सिंहदेव की इस बेबाक राय से भूपेश सरकार उलझी, फिर गरमाया ढाई साल का मुद्दा
रायपुर 30 जून: भूपेश सरकार के मंत्री औऱ मुख्यमंत्री कार्यालय के मध्य कुछ ठीक नहीं चल रहा हैं वजह यही हैं कि किसी मामले को लेकर बयान बाजी और खींचतान की स्थिति बनी हुई हैं।ऐसा ही एक ताजा मामला उस वक्त प्रकाश में आया जब वरिष्ठ केबिनेट मंत्री ने साफ तौर पर कहा कि मुख्यमंत्री कार्यालय की तरफ से जो फैसला लिया गया हैं उससे मैं सहमत नहीं हूं।केबिनेट मंत्री और कोई नहीं बल्कि टी.एस. सिंहदेव हैं जो प्रदेश सरकार में स्वास्थ्य मंत्री हैं। सिंहदेव के बयान के बाद तो फिर एक बार राजनीति गरमा गई और इस बात पर चर्चा होने लगी के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल व स्वास्थ्य मंत्री टी.एस.सिहदेब के मध्य सबकुछ ठीक नहीं चल रहा हैं।
बता दे कि 15 साल की बीजेपी की सत्ता के बाद कांग्रेस की वापसी हुई और मुख्यमंत्री बनने की दौड़ कांग्रेस के कई नेताओं के अलावा प्रमुख रूप से भूपेश बघेल व टी. एस. सिंहदेव शामिल थे, काफी रस्साकस्सी के बाद बघेल को छतीसगढ़ का मुख्यमंत्री कांग्रेस हाईकमान द्वारा बनाया गया उस वक्त यह चर्चा जोरों पर थीं कि पहले ढाई साल बधेल और बचे ढाई साल सिंहदेव मुख्यमंत्री रहेंगें, संभवतः इस शर्त पर ही सिंहदेव ने हाई कमान की बाते मानी। समय समय पर बघेल व सिंहदेव के मध्य बयानबाजी भी चलती रही और ऐसा लगने लगा कि दोनों नेता एक दूसरे के विरोध में हैं. स्वभाविक हैं कि राजनीति के जानकार यह अनुमान भी लगाते रहे कि बचे ढाई साल के मुख्यमंत्री सिंहदेव बनेंगे. हालांकि की भूपेश सरकार के ढाई साल की समय सीमा पूरी हो गई हैं किन्तु छतीसगढ़ में बदलाव का कोई दृश्य बनता नजर नहीं आ रहा हैं. हालांकि राजनीति के जानकार का यह मानना हैं कि कांग्रेस हाईकमान पंजाब और राजस्थान में कांग्रेस के विवाद को ठीक करने की माथा पच्ची में जुटा हुआ हैं इस वजह से छतीसगढ़ की तरफ फिलहाल उनका ध्यान कम है. दूसरी तरफ सिंहदेव समर्थकों का उत्साह काफी बढ़ा हुआ हैं. हो सकता हैं उन्हें किसी हिंट की खबर हो।
इन्हीं सब कारणों के चलते ऐसा लगता हैं कि मुख्यमंत्री कार्यालय और स्वास्थ्य विभाग के मध्य तालमेल का अभाव देखने को मिल रहा हैं.और हालात ऐसे हैं कि स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव की जानकारी में आए बिना मुख्यमंत्री सचिवालय से फैसले लिए जा रहे हैं। टी एस सिंहदेव ने स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े मुख्यमंत्री के एक फैसले पर अपनी असहमति जता दी। उन्होंने यहां तक कह दिया कि इस बारे में उनसे किसी ने चर्चा भी नहीं की है।
उल्लेखनीय हैं कि 27 जून को जनसंपर्क विभाग ने बताया था, सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने के लिए निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन देने जा रही है। इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों में निजी अस्पताल खोलने पर अनुदान दिया जाएगा। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उद्योग विभाग को 10 दिन में अनुदान का प्रस्ताव तैयार करने का निर्देश दिया है। सोमवार रात अपने निवास पर संवाददाताओं से बातचीत स्वास्थ्य मंत्री ने ऐसे किसी फैसले से अपनी असहमति जता दी। उन्होंने कहा, “मैं इससे सहमत नहीं हूं। मुझसे किसी ने इसपर चर्चा भी नहीं की है। मैं शुरू से यूनिवर्सल हेल्थ केयर की बात करता रहा हूं। अंग्रेजी के शब्द हैं तो शायद लोगों तक पहुंच नहीं पाता। साथ ही उन्होंने नागरिकों को सरकार के बजट से, पब्लिक मनी से नि:शुल्क उपचार हो मैं इसका पक्षधर हूं। हम यह कहते हैं सरकारी तंत्र की स्वास्थ्य व्यवस्था को और सुदृढ़ करने के लिए पैसों की कमी आती है। वहीं दूसरी ओर हम निजी क्षेत्र को अगर पैसा देने को तैयार हैं। अगर निजी क्षेत्र नि:शुल्क काम करेगा तो फिर ठीक है। कोई दिक्कत नहीं है। आप ग्रांट लीजिए और पब्लिक से कोई पैसा मत लीजिए वह बात तो समझ में आती है। लेकिन पब्लिक का पैसा किसी निजी संस्था को देकर फिर कहिए की पब्लिक से भी पैसा लो तो यह नीति बिल्कुल उचित नहीं है।’
सिंहदेव ने कहा, “मेरी जब भी विभाग में बात हुई तो यही हुई है कि हमें पब्लिक सेक्टर को मजबूत करना है। जब हमारे पास पैसे की कमी है, उस स्थिति में प्राइवेट सेक्टर को पैसे देना जिसमें वे पब्लिक से पैसे लेकर उपचार करें यह मेरे समझ में उचित नहीं है।’ सिंहदेव का यह रुख निजी क्षेत्र को अनुदान देने की योजना को प्रभावित कर पाता है या नहीं यह तो कुछ समय बाद पता चलेगा, लेकिन उनके इस बयान ने विपक्ष को बैठे-बिठाए एक बड़ा मुद्दा जरूर दे दिया है।
विधानसभा चुनाव के समय नवम्बर 2018 में कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी ने डोंगरगढ़ में कांग्रेस का घोषणापत्र जारी किया था। उसमें कांग्रेस ने यूनिवर्सल हेल्थ केयर देने का वादा किया था। इसके तहत प्रत्येक नागरिक को नि:शुल्क और गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सेवा देने की बात थी।सिंहदेव भी कांग्रेस घोषणा पत्र के अनुसार ही कार्ययोजना लागू करने की बात कर रहे है. इससे ऐसा लगता हैं कि येनकेन प्रकारेण यह मुद्दा सिंहदेव समर्थक कांग्रेस हाईकमान तक जरूर पहुचायेंगे.ताकि मनमानी की बात हाईकमान को पता चले।
हालांकि सिंहदेव शांत और सुलझे हुए नेता हैं जो बात उन्हें पसंद नहीं आती वे अपनी राय बिना हिचक के मीडिया के प्रश्न के जवाब में देते रहे है और यही वजह हैं कि समय समय पर ढाई साल के मुख्यमंत्री वाला मुद्दा उझलते रहता हैं।