कोरबा प्रशासन बना कातिल.. 60% दिव्यांग शिक्षक की लगाई कोरोना सर्वे में ड्यूटी, संक्रमण से हुई मौत
दिव्यांग शिक्षक बंजारे के अलावा महिला शिक्षक सुषमा लहरे की भी संक्रमण से हुई मौत
जिले में दो दिनों में दो शिक्षाकर्मियों के आकस्मिक निधन से शिक्षक वर्ग में शोक व आक्रोश
कोरबा 21 मई। विवादों से घिरे कोरबा जिले के शिक्षा विभाग व शिक्षकों के बीच के विवाद ने कल एक दुखद मोड़ ले लिया। खबर मिली कि 19 मई को एक दिव्यांग शिक्षक सधवा बंजारे की करोना संक्रमण से बिलासपुर में इलाज के दौरान मृत्यु हो गई। मृतक बंजारे की ड्यूटी कोरोना सर्वे के कार्य में लगाई गई थी। उनकी मृत्यु पश्चात पत्नी व 3 मासूम बच्चों के सिर से घर के मुखिया का साया छिन गया। इसके अलावा कल रात 20 मई को शासकीय मॉडल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बालको नगर में अटैच शिक्षिका श्रीमती सुषमा लहरे का भी निधन हो गया। अल्पकाल में अपने दो शिक्षाकर्मियों की मृत्यु को लेकर शिक्षकों में व्यवस्था के प्रति गहरी नाराजगी व्याप्त है।
प्राप्त जानकारी अनुसार कोरबा जिले में पोड़ीउपरोड़ा ब्लॉक के तानाखार प्राथमिक शाला में पदस्थ सधवा बंजारे 60% दिव्यांग थे। इसके बावजूद नियमों को ताक में रखते हुए जिला प्रशासन द्वारा उनकी ड्यूटी कोरोना सर्वे कार्य मे लगाई गई थी। उनके अनेकों बार ड्यूटी बदलने हेतु निवेदन करने के बाद भी शिक्षा विभाग व कोरबा प्रशासन के द्वारा किसी प्रकार की सुनवाई नहीं की गई व नियमों की अवहेलना करते हुए जबरन ड्यूटी करने पर मजबूर किया गया। अपनी ड्यूटी के दौरान वो कोरोना संक्रमित हो गए और दो दिन पहले इलाज के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। स्वर्गीय बंजारे की मृत्यु की खबर मिलते ही समूचे शिक्षक वर्ग तथा समस्त शिक्षक संघ व शासकीय कर्मचारी संघों में आक्रोश व्याप्त हो गया। सभी इस अकाल मृत्यु के लिए अधिकारीयों व कोरबा प्रशासन को दोषी ठहराते नजर आए।
मामले की पड़ताल करने पर पता चला स्वर्गीय बंजारे की ड्यूटी विद्यालय के प्राचार्य द्वारा उपलब्ध कराई गई सूची के आधार पर व विकासखंड शिक्षा अधिकारी के अनुमोदन के पश्चात तानाखार में कोरोना सर्वे में लगाई थी। प्राचार्य के द्वारा बनाई गई सूची को विकासखंड शिक्षा अधिकारी के अनुमोदन पश्चात एसडीएम पोड़ीउपरोड़ा को भेजा गया था। जिनके कार्यालय से जारी आदेश के परिपालन में तानाखार पंचायत दल क्रमांक 1 में सधवा कुमार की ड्यूटी लगी थी।
वहीं शिक्षक की मृत्यु हो जाने के पश्चात विकासखंड शिक्षा अधिकारी द्वारा इस मामले से अपना पल्ला झाड़ते हुए पूरा दोष विद्यालय के प्राचार्य के ऊपर मढ़ा जा रहा है। बता दे कि यह शासन का ही नियम है की दिव्यांग, गर्भवती व शिशुवती महिलाओं तथा अन्य व्यक्ति जो किसी गंभीर बीमारियों से ग्रसित है उनकी ड्यूटी जोखिमपूर्ण कार्यों में नहीं लगानी है। इसके बावजूद प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा 60% दिव्यांग मृतक सधवा बंजारे की ड्यूटी कोरोना सर्वे में लगाई गई थी।
ज्ञात हो कि कुछ दिवस पूर्व कोरबा के शिक्षकों द्वारा जिला शिक्षा अधिकारी पर एक मौखिक तुगलकी फरमान जारी करने का आरोप लगाया गया था, जिसमें जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा शिक्षकों पर कोरोना काल में ड्यूटी करने के लिए दबाव बनाया गया था चाहे उनके घर में ही कोई व्यक्ति संक्रमित क्यों ना हो गया हो। अपने फरमान में जिला शिक्षा अधिकारी ने शिशुवती महिलाओं, गर्भवती महिलाओं व दिव्यांग शिक्षकों को भी ड्यूटी करने हेतु बाध्य किया था नही तो उनके वेतन में कटौती व वेतन रोकने की कार्यवाही किए जाने की चेतावनी दी थी। इसी बीच एक शिक्षिका का वीडियो वायरल हुआ जिसमे शिक्षिका के बालक के कोरोना संक्रमित होने के बाद भी उन्हें ड्यूटी पर आने के लिए मजबूर करने की बात सामने आई थी, जिसपर कोरबा प्रशासन की खूब किरकिरी भी हुई थी।
