एसईसीएल के केन्द्रीय अस्पताल में स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, कर्मचारी परेशान
कोरबा 17 अप्रैल। कर्मचारी कल्याण को लेकर बार-बार प्रतिबद्धता जताने का दावा एसईसीएल कर रहा है लेकिन कई मामलों में इसकी पोल खुल रही है। कोरबा के मुड़ापार केंद्रीय चिकित्सालय में 50 लाख की डिजिटल एक्स.रे मशीन की स्थापना करने और काम शुरू होने के बावजूद मरीजों को रिपोर्ट के बजाय दूसरे विकल्प दिए जा रहे हैं। स्थिति ऐसी हो गई है कि शौकिया तौर पर कंपनी के स्वास्थ्य विभाग ने हाथी जरूर पाल किया है लेकिन उसके लिए चारा की व्यवस्था नहीं की है। बताया जा रहा है कि एक्स.रे फिल्म खरीदने के लिए
बजट ही नहीं है तो अस्पताल प्रबंधन अपनी तरफ से कुछ नहीं कर सकता।
डब्ल्यूसीएल के समय से भी पहले मुड़ापार में कोयला कंपनी का अस्पताल संचालित हो रहा है। वर्तमान में इसे केंद्रीय अस्पताल का दर्जा दिया गया है। इसी हिसाब से कंपनी ने यहां डॉक्टर से लेकर मेडिकल स्टाफ की व्यवस्था कर रखी है। साथ ही अनेक संसाधन और सुविधाएं भी मुहैया कराई है। एसईसी एल कर्मियों और उनके परिजनों के अलावा अन्य मामलों में सामान्य नागरिकों का उपचार यहां पर हो रहा है। समय के साथ सुविधाओं की बढ़ोत्तरी यहां पर की गई। कर्मचारियों के साथ. साथ संगठनों की ओर से मांग की जा रही थी कि डिजिटल एक्स.रे मशीन की व्यवस्था होना चाहिए। इसके अभाव में होने वाली परेशानियां प्रबंधन को बताई गई थी। खबर के अनुसार बीते वर्षों में मसौदा प्राप्त होने पर इसे स्वीकार किया गया और मशीन की स्थापना का रास्ता प्रशस्त कर दिया गया। जानकारों ने बताया कि केंद्रीय अस्पताल मुड़ापार में इस्टॉल की गई डिजिटल एक्स.रे मशीन की लागत 50 लाख रुपए की है। अकेले इसका प्रिंटर ही 30 लाख रुपए का बताया गया है। शुरुआत से लेकर कुछ समय तक ही
इसका संचालन बेहतर ढंग से हो सका लेकिन बाद में हालात ढाक के तीन पात वाले हो गए। जानकारी मिली है कि लगभग एक वर्ष का समय हो चला है तब से लेकर अब तक इस अस्पताल में अस्थि संबंधी मामलों को लेकर आने वाले कर्मियों और उनके परिजनों का डिजिटल एक्स.रे जरूर हो रहा है लेकिन उन्हें वास्तविक रिपोर्ट देने के बजाय उनके मोबाइल पर स्क्रीन शॉट मुहैया कराये जा रहे हैं। इससे कई प्रकार की समस्याएं खड़ी हो रही है। अब तक अनेक कर्मियों ने इस पर आपत्ति दर्ज कराई है और एक्स.रे फिल्म उपलब्ध कराने के
साथ इसे प्रदाय करने को कहा है लेकिन हुआ कुछ नहीं। शिकायतकर्ताओं ने बताया कि पूरे मामले में कम्प्यूटर से ली जाने वाली फोटो बेहतर होती ही नहीं और इसकी इमेज के कई हिस्सों में रैंम्बो जैसी आकृति नजर आती है। इस चक्कर में मरीजों की जांच करने वाला डॉक्टर अस्थि संबंधी समस्या को सही ढंग से परीक्षण नहीं कर पाता। स्थानीय स्तर पर मसला पकड़ में नहीं आने पर जब ऐसे मरीज बाहर रेफर किये जाते हैं तो वहां के डॉक्टर स्क्रीन शार्ट को अमान्य कर देते हैं। इन सबके चक्कर में मरीजों को दोहरी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। एक्स.रे डिपार्टमेंट में काम करने वाले कर्मचारी खुद इस समस्या से परेशान हो चुके हैं। वे अपने स्तर परमरीजों को औपचारिक ढंग से बता सकते हैं लेकिन संतुष्ट नहीं कर सकते। इस बारे में कई मौकों पर मरीजों की किचकिच डॉक्टर से भी हो चुकी है। हर बार यही सवाल होता है कि मोबाइल पर
स्क्रीन शॉट कब तक दिया जाएगा, फिल्म क्यों नहीं। इसका कोई जवाब डॉक्टर नहीं दे पाते। वे यह जरूर बताते हैं कि फिल्म खरीदने के लिए पैसे नहीं है लेकिन यह नहीं बताया जा रहा है कि कंपनी से फंड लेने के लिए कौन सी कोशिश की जा रही है। हालांकि राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर कोल सेक्टर में राजनीति
करने वाले लोगों की कमी नहीं है लेकिन स्थानीय मुद्दों पर उनकी चुप्पी समझ से परे है।
जानकारी के अनुसार डिजिटल एक्स-रे के उन मामलों में मरीजों को तब दिक्कतों का सामना करना पड़ता है जब उन्हें किसी हिस्से में हेयर क्रेक आ जाता है। ऐसे कर्मी अथवा उनके परिजन सुविधा का लाभ लेने के लिए विभागीय अस्पताल में पहुंचते हैं। उन्हें अन्य मामलों की तरह रिपोर्ट के बजाय
मोबाइल पर स्क्रीन शॉट मुहैया करा दिया जाता है। स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि हेयर क्रेक जैसी प्राब्लम को वास्तविक फिल्म में ही भलीभांति देखा और समझा जा सकता हैए मोबाइल शॉट्स पर नहीं। खबर यह भी है कि अपनी बला टालने के लिए कई मौकों पर अस्पताल के चिकित्सक मरीजों
को पेनेलाइज्ड अस्पताल के लिए रेफर कर देते हैं। एसईसीएल के लिए नए सीएमडी प्रेमसागर मिश्रा लगातार विभिन्न क्षेत्रों
का दौरा करने के साथ उत्पादन और डिस्पैच पर जानकारी हासिल कर रहे हैं। अन्य मामलों में भी उनके पास जानकार पहुंच रही है। एसईसीएल की पुरानी खदानों का वास्ता कोरबा जिले से है। यहां के कर्मचारियों के साथ कंपनी का संबंध उत्पादन करने मात्र तक सीमित न रहे बल्कि उनके सामाजिक मसलों को भी जाना जाए। इस दृष्टिकोण से कंपनी के मुखिया को अस्पताल से जुड़ी समस्याओं का निराकरण करने के लिए संज्ञान लेने की जरूरत है।