एक ही राज्य में लिया जा सकता है आरक्षण का लाभ: सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला
झारखंड हाईकोर्ट का फैसला किया रद्द
नई दिल्ली 21 अगस्त। सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के मामले में अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि राज्य बंटवारे के बाद आरक्षित श्रेणी में आने वाला व्यक्ति दोनों में से किसी भी राज्य में आरक्षण के लाभ का दावा कर सकता है, लेकिन वह दोनों राज्यों में आरक्षण का दावा नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड के मामले में यह फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाई कोर्ट का 24 फरवरी, 2020 का फैसला रद कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट का फैसला किया रद
जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं का निपटारा करते हुए यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत प्राप्त विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए झारखंड की राज्य प्रशासनिक सेवा परीक्षा पास करने के बावजूद नियुक्ति न पाने वाले पंकज कुमार की याचिका स्वीकार की और आदेश दिया कि पंकज कुमार 2007 में निकले विज्ञापन संख्या-11 के मुताबिक तीसरी संयुक्त सिविल सर्विस परीक्षा, 2008 में चयन और वरिष्ठता के साथ नियुक्ति पाने के अधिकारी हैं। उनकी नियुक्ति की जाए। इसके साथ ही कोर्ट ने झारखंड के उन 15 सिपाहियों की नौकरी भी बहाल करने का आदेश दिया जिन्हें करीब तीन साल नौकरी करने के बाद निकाल दिया गया था। दोनों मामलों में बिहार बंटवारे के बाद बने झारखंड में आरक्षण के लाभ का विवाद शामिल था।
दो राज्यों में एक साथ आरक्षण के अधिकार का दावा नहीं कर सकता
वर्ष 2000 में बिहार राज्य को दो हिस्सों में बांट दिया गया था। एक राज्य बिहार और दूसरा नया राज्य झारखंड बना दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जो कर्मचारी एससी-एसटी वर्ग के हैं, उनकी जाति या जनजाति संविधान के आदेश, 1950 व बिहार पुनर्गठन अधिनियम, 2000 की धारा 23 व 24 के तहत अधिसूचित है और जो लोग ओबीसी वर्ग के हैं उनके लिए अलग से ओबीसी वर्ग का नोटिफिकेशन निकला है, उन्हें आरक्षण का लाभ मिलेगा। उनके आरक्षण के हित बिहार पुनर्गठन अधिनियम, 2000 की धारा 73 के तहत संरक्षित रहेंगे। कोर्ट ने कहा इस अधिकार का दावा सरकारी नौकरी में किया जा सकता है। आरक्षित वर्ग में आने वाला व्यक्ति दो में से किसी भी राज्य चाहें बिहार या झारखंड में आरक्षण का लाभ पाने का हकदार है, लेकिन वह दोनों राज्यों में एक साथ आरक्षण के अधिकार का दावा नहीं कर सकता।
क्या था मामला
पंकज कुमार की याचिका के मुताबिक, उनका जन्म 1974 में हजारीबाग में हुआ था जहां उनके पिता रहते थे। उस वक्त हजारीबाग अविभाजित बिहार का हिस्सा था, लेकिन बिहार पुनर्गठन अधिनियम, 2000 के बाद बिहार का बंटवारा हो गया और हजारीबाग जिला 15 नवंबर, 2000 से झारखंड राज्य में आ गया। पंकज कुमार अनुसूचित जाति वर्ग के हैं, उन्हें झारखंड के सक्षम प्राधिकारी ने प्रमाणपत्र भी जारी किया है। 21 दिसंबर, 1999 को उन्हें रांची के एक स्कूल में एससी के लिए आरक्षित पद पर सहायक शिक्षक नियुक्त किया गया था। राज्य का बंटवारा होने के बाद उन्होंने झारखंड राज्य का विकल्प अपनाया। सहायक शिक्षक की नौकरी करते हुए उन्होंने एससी वर्ग में तीसरी संयुक्त सिविल सíवस परीक्षा, 2008 के लिए 2007 में निकले विज्ञापन संख्या-11 के जरिये आवेदन कर दिया। पंकज ने प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा पास कर ली। उनका इंटरव्यू भी हो गया और फाइनल रिजल्ट 2010 में निकला जिसमें उन्हें एससी वर्ग की 17 रिक्तियों में पांचवा स्थान मिला, लेकिन उनकी नियुक्ति रोक दी गई और 11 अगस्त, 2010 को उनसे नीची मेरिट के व्यक्ति को नियुक्ति दे दी गई। जब उन्हें मेरिट में ऊंचा स्थान पाने के बावजूद नियुक्ति नहीं मिली तो उन्होंने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की। हाई कोर्ट में राज्य सरकार ने दलील दी कि वह नियुक्ति पाने के हकदार नहीं हैं क्योंकि उनकी सर्विस बुक में स्थायी पता पटना दिया गया है जो बिहार में है। हाई कोर्ट की एकल पीठ ने पंकज की याचिका स्वीकार करते हुए उन्हें नियुक्ति देने का आदेश दिया, लेकिन राज्य सरकार ने आदेश को हाई कोर्ट की खंडपीठ में चुनौती दी जहां पंकज हार गए थे। इसके बाद वह सुप्रीम कोर्ट आए थे।
जाति प्रमाणपत्र धारक बिहार का स्थायी निवासी
दूसरी याचिकाएं 15 सिपाहियों की थीं जिन्हें 2004 के भर्ती विज्ञापन में एससी-एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षित वर्ग में नियुक्ति मिली थी। उन लोगों ने तीन साल नौकरी की जिसके बाद उन्हें बर्खास्त कर दिया गया। कहा गया कि वे लोग बिहार के स्थायी निवासी हैं। उनका जाति प्रमाणपत्र बिहार के सक्षम प्राधिकारी ने जारी किया है इसलिए उन्हें झारखंड में आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा।