्ड के एक छोटे से गांव की इस अति विशिष्ट पिछड़ी कही जाने वाली बिरहोर जनजाति परिवार की बिरस कुमारी को सीधी भर्ती के माध्यम से सरकारी नौकरी दी गई है।
बता दें कि राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाली विशेष संरक्षित जनजाति बिरहोर व पहाड़ी कोरवा परिवार लगभग पांच दशकों से गुमनामी का जीवन जी रहे थे। प्रदेश सरकार ने उनके जीवन स्तर में सुधार के लिए उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में पहल शुरू की और मैदानी क्षेत्र में उन्हें लाने प्रयास जारी रहा। लंबे अंतराल में एक अच्छी पहल यह रही कि कुछ परिवार में शिक्षा को लेकर जागरूकता आने लगी और इसके सार्थक परिणाम भी आने लगे। जिसके तहत आज बिरहोर परिवार की पुत्री बिरस की नियुक्ति शिक्षिका के रूप में हुई है। ग्राम की सरपंच श्रीमती पुष्पा मरकाम सहित परिवारजन व ग्रामीणों ने बिरस को शुभकामनाएं देते हुए उसके उज्जवल भविष्य की कामना की है।