लीडार तकनीक के जरिए देश के 10 राज्यों में होगा वन सर्वेक्षण, जानें क्यों है जरूरी.?

नईदिल्ली 27 जून। पर्यावरण संतुलन और जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है और इसे कम करने के लिए तमाम देश अलग-अलग विकल्पों पर काम कर रहे हैं। भारत भी इस दिशा में आगे तेजी से आगे बढ़ रहा है। सभी जानते हैं कि पर्यावरण संतुलन में वनों और वन्य जीवों का बहुत महत्व है। इसी के मद्देनजर वनों में जलाशयों के संरक्षण और जानवरों के लिए चारा की उपलब्धता को सुनिश्चित करने के मकसद से देश के दस राज्यों में जल्दी ही वनों संबंधित सर्वे का काम शुरू किया जाएगा।

इन दस राज्यों में होगा पहले सर्वे

इस संबंध में शुक्रवार को केन्द्रीय पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने दस राज्यों के लिए तैयार विस्तृत परियोजना रिपोर्ट जारी की। इन राज्यों में असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गोवा, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, नागालैंड और त्रिपुरा शामिल है।

वैपकॉस करेगा सर्वेक्षण

इस मौके पर केंद्रीय पर्यावरण, वन, जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावडेकर ने बताया कि यह परियोजना, जिसे भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम वैपकॉस को सौंपी गई है, जो अपनी तरह का पहला और अनूठा प्रयोग है। इसमें लीडार तकनीक का उपयोग किया गया है, जो जंगलों के क्षेत्रों में पानी और चारे को बढ़ाने में मदद करेगा। इस परियोजना का मकसद मानव-पशु संघर्ष को कम करना, भूजल पुनर्भरण में मदद करना, स्थानीय समुदायों की मदद करना शामिल है। इसके साथ राज्य के वन विभागों को इन परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए कैम्पा फंड का उपयोग सही तरीके से करने के लिए कहा।

योजना के लिए वैपकॉस को दिया गया 18.38 करोड़ रुपये
वैपकॉस ने लीडार तकनीक का उपयोग करके इन विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) को तैयार किया है, जिसमें 3-डी का उपयोग विभिन्न प्रकार की मिट्टी और जल संरक्षण संरचनाओं में एनीकट, गेबियन की सिफारिश की गई है। इस योजना के तहत 26 राज्यों को शामिल किया गया है। इस योजना के लिए जुलाई 2020 में वैपकॉस को 18.38 करोड़ दिया गया है। बाकी 16 राज्यों की डीपीआर भी शीघ्र ही जारी की जाएगी।

क्या है लीडार?

लीडार अथवा लेजर अवरक्त रडार (LiDAR) एक एडवांस तकनीक है। इस तकनीक का प्रयोग हेलीकॉप्टरों में किया जाता है, जिनके ऊपर लेजर से लैस उपकरण होते हैं। इस तकनीक के जरिये जमीन पर मौजूद हर एक चीज का विस्तृत विवरण मिलता है। जैसे, जमीन पर रास्ता कैसा है, कहां गड्ढे हैं, कहां ऊंचाई है या फिर कहां नदी या नाले हैं। इससे सटीक जानकारी मिलती है।

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