खुलने से पहले दम तोड़ा श्रम कार्यालय का दाल-भात केंद्र, संचालन की दिशा में पहल नहीं

कोरबा 23 फरवरी। जिला श्रम कार्यालय में पहुंचने वाले श्रमिकों को रियायत दर में भोजन देने के लिए बना दालभात केंद्र भवन खुलने से पहले खंडहर में तब्दील हो गया। निजी काम के लिए कार्यालय आने वालों को भोजन तो क्या पानी भी नसीब नहीं हो रहा। संचालन की दिशा में श्रम विभाग की ओर से पहल नहीं करने के कारण 23 लाख की लागत से बना भवन सात साल बीत जाने के बाद भी अनुपयोगी रह गया।

श्रमिक हित में दाल भात केंद्र संचालन प्रत्येक श्रम कार्यालयों में किया जाना है। इस प्राविधान के अनुसार जिला श्रम कार्यालय में दाल. भात केंद्र निर्माण के लिए श्रम कल्याण मद से 2012 में 23 लाख की स्वीकृति मिली थी। भवन का निर्माण 2015 में पूर्ण हो गया। नियम के अनुसार निर्माण के बाद से ही संचालन शुरू हो जाना थाए लेकिन विभाग के अधिकारियों की ओर से ध्यान नहीं दिए जाने के कारण भवन का उपयोग अब तक नहीं हो सका। भवन निर्माण का उद्देश्य केवल रियायत दर में श्रमिकों को भोजन प्रदान करना ही नहीं उनके विश्राम की सुविधा भी देना है। निर्मित भवन में श्रमिकों के ठहरने की भी व्यवस्था है। श्रमिक हित में उपयोग में नहीं लाए जाने के कारण यहां श्रम कार्यालयों की स्टेशनरी, टूटी कुर्सियां, श्रमिकों को वितरित किए जाने वाला सामान व कबाड़ रखा है। विभाग में अधिकारियों की बदलियां होती रही लेकिन किसी ने भी आज तक संचालन के संबंध में जागरूकता नहीं दिखाई। दाल-भात केंद्र का निर्माण औद्योगिक संस्थानों के आसपास करने का नियम है। तत्कालीन अधिकारियों ने नियम को ताक में रख सरकारी धन का दुरूपयोग करते हुए तंग जगह में भवन का निर्माण कर दिया है।

दाल-भात केंद्र संचालन के लिए भवन का अधिक महत्व ऐसे जगह में आवश्यक होती है, जहां दिहाड़ी मजदूरी में जाने के लिए मजदूर सुबह एकत्र होते हैं। शहर के पुराना बस स्टैंड, रेलवे फाटक के पास मजदूर प्रतिदिन दिहाड़ी मजदूरी पर जाने के एकत्र होते हैं। मजदूरों की सुविधा के लिए ऐसे ही जगह में केंद्र को खोला जाना था। श्रमिक एकत्र स्थल में दाल भात केंद्र नहीं होने के कारण कई श्रमिकों को भूखे पेटे ही काम पर जाना पड़ता है। जिले में राज्य शासन के अनुदान से कलेक्ट्रेट परिसर अन्नापूर्णा दाल.भात सेंटर का संचालन हो रहा था। जहां दस रूपये में भरपेट भोजन दिया जाता था। निजी संस्थानों को संचालन के लिए जिला प्रशासन की ओर से रियायत दर में केवल चावल ही दिया जा रहा था। सामानों की कीमत बढ़ने और कोरोना काल में कार्यालय बंद होने के कारण इस केंद्र का संचालन भी बंद हो गया।

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