बेरोजगारों को रोजगार नहीं दे सकी अंत्यावसायी, दुकानें खंडहर में तब्दील
कोरबा 12 सितंबर। बेरोजगारों को रोजगार दिलाने के लिए कोरबा-बाल्को मार्ग में निर्मित अंत्यावसायी की दुकानें पांच साल बाद भी शुरू नहीं हुई। जिन लोगों को दुकानें आवंटित की गई है। उन्होंने सार्वजनिक स्थल से दुकान दूर होने का हवाला देकर संचालन में असमर्थता जता दी है। विभाग की ओर से फिर से आवंटन प्रक्रिया शुरू नहीं किए जाने के कारण दुकानें खंडहर में तब्दील हो रही हैं।
सरकारी धन का किस तरह से दुरुपयोग होता है इसका नजारा अंत्यावसायी विभाग की निर्मित दुकान में देखा जा सकता है। कलेक्टोरेट से चंद दूरी पर अंत्यावसायी विभाग ने वर्ष 2013 में एक करोड़ दो लाख की लागत से छह दुकान का निर्माण कराया है। जिन्हें दुकानें सौंपी गई थी उन्होंने दुकान सार्वजनिक स्थल से दूर होने का हवाला देते हुए संचालन में असमर्थता जता दी थी। विभाग से यह दुकानें अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित है। दुकान स्थल में आगे बने गड्ढे को अब तक नहीं पाटा गया। दुकान पहुंचने के लिए पहुंच मार्ग भी नहीं है। संचालन की दृष्टि से दुकान के लिए आवश्यक सुविधाएं व्यस्थित नहीं होने के कारण व्यवसाय शुरू किया जाना संभव नहीं हो रहा है। विभाग से मोटर व्हीकल, दुकान संचालन, कृषि व्यवसाय आदि के लिए ऋण स्वीकृत कराने की योजना संचालित है। विभाग की योजनाओं का संचालन भगवान भरोसे है। बहरहाल विभाग से निर्मित दुकानें आदिवासी व अनुसूचित जाति वर्ग के युवा बेरोजगारों को दिया जाना है। जानकारी के अनुसार कुछ दुकानों का आवंटन हो चुका है। जिसके संचालन से अब हितग्राहियों ने हाथ खड़ा कर लिया है। दुकान के सामने घास उग आए हैं। दुकानों में लगे शटर जंग लने से अब गिरने की कगार में आ गए हैं। दुकान तक पहुंच मार्ग का भी निर्माण नहीं किया गया है। ऐसे में दुकान अब तक शुरू नहीं हो सकी है।
उल्लेखनीय है कि विभाग से संचालित विभिन्न योजनाओं में हितग्राहियों के पास 17 करोड़ का ऋ ण बकाया है। बीते वित्तीय वर्ष में ऋ ण वितरण के विरुद्ध 23 लाख की वसूली हुई थी। दुकान बनने के बाद विभाग में तीन अधिकारी बदल चुके हैं। विभाग में पदस्थ होने वाले अधिकारी केवल ऋण वसूली में ही उलझ कर रह जाते हैं। यही कारण है कि विभाग की अन्य योजनाओं का सही क्रियान्वयन नहीं हो रहा। जिला पंचायत में होने वाली सामान्य सभा अथवा उद्योग प्रबंधन समिति की बैठक में कई माह से अंत्यावसायी विभाग की समीक्षा नहीं की गई है। विभाग के माध्यम से संचालित योजनाओं के लिए सब्सिडी राशि के बाद ऋण उपलब्ध कराने में भी बैंक पीछे हैं। ऋण प्रदान के बाद वसूली में विभाग का सहयोग नहीं होने से ग्रामीण बेरोजगारों को ऋण के लिए बैंक का चक्कर काटना पड़ रहा है।