छत्तीसगढ़: मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का आया “रिपोर्ट कार्ड”
रायपुर 29 मई। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी के एक समूह में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साढ़े तीन वर्ष के कार्यकाल को लेकर एक समीक्षा चर्चा में है। इसे मुख्यमंत्री बघेल का ” रिपोर्ट कार्ड” कहा जा रहा है। उक्त कथित ” रिपोर्ट कार्ड” यहां ज्यों का त्यों प्रस्तुत है-
सिर्फ विधायकों का रिपोर्ट कार्ड जारी करना नाइंसाफी है यदि उनके मुखिया का रिपोर्ट कार्ड जारी न किया जाए।
सत्ता शीर्ष द्वारा सत्ता पक्ष के विधायकों की स्थिति नाजुक बताना अपनी जिम्मेदारियों से बचने एक कवायद है।
मुखिया जी का साढ़े तीन वर्षों का रिपोर्ट कार्ड भी जरूरी है।
1 नवम्बर 2000 को अस्तित्व में आए देश के 26 वें राज्य को सामाजिक / राजनैतिक आधार पर मुख्यतः तीन भागों में बांटा जा सकता है :
1) उत्तरी भाग सरगुजा
2) दक्षिणी क्षेत्र बस्तर
3) मध्य मैदानी क्षेत्र
प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री हुए अजीत जोगी। प्रदेश को लेकर उनका विचार और कथन है :
“अमीर धरती गरीब लोग”
उनका यह कथन / विचार प्रथम दो जनजातीय बाहुल्य क्षेत्रों पर बिल्कुल फिट बैठता है। इन्हीं क्षेत्रों में कोयले और लोहे के प्रचुर भंडार हैं। प्रदेश की राजस्व आय में खनिजों का योगदान 27% है जिसमें 80% भागीदारी लोहे और कोयले की है। पूरे देश में लोहे और कोयले के उत्पादन में क्रमश 20 % और 18 % की भागीदारी इन्हीं दो क्षेत्रों से है। टिन उत्पादन में सत् प्रतिशत योगदान देने वाला दन्तेवाड़ा जिला स्वास्थ्य सूचकांक में सबसे निचले पायदान पर है।
मध्य मैदानी भाग कृषि प्रधान है यहाँ किसान बाकी भागों से अपेक्षाकृत संपन्न हैं। प्रदेश में सर्वाधिक शहरीकरण और तीसरा सबसे सिंचित जिला है दुर्ग। इसी जिले से आते हैं प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल।
विधानसभा चुनाव 2018 में मिले भारी बहुमत चार दावेदारों के बीच भारी कसमकस के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हुए भूपेश बघेल। हालांकि ये सर्वविदित है कि इस पद के लिए नव निर्वाचित विधायकों की पहली पसंद भूपेश बघेल न होकर टी एस सिंहदेव थे। लेकिन ढाई वर्ष के फार्मूले के तहत कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश की जिम्मेदारी भूपेश बघेल को सौंप दी।
भूपेश बघेल के कार्यकाल को लगभग साढ़े तीन वर्ष बीत चुके हैं वो आज पर्यंत पद पर बने हुए हैं इसे इनकी राजनैतिक सफलता माना जाए या धोखेबाजी ? लेकिन सच यही है कि विधायकों के समर्थन के साथ वो पद पर बने हुए हैं।
1) भूपेश सरकार की सबसे प्रमुख उपलब्धियों में शामिल है किसानो की कर्जमाफी। किसानों की कर्जमाफी उन्हें तत्कालिक राहत हो सकती है उनकी समस्याओं का स्थाई समाधान नहीं है। सरकार द्वारा कर्ज लेकर कर्ज माफ करना कर्ज लेकर घी पीने को चरितार्थ करता है। सिंचाई व्यवस्था के नाम पर भूपेश बघेल कुंआ पूजन करते देखे जाते हैं ये स्थिति तब है जब प्रदेश में जनजातीय क्षेत्रों में ऐसे किसान भी हैं जो सिर्फ एक फसल पर आश्रित हैं दक्षिणी छोर पर एक ऐसा जिला भी है जहाँ सिंचाई क्षमता शून्य है।
