हर मंगलवार

कारवां

■ अनिरुद्ध दुबे

राजस्थान के उदयपुर में कांग्रेस का चिंतन शिविर निपटा उसके ठीक बाद जयपुर में भाजपा का मंथन हो गया। भले ही देश की दोनों राजनीतिक पार्टियों की बंद कमरे वाली ये अति महत्वपूर्ण बैठकें राजस्थान में हुईं लेकिन इनकी व्यापक चर्चा छत्तीसगढ़ में भी रही। और क्यों ना हो, अगले साल छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव जो होने हैं। फिर उसके तूरंत बाद 2024 में लोकसभा चुनाव। दोनों पार्टियों में बड़ा फ़र्क यही है कि कांग्रेस के पत्ते ज़ल्दी ओपन हो जाते हैं और भाजपा के पत्तों को सामने आने में समय लगता है। भूपेश बघेल की सरकार बनने के साढ़े तीन साल बाद राजधानी रायपुर में भाजपा का बड़ा आंदोलन अब कहीं जाकर देखने को मिला, जेल भरो आंदोलन के रूप में। आंदोलन में पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की भूमिका देखने लायक थी। उनके आक्रामक बोल ऐसे थे कि अस्सी के दशक के बृजमोहन अग्रवाल याद आ गए, जो छात्र राजनीति से होकर गुज़रने के बाद भाजपा की राजनीति में आए थे। बताने वाले बताते हैं- “बृजमोहन जी ने पहले से कह रखा था कि शुरुआती तीन साल हम एक-एक, दो-दो रन ही लेंगे। जब साल-डेढ़ साल बचे रहेंगे तब चौके छक्के लगाएंगे।“ जेल भरो आंदोलन में उनके तेवर को देखकर तो यही लगा कि चौके-छक्के की शुरुआत हो चुकी है।

बड़े पद का भी भरोसा नहीं

बरसों से एक पुराना जुमला चलते आया है कि “कांग्रेस की टिकट और मौत का भरोसा नहीं।“ अब इसमें कांग्रेस के बड़े पदों को भी जोड़ लिया जाना चाहिए। पूर्व विधायक रमेश वर्ल्यानी जैसे सीनियर नेता निगम-मंडल में नियुक्ति का इंतज़ार करते-करते इस दुनिया से चले गए। श्रीमती करूणा शुक्ला जैसी राष्ट्रीय पहचान रखने वाली नेत्री को पद तो मिला लेकिन उसमें भी नियमों का ऐसा पेंच आड़े आया कि वे पदभार ही ग्रहण नहीं कर पाईं और उनका निधन हो गया। छत्तीसगढ़ में निगम-मंडल के कुछ पद अभी भी ख़ाली पड़े हैं। इनमें नियुक्ति हो पाएगी या नहीं, कोई ठिकाना नहीं है। निगम-मंडल की कुर्सियों पर जो बैठे भी हैं तो कुछ को छोड़ बाक़ी के पास ज़्यादा कुछ करने के अवसर नहीं हैं। बात कांग्रेस संगठन की करें तो उसमें भी अजब गज़ब हो जाता है। जब कांग्रेस सत्ता में नहीं थी और भूपेश बघेल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष थे, उन्होंने मिनटों में चौंकाने वाला फैसला लेते हुए कांग्रेस प्रभारी महामंत्री संगठन पद पर से सुभाष शर्मा को हटाकर उनकी जगह गिरीश देवांगन को बिठा दिया था। ऐसा ही चौंकाने वाला फैसला पिछले महीने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने लिया। प्रभारी महामंत्री संगठन पद से चंद्रशेखर शुक्ला को हटाकर उनकी जगह अमरजीत चावला को ज़िम्मेदारी सौंप दी गई। ये सब बेहद गोपनीय तरीके से हुआ। राजीव भवन में चलती प्रेस कांफ्रेंस के बीच संचार विभाग के पदाधिकारियों के वाट्स अप में अचानक जब यह ख़बर आई उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं था। यह सोशल मीडिया का युग है। दिल की बात जुबां पर आए या न आए फ़ेस बुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर या वाट्स अप ग्रुप में आ ही जाती है। चंद्रशेखर शुक्ला की दो फ़ेस बुक पोस्ट गौर करने लायक रही। एक जगह पर उन्होंने लिखा कि “कितना भी ज्ञानियों के साथ बैठ लो तज़ुर्बा बेवकूफ़ बनने के बाद ही मिलता है।“ इसके बाद उन्होंने एक और पोस्ट डाली कि “मुझे नहीं आती उड़ती पतंगों सी चालाकियां, गले मिलकर गला काटूं वो मांझा नहीं हूं मैं।“ भले ही चंद्रशेखर जी कहते रहे हैं कि इन साधारण सी लाइनों को किसी और चीज़ से जोड़कर न देखा जाए, लेकिन निकालने वाले अपने ढंग से मतलब तो निकाल ही लेते हैं।

