मिर्ची @ गेंदलाल शुक्ल
कांग्रेसः शहरी नेता – ग्रामीण नेता
कोरबा जिले के रामपुर विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के शहरी और ग्रामीण नेताओं के बीच तलवार खींच गयी है। पिछले कुछ महीनों से सुलग रही असंतोष की चिंगारी ने अब शोले का रूप ले लिया है। पिछले दिनों क्षेत्रीय सांसद श्रीमती ज्योत्सना महंत जब रामपुर क्षेत्र के दौरे पर थी, तब इलाके के नेताओं में इस मसले को लेकर खासी नाराजगी देखी गयी। दरअसल सक्ती विधायक डॉ.चरणदास महंत और उनकी धर्मपत्नी सांसद श्रीमती ज्योत्सना महंत ने शहरी नेताओं को ही अपना कर्ताधर्ता बना रखा है। सांसद मद, सी. एस. आर. और डी. एम. एफ. की राशि के कामों पर शहरी नेताओं ने एक तरफा कब्जा कर रखा है। ग्रामीण क्षेत्र के कार्यकर्ताओं को चक्कर काटने के बाद भी न तो काम मिलते और न ही मान-सम्मान। तीन साल से उपेक्षा का दंश झेल रहे रामपुर क्षेत्र के नेताओं- कार्यकर्ताओं का कहना है कि सांसद को 35 हजार वोट से हराने वाले नेताओं को ही तवज्जो मिलनी है और 40 हजार वोट से जिताने वालों की उपेक्षा होती है, तो अगले चुनाव में हम भी बुरा क्यों बनेंगे? हम भी कोरबा के नेताओं को अपना आदर्श बना लेते हैं।
ठेका हुआ निरस्त तो दिखने लगा भ्रष्टाचार
एसईसीएल कुसमुण्डा क्षेत्र में एस के मिश्रा को मुख्य महा प्रबंधक पदस्थ किया गया है। पदभार ग्रहण करते ही उन्होंने कामकाज में कसावट लाना शुरू किया। कोयला और डीजल चोरी सहित ठेकों में भ्रष्टाचार पर नकेल कसने लगे। इस दरम्यान उन्होंने खदान के भीतर के काम में पांच करोड़ रूपयों के कथित फर्जी भुगतान का मामला पकड़ लिया। मामला पकड़ने के बाद राजनीति और सेटिंग के बूते वर्षों से कुसमुण्डा क्षेत्र में दबंगई कर रहे नेता का ठेका निरस्त कर दिया। कथित नेता बेचैन हो उठा। पहले उसने अपने बल-बूते प्रबंधन को डराने-धमकाने का प्रयास किया। लेकिन कामयाबी नहीं मिली। पहली बार प्रबंधन के साथ कर्मचारी भी नेताजी को सबक सिखाने पर आमादा हो गये। घबराये नेताजी तब अपने नेता की शरण में पहुंच गये। अब बड़े नेता की भी प्रबंधन सुनने को तैयार नहीं है। लिहाजा एक साल पहले के मुद्दे को हथियार बनाकर उपयोग कर रहे हैं। यहां नहीं तो दिल्ली में तो सुनवाई होगी ना? लेकिन सवाल यह है कि इस भयानक मामले पर एक साल तक चुप्पी क्यों साधे रहे- चेला-गुरू? पब्लिक सब समझती है- नेताजी।
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