2 ) भूपेश सरकार की दूसरी बड़ी उपलब्धि आत्मानंद शासकीय अंग्रेजी विद्यालय हैं। दावा है कि ये शासकीय विद्यालय शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करते हैं जिसमें सरकार के लाडले शिक्षाकर्मियों को अध्यापन की अनुमति नहीं है। ये सरकार की स्विकारोक्ति है कि बाकी शासकीय विद्यालय गुणवत्ताविहीन हैं और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा अयोग्य शिक्षाकर्मियों के बूते की बात नहीं है। फिर भी शिक्षाकर्मी चूंकि वोट बैंक हैं इसलिए वो शासकीय सेवक हैं उन्हें पेंशन का लाभ है लेकिन आत्मानंद विद्यालय के कर्मी सिर्फ ठेका कर्मी हैं।
3 ) भूपेश बघेल को कांग्रेस हाई कमान द्वारा मुख्यमंत्री चुने जाने एक कारण ठीक 5 महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनावों में भूपेश बघेल को पार्टी का चेहरा बनाकर मैदानी भाग में बड़ी संख्या में लोगों को कांग्रेस के पक्ष में किया जाने की आकांक्षा भी थी। लेकिन मैदानी भाग से पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया आलम यहाँ तक रहा कि भूपेश बघेल के विधानसभा क्षेत्र से भी पार्टी भारी अंतर से पिछड़ गई।
4 ) भूपेश बघेल को उनकी पार्टी ने चुनावी राज्यों में बड़े चेहरे के तौर पर पेश किया। भूपेश बघेल अपनी टीम के साथ गोबर मॉडल का ढिंढोरा पीटते नजर आए। लेकिन असम से लेकर उत्तर प्रदेश तक पार्टी को भारी निराशाजनक परिणामों से रुबरु होना पड़ा।
5) भूपेश सरकार की योजनाओं का बहुउद्देशीय होना और उनका प्रचार उन्हें खास बनाता है। पशु कल्याण, कृषि, उद्यानिकी, सिंचाई, रोजगार जैसे विषय एक ही योजना में समाहित दिखते हैं। लेकिन धरातल पर ये योजनाएं कैसे मूर्त रूप लेंगी यह रहस्य है। जिसका परिणाम है कि योजनाएं कागजों पर हैं प्रचार प्रसार में हैं लेकिन धरातल पर फ्लॉप शो हैं।
6 ) भूपेश बघेल का दावा है कि गांव गांव शहर शहर में निर्मित शासकीय गोठान मिनी इंडस्ट्रियल पार्क हैं। उनसे लोगों को रोजगार मिल रहा है। इनसे बने उत्पाद विदेशों में निर्यात किए जा रहे हैं। उनका ये दावा सरासर झूठ है। गोठान खाली पड़े हुए हैं उनके एक कोने में गोबर रखा हुआ है । सड़कों से लेकर न्यायालय परिसर तक पशुओं का जमावड़ा गोठानों पर शासकीय निवेश और उपयोगिता पर सवाल खड़े करता है।
7 ) भूपेश बघेल को आधुनिकता से खासा परहेज जान पड़ता है। उनकी परिकल्पनाओं में 50 वर्ष पुराना छत्तीसगढ़ है। इनके कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धियों में है गोबर टेक्नोलॉजी का सृजन। वार्षिक बजट की पंच लाइन है गोमय वसते लक्ष्मी अर्थात भूपेश बघेल प्रदेश की संपन्नता सुख समृद्धि गोबर और गोमूत्र में खोजते हैं। गोबर खरीदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है। दावा है कि गोबर को गोठानों तक पहुंचाकर बड़े स्तर पर रोजगार का सृजन किया जा सकता है। योजना सरकार के लिए कितनी महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रदेश के मुखिया हर दूसरे हफ्ते अपने कार्यालय से पैसा हस्तांतरित करते देखे जाते हैं। ये योजना पशु कल्याण से संबंधित है या रोजगार मूलक है भूपेश बघेल समयानुसार इस पर अपना पैंतरा बदल देते हैं ।