कानफोड़ू शोर और रायपुर कलेक्टर का बड़ा फ़ैसला

रायपुर शहर न जाने कितनी ही चीजों को लेकर बदनाम है। एक तो इस शहर के ट्रैफिक का कोई माई-बाप नहीं है। दूसरी तरफ सड़कों पर कहीं-कहीं कुछ अभद्र किस्म के लोग नालायकी के साथ डीजे के कानफोड़ू शोर के बीच बारात या जुलूस ले जाते दिख जाते हैं। सड़कों पर चलने वाला आम आदमी ऐसी की तैसी कराते रहे, उससे इन ध्वनि प्रदूषण फैलाने वालों को क्या लेना देना! भला हो उन समाज सेवियों का जिन्होंने रायपुर कलेक्टर सौरभ कुमार से मुलाक़ात कर दृढ़ता से इस पर अपनी बात रखी। साथ ही कलेक्टर सौरभ कुमार ने भी बिना देर किए उसी दिन इस पर एक कड़ा आदेश निकालकर यह सिद्ध कर दिया कि वे तत्काल निर्णय लेने वाले अफ़सरों में से हैं। आदेश निकलने के कुछ ही घंटे बाद 6 डीजे संचालकों के खिलाफ़ केस भी दर्ज हो गया। बुद्धिजीवी वर्ग की यही राय निकलकर सामने आ रही है कि कानफोड़ू शोर के खिलाफ़ ये जो सख़्त कदम उठाए जा रहे हैं वो कहीं चार दिन की चांदनी बनकर न रह जाएं। लोगों में ऐसा डर पैदा हो कि ऐसी हरक़त करने का आगे कोई दुस्साहस न करने पाए। बुद्धिजीवियों की यह भी राय है कि रायपुर कलेक्टर ने ये जो बड़ा फैसला लिया उसे प्रदेश के दूसरे बड़े शहरों में भी आत्मसात् किया जाना चाहिए।

पूरे घर के बल्ब बदल डालूंगा

इंदौर का अध्ययन दौरा कर लेने के बाद से रायपुर महापौर एजाज़ ढेबर का उत्साह देखते बन रहा है। बहुत पहले टीवी पर एक विज्ञापन आया करता था, जिसमें हास्य अभिनेता असरानी यह कहते दिखते थे कि “पूरे घर के बल्ब बदल डालूंगा।“ महापौर लगातार यही संदेश दे रहे हैं कि राजधानी रायपुर की पूरी सफाई व्यवस्था को बदल डालूंगा। उन्होंने कुछ स्थानों पर रात में सफाई शुरु करवा दी है। चेता भी दिया है कि सफाई के नाम पर ठेकेदारों की दुकानदारी नहीं चलने देंगे। कितने सफाई कर्मचारी रोज़ काम पर आ रहे हैं उनकी गिनती करवाएंगे। पहले रायपुर शहर स्वच्छता सर्वेक्षण में नंबर छह पर आया था उसे नंबर वन पर लाकर रहेंगे। महापौर ऐसी इच्छा शक्ति दिखा रहे हैं तो यह शहर के हित में ही है। कुछ हैं पुराने किस्से जो बैठे ठाले याद आ जाते हैं। बरसों पहले इसी रायपुर नगर निगम में कमिश्नर रहते हुए आईएएस सोनमणि बोरा के भीतर कुछ कर गुज़रने की  इच्छा शक्ति जागी थी। तब महाराष्ट्र के नागपुर शहर की वहां के निगम कमिश्नर शेखरन ने कायापलट कर दी थी। बोरा निगम के कुछ इंजीनियरों और अपने एक प्रिय ठेकेदार के साथ नागपुर भ्रमण पर गए थे। नागपुर होकर आए निगम के एक सीनियर इंजीनियर से पूछा गया कि दौरे में जाने पर क्या समझ में आया, तो उनका यही ज़वाब था कि “नागपुर में जो काम शेखरन साहब ने किया है उसका 10 प्रतिशत भी रायपुर शहर में हो जाए तो बहुत बड़ी बात होगी।“

छॉलीवुड सितारों का जुड़ता दिख रहा है ‘आप’ से नाता

राजनीति और सिनेमा का कोई आज का नहीं बरसों पुराना नाता रहा है। हिन्दी से लेकर तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम ऐसा कोई सिनेमा नहीं होगा जहां से जुड़े लोग राजनीति में न आए हों। भला हमारा छत्तीसगढ़ी सिनेमा क्यों पीछे रहता। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद 3 बार यहां भाजपा को सत्ता सुख भोगने का मौका मिला। तब हवा का रूख़ देखते हुए छत्तीसगढ़ी सिनेमा से जुड़े कुछ नायक-नायिका भाजपा के साथ खड़े नज़र आया करते थे। अब यहां कांग्रेस की सरकार है, संगीतकार दिलीप षड़ंगी को छोड़ दें तो सिनेमा या अलबम से जुड़ा कोई बड़ा चेहरा अभी तक तो कांग्रेस की तरफ जाते  नहीं दिखा है। आम आदमी की पार्टी की तरफ ज़रूर छॉलीवुड से जुड़े कुछ लोगों का बड़ा खिंचाव दिख रहा है। जानी-मानी एक्ट्रेस मुस्कान साहू ‘आप’ ज्वाइन कर चुकी हैं। छॉलीवुड के एक ऐसे बड़े प्रोड्यूसर जिनके मुम्बई स्थित किराये के फ्लैट में कभी बड़े-बड़े लोग पनाह पाते थे वो पिछले दिनों राजधानी रायपुर में आम आदमी की पार्टी के दफ़्तर में देखे गए। ये प्रोड्यूसर हैं तो छोटे क़द के, लेकिन नाम इनका बड़ा है। प्रोड्यूसर बनने से पहले इनका कागज़ों में कुछ और नाम  हुआ करता था, बाद में ये अपना नाम फ़िल्मी स्टाइल वाला कर लिये। इसी तरह छॉलीवुड में ख़लनायकी करते-करते हीरो बन जाने वाला एक चर्चित चेहरा भी हाल ही में ‘आप’ के दफ़्तर में देखा गया। बहरहाल प्रोड्यूसर और एक्टर के ‘आप’ में आने की अभी कोई विधिवत घोषणा नहीं हुई है।

कारवां @ अनिरुद्ध दुबे, सम्पर्क- 094255 06660

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