गाज से कनकी धाम में एशियन बिलस्टार्क की मौत
कोरबा 23 जून। कनकी धाम परिसर में दोपहर बारह बजे गाज गिरने से एशियन बिलस्टार्क की मौत हो र्गई। परिसर में तडि़त चालक लगाए जाने के बाद भी पक्षी असुरक्षित हैं। तीन दिन के भीतर यह दूसरी घटना है। इससे पहले भी करतला विकासखंड के ग्राम उड़ान भरते पक्षियों के जमीन पर गिरने से मौत की घटना सामने आ चुकी है।
जिले करतला विकासखंड के ग्राम कनकी में विदेशी एशियन बिल स्टार्क पक्षी का आगमन मई माह से शुरू हो चुकी है। 1000 से भी अधिक पक्षियों ने यहां शिव मंदिर परिसर में लगे पेड़ो में अपना डेरा जमा लिया है। पक्षियों को क्षेत्रवासी मानसून का संदेशा देने वाले देवदूत मानते हैं। अधिक संख्या में पक्षियों के आने और बेहतर मानसून की संभावना को लेकर ग्रामीणों में खुशियां देखी जा रही थी, पिछले तीन दिन के भीतर हुई घटना से उनमें निराशा देखी जा रही थी। तीन दिन पहले ग्राम रामपुर के पास पक्षी मृत अवस्था में पाए गए थे। ग्रमीणों का कहना कि इनकी संख्या 10 थी जबकि वनमंडला अधिकारी ने दो पक्षी के मरने की पुष्टि की है। बताना होगा कि जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर कनकी में प्रवासी पक्षी एशियन ओपन बिल स्टार्क का विगत कई वर्षों से हो रहा। पक्षियों के लिए अनुकूल वातावरण हो से वन विभाग ने कनकी सहित आसपास को को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया है। मंदिर के पुजारी पुरूषोत्तम यादव का कहना है कि मंदिर परिसर में तडि़त चालक सात साल पहले लगाया गया था। इसके रेंज को बढ़ाने की आवश्यकता है। वन विभाग की ओर मामले ध्यान नहीं दिए जाने के कारण पक्षी असुरक्षित हैं।
रामपुर में हुई पक्षी की मौत के बाद पशुधन विकास विभाग ने पोस्टमार्टम कराया था। जिसकी रिपोर्ट आ चुकी है। वन मंडलाधिकारी प्रियंका पांडेय ने बताया कि चिकित्सीय परीक्षण के अनुसार मृत पक्षियों में निमोनिया के लक्षण पाए गए है। पशुधन विकास विभाग के उपसंचालक एसपी सिंह ने बताया कि निमोनिया संक्रामक बीमारी नहीं है। ऐसे अन्य पक्षियों में फैलन का भय नहीं है। अधिकारी का यह भी कहना है कि कनकी में हुई पक्षी की मौत का कारण भी पोस्टमार्टम से स्पष्ट होगा। कारण जानने के बाद ही निवारण की दिशा काम किया जाएगा। कनकेश्वर शिव मंदिर के पुजारी पुरुषोत्तम यादव कर कहना है कि पक्षी यहां वंशवृद्धि के लिए आते हैं। जुलाई के अगस्त माह के बीच अंडे से चूजे निकल आते हैं। अक्टूबर नवंबर तक ये उड़ान भरने योग्य होने पर ये वापस चले जाते हैं। धान की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को भी ये नष्ट कर किसानों के लिए सहयोगी होते हैं।