गांव-गांव में पारंपरिक डंडा लोक नृत्य की धूम
कोरबा 17 जनवरी। छत्तीसगढ़ के पारंपरिक डंडा नृत्य इन दिनों गांव-गांव में किया जा रहा है। बांस के डंडो पर आधारित यह नृत्य यह छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध और पारंपरिक लोक नृत्य है। जनजातीय में प्रचलित इस नृत्य में पुरुषों द्वारा 10, 20 व 30 संख्या में समूह बनाकर नृत्य करते हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि डंडा नृत्य पुरुषों के सर्वाधिक कलात्मक और मनपसंद नृत्यों में माना जाता है हर कोई डंडे एक दूसरे से टकराते है, जिससे मनमोहक ध्वनि निकलती है। डंडों से नृत्य करने वालों के अलावा भी एक समूह होता है, जो नृत्य करने के लिए संगीत गायन करते हैं। इसके साथ ही समूह में एक व्यक्ति नृत्य को ताल और गति देता है, उस व्यक्ति के कार्य को कुटकी देना कहते हैं। इसके अलावा समूह में एक मादर, ढोल, झांझ, मंजीरा, हारमोनियम, बांसुरी बजाने वाले और एक व्यक्ति तिरली बजाता है। मनमोहक मधुर ध्वनि ही इस नृत्य की विशेषता है। तिरली में मनमोहक स्वर उत्पन्न करना सभी के लिए आसान नहीं होता इसके लिए बहुत अनुभव की आवश्यकता होती है डंडा नाच एक गोलाकार आकार में किया जाता है नृत्य करने वाले समूह के सदस्यों के हाथ में एक या दो डंडे होते हैं नृत्य के शुरुआत में आपस में नृत्य ताल बैठाया जाता है फिर कुहकी देने वाले के कुहकी देने पर संगीत गायन के साथ नृत्य का शुभारंभ किया जाता है। नृत्य करने वालों के हाथों में जो डंडा होता है उसे वे गोल घेरे में झूम झूम कर उछलकर झुक कर कभी दाएं तो कभी बाएं होते हुए एक दूसरे के डंडो पर चोट मारते हैं, डंडे पर चोट पढ़ने से बहुत ही कर्णप्रिय ध्वनि निकलती है, जिसे सुनकर बहुत ही आनंद की अनुभूति होती है ।