कोई यूं ही चंपतराय नहीं हो जाता- सर्वेश कुमार सिंह
त्याग और समर्पण की प्रतिमूर्ति हैं चंपत जी
जो लोग चंपतराय जी पर आरोप लगा रहे हैं, कि राम मन्दिर के लिए खरीदी गई जमीन में गड़बड़ी हुई है। वे चंपत जी को वस्तुतः जानते ही नहीं हैं। चंपतराय उस व्यक्ति का नाम है, जिसने अपना सारा जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक, विश्व हिन्दू परिषद् और हिन्दू समाज की सेवा को समर्पित कर दिया है। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन को गति देने, इसकी योजना बनाने तथा समस्त व्यव्स्थाओं को मूर्त रूप देने में पिछले करीब 35 साल तक चंपत जी मुख्य भूमिका में रहे हैं। वे परदे के पीछे से सभी योजनाओं का संचालन करते रहे हैं। विश्व हिन्दू परिषद् की ओर से राम मन्दिर आन्दोलन का नेतृत्व में प्रत्यक्षतः स्व. अशोक सिंहल जी कर रहे थे। लेकिन, परदे के पीछे से पूरे आन्दोलन का संचालन चंपत जी ने किया है। हमेशा प्रचार प्रसार से दूर सामान्य कार्यकर्ता की तरह उन्होंने काम किया है।
अयोध्या आंदोलन से जुड़े सभी मुकदमों की व्यवस्था देखने का काम चंपत जी ही करते रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय के जिस फैसले के बाद राम मन्दिर निर्माण का रास्ता साफ हुआ, उस मुकदमें की पैरवी के लिए वे सतत सक्रिय रहते थे। दिल्ली में रहते हुए मैंने खुद उनको इस मुकदमें की व्यवस्थाओं में अति व्यस्त देखा है। मुकदमें की हर तारीख पर वकीलों के पहुंचने की व्यवस्था हो या तथ्यों और प्रमाणों को जुटाने की जिम्मेदारी सभी का निर्वहन चंपत जी ही करते थे। उनका अपना कुछ भी नहीं है। वे समाज सेवा में धन, प्रतिष्ठा या पद की लालसा में नहीं आये थे। उन्होंने एक लक्ष्य के लिए संघ का प्रचारक बनना स्वीकार किया था। वह स्वेच्छा से शिक्षक की नौकरी छोड़ कर प्रचारक बने हैं।
मेरा चंपत जी के साथ 44 वर्ष से परिचय और सतत संपर्क रहा है। मैंने उनके त्यागमयी जीवन, सामान्य कार्यकर्ता की दिनचर्या और ध्येय के लिए समर्पण को निकट दे देखा है। मेरा चंपत जी के साथ परिचय 1977 में आया था, मुरादाबाद की तत्कालीन तहसील मुख्यालय अमरोहा ( अब जनपद ) के हिन्दू कालेज में लगे प्रथामिक शिक्षा वर्ग में जब मैं प्रशिक्षण के लिए गया तो चंपत जी वहां मुख्य शिक्षक थे। वे मेरे चर्चागट प्रमुख भी थे। इस समय चंपत जी धामपुर के डिग्री कालेज में रसायन विभाग के प्रवक्ता थे। अगले एक वर्ष बाद ही वे स्व. ओमप्रकाश जी के आग्रह पर नौकरी छोड़कर प्रचारक बन गए।
कई स्थानों पर जिला प्रचारक और विभाग प्रचारक रहने के बाद उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने योजना बनाकर विश्व हिन्दू परिषद् में भेजा। यहां उन्होंने अपनी मेधा, परिश्रम और समर्पण से एक पहचान तो बनायी ही साथ ही अयोध्या आंदोलन को भी गति प्रदान की। श्री राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़ा कोई भी पड़ाव ऐसा नहीं है जिसके गवाह चंपत जी न रहे हों। उन्होंने इस आंदोलन को आरंभ होते, परवान चढ़ते और परिणति तक पहुंचते न केवल देखा है, बल्कि उसके लिए खुद को समर्पित कर इसे साकार रूप देने में लाखों कार्यकर्ताओं और रामभक्तों के साथ योगदान किया है।
आज कुछ स्वार्थी तत्व राजनीतिक विद्वेष से प्रेरित होकर चंपत जी और श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट पर आरोप लगा रहे हैं कि मन्दिर के लिए खरीदी गई जमीन में घोटाला हुआ है। ये तत्व बगैर जाने समझे ही चंपत जी को इन आरोपों में शामिल करने की कोशिश कर रहे हैं। जबकि चंपत जी के रहते कोई दूसरा भी भ्रष्टाचार नहीं कर सकता है। ये मैं अच्छी तरह जानता हूं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में रहते और पत्रकारिता के अपने 37 साल के कायर्यकाल में मैंने जिन प्रचारकों की जीवनशैली और कार्य को निकट से देखा है उनमें चंपत जी प्रमुख हैं। मैं यह कतई भी मानने को तैयार नहीं हूं कि वह कोई आर्थिक अनियमितता कर सकते हैं।
जिस व्यक्ति का अपने परिवार से कोई संबंध नहीं, अपना कोई निजी एकाउण्ट नहीं, निजी महत्वाकांक्षा नहीं वह किसी तरह की अनियमितता करेगा, यह कल्पना भी नहीं की जा सकती है। अगर उन्हें पैसा ही कमाना होता या धन की लालसा होती तो वे सरकारी शिक्षक की नौकरी छोड़कर प्रचारक नहीं बनते। मैं यह अच्छी तरह से जानता हूं कि वे आज विहिप के अंतर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहते हुए और श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव रहते हुए भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारकों के लिए बनी व्यवस्था के अनुसार ही अपना निजी जीवन चलाते हैं।
जब आप नेता संजय सिंह और सपा नेता पवन पांडे ने जमीन में अनियमितताओं के आरोप लगाये और इसमें चंपत जी के संलिप्त होने की बात कही तो मुझे लगा कि ये लोग जो आरोप लगा रहे हैं अबोध हैं, ये चूंकि उनके बारे में कुछ नहीं जानते हैं, इसलिए ऐसी बातें कह रहे हैं। कुछ पत्रकार साथी भी बगैर जाने समझे ही उसी भाषा में बहने लगे हैं। जबकि उन्हें पहले तथ्यों को एकत्र करना चाहिए, उन्हें परखना चाहिए। साथ ही चंपत जी को भी जानना चाहिए।
इतने बड़े आंदोलन को आकार देने में मुख्य भूमिका निभाने से लेकर मन्दिर निर्माण के लिए समर्पित हो जाने वाला व्यक्ति यूं ही चंपतराय नहीं हो जाता है। उसके लिए एक साधना की जरूरत होती है, समर्पित जीवन जीने की जरूरत होती है। मुझे यही कहना है कि कोई कुछ भी कहे इन आरोपों में कोई दम नहीं,कोई सच्चाई नहीं हैं। सब निराधार हैं, समय स्वयं ये निर्णय कर देगा कि वे लोग कौन हैं जो आज भी भगवान राम के मन्दिर निर्माण में रोड़ा अटकाना चाहते हैं।
साभार रामगोपाल जी के पोस्ट से