गांव में नहीं है स्कूल इसलिए यहां के 68 बच्चों ने शिक्षा से बनाई दूरी, मिनीमाता बांगो बांध के विस्थापितों का दर्द नहीं सुन रहा कोई

कोरबा 17 अगस्त। छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में एक गांव ऐसा भी है जहां पाठशाला नहीं है और इसी वजह से गांव के नौनिहालों ने शिक्षा से दूरी बना ली है। इस गांव में 0 से 14 वर्ष उम्र के कुल 77 बच्चे हैं जिनमें से केवल 9 बच्चे ही शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। शेष बच्चों ने पाठशाला की दहलीज पर भी कभी कदम नहीं रखा है।

आज जब देश आजादी का अमृत महोत्सव में खुशी से झूम रहा है, तब कोरबा जिला का यह गांव शिक्षा के अमृत से कोसों दूर है। जिले के पोंडी- उपरोड़ा विकास-खण्ड अंतर्गत गिद्धमूड़ी ग्राम पंचायत का खोटखोरी गांव, जिला मुख्यालय से करीब 90 किलोमीटर दूर है। इस गांव की कुल आबादी 562 है। इनमें 0 से 14 वर्ष आयु वर्ग के 77 बच्चे हैं। इनमें से केवल 09 बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। ये बच्चे भी खोटखोरी गांव से पढ़ने के लिए पाठशाला नहीं जाते, बल्कि अपने रिश्तेदारों के घर पर रहते हुए पढ़ाई कर रहे हैं।

ऐसा भी नहीं है कि इस गांव के बच्चे पढ़ना नहीं चाहते अथवा उनके अभिभावक उन्हें शिक्षा से दूर रखना चाहते हैं। बच्चे पढ़ना चाहते हैं और उनके परिजन भी उन्हें पढ़ाना चाहते हैं, लेकिन गांव में पाठशाला नहीं होने के कारण वे शिक्षा से वंचित हैं। दरअसल खोटखोरी गांव के निवासी लंबे समय से स्कूल की मांग कर रहे हैं। कलेक्टर कोरबा से लेकर क्षेत्र ( पाली तानाखार) के विधायक तक का भी ध्यान आकृष्ट कर चुके हैं। लेकिन उनकी गुहार अब तक नहीं सुनी गई है। इस गांव के ग्रामीण छोटे छोटे बच्चों का 5 किलोमीटर दूर ठीर्रीआमा के प्राथमिक शाला में नाम दर्ज करवाते हैं, परंतु जंगल, नाला और उबड़ खाबड़ रास्ता होने के साथ ही जंगली जानवरों के भय के कारण बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं। कुछ अवसरों पर बच्चों का सामना जंगली जानवरों से हो जाने की वजह से उनके अभिभावक भी बच्चों को पाठशाला भेजने से कतराने लगे हैं।

खोटखोरी गांव, जिले की महत्वाकांक्षी मिनीमाता हसदेव बांगो बांध से विस्थापित अनुसूचित जनजाति परिवारों का पुनर्वास गांव है। जंगल और पहाड़ियों में बसे इस गांव में जल संसाधन विभाग के माध्यम से पाठशाला संचालित की जा रही थी, परंतु वह पाठशाला गत तीन दशकों से बंद हो चुकी है। जब कभी भी विधानसभा या लोकसभा का चुनाव होता है, तब खोटखोरी प्राथमिक शाला भवन के नाम से पोलिंग बूथ बनाया जाता है। हालांकि पाठशाला भवन जर्जर हो चुका है। तीन दशक से इसमें पाठशाला का संचालन नहीं हो रहा है। परंतु पोलिंग बूथ बनाते समय इस पाठशाला को संचालित माना जाता है।

शिक्षा की रौशनी से वंचित इस गांव में ना तो चिकित्सा सुविधा है और न ही स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था। पिछले वर्ष कलेक्टर कोरबा से स्वच्छ पेयजल व्यस्था की मांग की गई थी। प्रशासन ने बोर कराने और पाइप लाइन के जरिये गांव में पेयजल आपूर्ति का आश्वासन भी दिया था, परन्तु आज तक आश्वासन पर अमल नहीं किया गया है। राज्य और देश के विकास के लिए अपनी पुरखों की जमीन से विस्थापन का दर्द सहकर जीवन यापन कर रहे वनवासी परिवार आजादी के 75 वर्ष बाद भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। जानकारों के अनुसार पुनर्वास नियमों के तहत जल संसाधन विभाग को इस गांव में शिक्षा, चिकित्सा, पेयजल, सड़क, बिजली और रोजगार की सुविधा उपलब्ध कराना चाहिए, मगर विभागीय अधिकारी इनकी खोज खबर लेना भी जरूरी नहीं समझते।

जनपद पंचायत पोंडी उपरोड़ा के सदस्य और संचार तथा संकर्म स्थायी समिति के सभापति बजरंग सिंह पैकरा गिद्धमूड़ी पंचायत के ही निवासी हैं। वे शासन प्रशासन को कई बार इस गांव की समस्याओं से अवगत करा चुके हैं। मगर उनकी आवाज भी नहीं सुनी जा रही है। उन्होंने जिला के प्रभारी और प्रदेश के शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम को भी यहां की समस्या की जानकारी देकर खोटखोरी में बंद कर दी गई प्राथमिक शाला को पुनः प्रारम्भ करने की मांग की है। बावजूद इसके खोटखोरी गांव की अभी तक सुध लेने की कोशिश किसी भी स्तर पर नजर नहीं आ रही है।

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