8 ) भूपेश बघेल जिलों के विभाजन और नए जिलों के निर्माण में आतुर दिखाई देते हैं । इसका कारण वह स्थानीयता की कुंठित भावना है जो छोटे कस्बों में निवास करने वाले लोगों में पाई जाती है। आमजन जिले के नाम में अपने कस्बे का नाम देख फूला नहीं समाता। भूपेश बघेल अपनी चुनावी रणनीति में सरकार के सरकार के आर्थिक हितों को दरकिनार कर इसी भावना का इस्तेमाल करते हैं। यही कारण है कि नए जिलों के नाम रेलगाड़ियों के डिब्बों की तरह लंबे लंबे हैं । मरवाही उपचुनाव में शुरू हुआ यह सिलसिला खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा। यह स्थिति तब है जब राजधानी के शासकीय अस्पताल भारी दबाव में काम कर रहे हैं। सुविधाओं के अभाव में जिलों के अस्पताल बदहाल हैं।
9 ) भूपेश बघेल की कैबिनेट में सामूहिक जवाबदेही का आभाव स्पष्ट दिखता है। विभागों की समीक्षा बैठक से संबंधित विभाग के मंत्री ही गायब देखे जाते हैं। साढ़े तीन वर्षों के कार्यकाल में भूपेश बघेल अपने कैबिनेट के साथियों से भयभीत नजर आए हैं। उनकी पूरी कोशिश विधायकों को अपने खेमे में रखने की रही है। इसके लिए विधायकों को खुली छूट देना उनकी मजबूरी है ये विधायक ही उनकी पूंजी हैं उनकी कुर्सी पर खतरा देख ये विधायक दिल्ली दौड़ लगाते देखे जाते हैं। अब उनके ही कथनानुसार इन विधायकों की हालत बेहद नाजुक है।
10 ) भूपेश बघेल अपने साढ़े तीन वर्षों के कार्यकाल में नरेंद्र मोदी की तरह नजर आए हैं। भूपेश बघेल की राजनीति का खाद पानी वो मैदानी रहन सहन है जिनसे जुड़े तीज तिहार खान पान भी भूपेश बघेल के लिए एक राजनैतिक इवेंट है। शादी शुदा महिलाओं का अपने मायके आना पुत्र के स्वास्थ्य के लिए व्रत रखना भी उनके लिए एक सांस्कृतिक गर्व है। राजनैतिक इवेंट है। इसके लिए मुख्यमंत्री आवास अक्सर सजाया जाता है। भूपेश बघेल समायानुसार बहनों के भाई और किसान की भूमिका में देखे जाते हैं। गेड़ी चढ़ना किसान की आवश्यकता है लेकिन किसी मुख्यमंत्री का गेड़ी चढ़ना ढोंग है। आडंबर प्रतीत होता है। जिससे किसानों का कोई भला होने वाला नहीं है।
आलम यहाँ तक है कि जिस मुख्यमंत्री की कोशिश होनी चाहिए कि उसके राज्य में कोई मजदूर बोरे बासी खाने के लिए मजबूर न हो। भूपेश बघेल ने मजदूर दिवस पर बोरे बासी को इवेंट और सांस्कृतिक गर्व में बदल दिया। उनके खास समर्थक उन्हें प्रथम छत्तीसगढिया मुख्यमंत्री का तमगा देते फूले नहीं समाते। जो उनके राजनैतिक एजेंडे का समर्थक है वही छत्तीसगढिया है। जो सवाल उठाए वो छत्तीसगढ़ विरोधी परदेसिया है। ये ठीक वैसा ही है जैसे नरेंद्र मोदी को पहला हिंदू प्रधानमंत्री और हिंदू हृदय सम्राट घोषित करना और जो उनके राजनैतिक एजेंडे पर सवाल उठाए उसे हिंदू विरोधी का प्रमाण पत्र दिया जाना।
11 ) भूपेश बघेल के साढ़े तीन वर्षों के कार्यकाल में बस्तर और सरगुजा के आदिवासियों ने खुद को उपेक्षित महसूस किया है। उनके खाते सांस्कृतिक गर्व भी नहीं हैं। सिलेगर जैसे हत्याकांड भी हुए जहाँ बेगुनाह आदिवासियों पर गोलियां बरसाई गई। हसदेव अरण्य के आदिवासियों और जंगलों पर संकट है। अनेकों जगह विरोध प्रदर्शन जारी हैं लेकिन भूपेश सरकार ये सबसे बेफिक्र है।
12 ) छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री ने खुद को सपनो का सौदागर संबोधित किया था। अर्थात वो व्यक्ति जो छत्तीसगढियों को सुनहरे भविष्य की परिकल्पना प्रस्तुत करता है। भूपेश बघेल खुद को संस्कृति का सौदागर कहलाना पसंद करेंगे। सांस्कृतिक गर्व के अलावा उनके पास ऐसा कुछ भी नहीं है जिसमें छत्तीसगढिया अपना सुनहरा भविष्य देख सकें।