बाजार में इन दिनों सबसे महंगी सब्जी ‘बोड़ा’ की बढ़ी मांग, वनवासियों की आय में भी हो रहा इजाफा
गरियाबंद 21 जून। बारिश के मौसम में छत्तीसगढ़ में एक बेहद महंगी सब्जी मिलती है, जिसे ‘बोड़ा’ के नाम से जाना जाता है। बोड़ा यह एक मशरूम की ही प्रजाति है, मानसून का मौसम और पहली बारिश से जंगलों में ये सब्जी साल के पेड़ के नीचे पाई जाती है। यह सिर्फ बारिश के मौसम में ही मिलती है। स्वाद और पौष्टिकता से भरपूर ये सब्जी फिलहाल बाजार में तीन से चार सौ रुपये किलो में बिक रही है। हालांकि इसकी कीमत घटती-बढ़ती रहती है। बोड़ा को सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों के लोग भी पंसद करते हैं।
कई पोषक तत्व से भरपूर होता है बोड़ा
छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के बाजारों में इन दिनों सबसे महंगी सब्जी के रूप में बोड़ा की आवक बढ़ गई है। बाजार में इसे खरीदने वालों की भीड़ लग रही। बोड़ा साल वृक्ष के नीचे उपजने वाला एक फुटु (मशरूम) है, इसमें दूसरे मशरूमों की तरह कई पोषक तत्व पाए जाते हैं, इसलिए लोग इसे शौक से खाते हैं। ग्रामीण प्रति वर्ष बारिश के पूर्व साल के वनों से बोड़ा संग्रहित करते हैं और उसे हाट – बाजारों में बेचने लाते हैं। यह सब्जी देश के सबसे महंगी सब्जी में जाना जाता है। शहरी क्षेत्र के लोग इसे खाने लिए लिए बेहद तरसते है और जब शहर के किसी बाजार में बोड़ा (मशरूम) बिकने लगता है, वहां हजारो की संख्या में भीड़ नजर आती है। इसे खाने के लिए लोग साल भर इंतजार करते है, यह है ही इतना स्वादिस्ट, जो की लोगों को अपने स्वाद से मनमोहित कर देती है। खास बात ये है कि वनवासी इस सब्जी के जरिए अपनी आदमनी भी करते हैं।
कहां और कैसे पाया जाता है बोड़ा
बोड़ा धरती से निकलने वाला जंगली खाद्य है, जब बादलों की गर्जना होती है, उमस का वातावरण हो जाता है, उस समय बोड़ा साल वृक्ष के नीचे मुलायम जमीन के अंदर आकार लेता है, ग्रामीण जमीन खोदकर बोड़ा निकालते हैं, बोड़ा आकार में आलू से लगभग आधा या उससे भी छोटा होता है, रंग इसका भूरा होता है, ऊपर पतली सी परत एवं अंदर सफेद गुदा भरा होता है, बोड़ा को बिना सब्जी बनाये भी खा लेते है, बिना सब्जी बनाये इसका स्वाद मीठा जैसा लगता है।
बोड़ा में आवश्यक खनिज लवण एवं कार्बोहाईड्रेट भरपूर मात्रा में होता है , इसकी सब्जी बेहद स्वादिष्ट होती है। इसकी आवक सिर्फ शुरुआती बरसात तक लगभग एक माह तक ही होती है, इसलिए इसकी कीमत भी ज्यादा होती है। जिले के वनांचल क्षेत्र के आदिवासियों में ऐसी मान्यता है कि बारिश जितनी ज्यादा होगी, बोड़ा उतना ही अधिक निकलेगा, वे यह भी मानते हैं कि बादल जितना कड़केगा, बोड़ा उतना ही निकलेगा, साल वृक्षों के जंगल में जहां बोड़ा निकलना होता है, वहां जमीन में दरार पड जाती है, नुकीले औजार से खोद कर उसे निकाल लिया जाता है।