छत्तीसगढ़ वन विभाग की यह दो योजनाएं लाएंगी चौतरफा खुशहाली
कोरबा 25 फरवरी। छत्तीसगढ़ का वन विभाग दो ऐसी योजनाएं संचालित कर रहा है, जो पर्यावरण संरक्षण की दिशा में तो मील का पत्थर सिद्ध होगी ही, साथ ही चौतरफा खुशहाली भी लायेगी। ये दो योजनाएं है- हरियाली प्रसार योजना और मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना। इन दोनों योजनाओं से पृथक -पृथक तो लाभान्वित हुआ ही जा सकता है, लेकिन इन दोनों को एक साथ अपना लिया जाये, तो लाभ दोगुना हो जाता है।
पहले बात करते हैं- हरियाली प्रसार योजना की। इस योजना की शुरूआत वर्ष 2014 में की गयी थी। यह योजना किसानों की अनुपयोगी, बंजर, टिकरा अथवा कम लाभ देने वाली भूमि में हरियाली फैलाने और पर्यावरण संरक्षण के साथ किसानों की आय बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस योजना के तहत किसानों का आवेदन प्राप्त होने के बाद छत्तीसगढ़ शासन का वन विभाग बरसात से पहले गड्ढों की खुदाई कराने के साथ निशुल्क पौधे उपलब्ध कराता है। पौधारोपण के एक वर्ष बाद जीवित पौधों के संरक्षण के लिए वन विभाग प्रति पौधा प्रोत्साहन राशि प्रदान करता है। तीन वर्षों तक किसानों को अलग- अलग दर से प्रोत्साहन राशि दी जाती है। इस योजना का लाभ लेने के लिए किसानों को वन विभाग में एक आवेदन देना होता है और कम से कम 500 पौधों के रोपण के लिए भूमि उपलब्ध कराना होता है। छत्तीसगढ़ में इस योजना को बेहतर प्रतिसाद मिल रहा है। प्रदेश के किसान बड़ी तादाद में फलदार और छायादार पौधों का रोपण कर रहे हैं। अब तो वन विभाग इस योजना के लाभार्थियों को पौधों की निशुल्क होम डिलीवरी भी करने लगा है।
इस दौरान वित्त वर्ष 2021-22 से राज्य शासन ने मुख्यमंत्री
वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना आरंभ की है। इस योजना का उद्देश्य राज्य में वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करने के साथ पर्यावरण में सुधार लाकर जलवायु परिवर्तन के विपरित प्रभावों का कम करना है। इस योजना के अंतर्गत निजी क्षेत्र, किसानों, ग्राम- पंचायतो, शासकीय विभागों की भूमि पर इमारती, गैर इमारती प्रजातियों के वाणिज्यिक- औद्योगिक वृक्षारोपण को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। जो कृषक खरीफ फसल की जगह अपने खेतों में वृक्षारोपण करते हैं, उन्हें अगले तीन वर्षों तक प्रति एकड़ 10 हजार रूपये प्रोत्साहन राशि दी जाती है। ग्राम पंचायतें और संयुक्त वन प्रबंधन समितियां यदि अपने पास उपलब्ध राशि से वृक्षारोपण करती हैं तो एक वर्ष बाद उन्हें भी प्रति एकड़ 10 हजार रूपये प्रोत्साहन राशि दी जायेगी।
गौरतलब है कि वन विभाग के सहयोग से पाठशालाओं- शासकीय- अर्ध शासकीय कार्यालय परिसरों में भी वृक्षारोपण किया जा सकता है। वृक्षों के बढ़ने पर जहां परिसर मनोरम नजर आयेंगे, वहीं प्रदूषण नियंत्रण और पर्यावरण संरक्षण- संवर्धन में भी उनकी सहभागिता सुनिश्चित हो सकेगी। वर्षों पहले पाठशालाओं में खेलकूद के साथ बागवानी में भी छात्र- छात्राएं सहभागी होते थे। मगर अब बागवानी की परिपाटी खत्म हो गयी है। इसे दोबारा आरंभ करने की पहल की जानी चाहिये।
इस तारतम्य में कोरबा की वन मण्डलाधिकारी श्रीमती प्रियंका पाण्डेय एक और सुझाव देती हैं। उनका कहना है कि इन दोनों, हरियाली प्रसार योजना और मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना को एक साथ अपनाकर कोई भी लाभार्थी दोहरा लाभ प्राप्त कर सकता है। उन्होंने बताया कि ऐसे किसान जिनके पास खरीफ फसल की उपजाऊ भूमि सहित बंजर, टीकरा, कम उपजाऊ दोनों तरह की भूमि है, वे इन दोनों योजनाओं का इकट्ठा लाभ के सकते हैं। दरअसल एक ही जमीन पर दोनों योजनाओं का लाभ नहीं मिलता। लिहाजा किसानों को अपनी दोनों तरह की जमीन का अलग अलग योजना में उपयोग करना चाहिए। टिकरा, बंजर, कम उपजाऊ भूमि में हरियाली प्रसार योजना का और खरीफ फसल की भूमि में मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना का फायदा लेना चाहिए। इस तरह पौधा रोपण के जरिये प्रत्येक व्यक्ति न केवल प्रदूषण नियंत्रण और पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान दे सकता है, बल्कि वह इसे अपने आर्थिक आय का जरिया भी बना सकता है। यही नहीं, इन दोनों योजनाओं के सफल क्रियान्व्यन से जलवायु परिवर्तन के विपरित प्रभाव कम किये जा सकतें हैं और आर्थिक सृदृढ़ता हसिल कर चौ-तरफा खुशहाली लायी जा सकती है।