जिला शिक्षा अधिकारी के इस मौखिक फरमान के विरुद्ध संयुक्त शिक्षक संघ व अनेक शासकीय कर्मचारी संघों ने प्रदेश के मुख्यमंत्री, राजस्व मंत्री व कोरबा विधायक तथा कोरबा कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा था परंतु इस विषय पर आज दिनांक तक किसी प्रकार की कार्यवाही तो क्या टिप्पणी भी किसी के द्वारा नहीं की गई। शासन और प्रशासन की इसी बेरुखी का नतीजा यह हुआ कि एक निर्दोष दिव्यांग शिक्षक को जो अपने परिवार का इकलौता भरण पोषणकर्ता था अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।
अपने सहकर्मी के मृत्यु के पश्चात अब शिक्षकों में भारी आक्रोश देखने को मिल रहा है। अनेकों शिक्षक संघ व शासकीय कर्मचारी संघों ने जिला प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए दिव्यांग मृतक शिक्षक की कोरोना सर्वे में ड्यूटी लगाने वाले अधिकारियों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही की मांग की हैं। इसी कड़ी में अखिल भारतीय सतनामी युवा कल्याण समिति ने भी जिला प्रशासन से संबंधित अधिकारियों पर कठोर कार्यवाही की मांग करते हुए हत्या के प्रयास का अपराध दर्ज कर गिरफ्तारी की मांग की है। कार्यवाही के अभाव में समिति द्वारा उग्र आंदोलन करने की चेतावनी दी गई है।
प्रशासनिक हत्या, शासन के नियम के खिलाफ डयूटी लगी
अपने शिक्षक सहकर्मी की मृत्यु से दुखी व आक्रोशित शिक्षकों ने कहा कि एक ओर शासन नियम बनाता है कि दिव्यांग कर्मचारी की कोरोना में ड्यूटी नही लगाना है। पर दूसरी ओर शासन के नुमाइंदे ही इसका पालन नहीं करते। प्रशासनिक अधिकारीयों की मनमानी और तानाशाही पूर्ण रवैय्ये के एक और शिक्षक सधवा बंजारे जी शिकार हो गए। उन्होंने आरोप लगाया की अभी भी दर्जनों विकलांग और गर्भवती शिक्षक ड्यूटी कर रहे हैं और हमारे अधिकारीगण आँख मूंदकर अपना तानाशाही रवैया जारी रखे हुए हैं। साथी की मौत से आहत शिक्षकों ने पूछा की क्या कभी इन अधिकारियों की आत्मा, इनका जमीर हमारे शिक्षक साथियों की मौत के लिए खुद को जिम्मेदार मानेगी?
चिर निंद्रा में कोरबा कलेक्टर.. ना शिक्षक की मृत्यु पर जताया शोक ना ही कभी फरमान का किया खंडन व जताई आपत्ति
इस पूरे प्रकरण में जो सबसे चौंकाने वाली बात लगी वो यह कि शिक्षकों व शासकीय कर्मचारी संघ द्वारा जिला शिक्षा अधिकारी के मौखिक फरमान के विरुद्ध जब कोरबा कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा गया तो उनके द्वारा ना ही कभी इस फरमान का खंडन किया गया ना ही इसे लेकर कभी कोई आपत्ति जताई गई। इतना ही नहीं उन्होंने तो शिक्षकों के ज्ञापन पर किसी प्रकार की कार्यवाही करना भी मुनासिब नहीं समझा। इसी बीच खबरें यह भी आने लगी शिक्षकों से करोना काल में ड्यूटी हटाने के नाम पर वसूली का कार्य भी किया जा रहा था। अब सवाल यह उठता है की कहीं जिला शिक्षा अधिकारी के द्वारा लिखित की जगह मौखिक आदेश जारी करना एक सोचे समझे षड्यंत्र के तहत शिक्षकों पर दबाव बनाकर, ड्यूटी बदलने के नाम पर अवैध वसूली करने का खेल तो नहीं था, ताकि साँप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे।
जिले के शिक्षकों के बीच इस बात की जमकर चर्चा हो रही है कि यदि इस प्रकार का कोई आदेश या फरमान जिला शिक्षा अधिकारी के द्वारा जारी नहीं किया गया था तो फिर कोरबा कलेक्टर ने शिक्षकों द्वारा ज्ञापन देने पर इस आरोप का खंडन क्यों नहीं किया? क्या कोरबा कलेक्टर को यह ज्ञात नहीं था की प्रशासन द्वारा दिव्यांग शिक्षकों के साथ साथ गर्भवती व शिशुवती महिला शिक्षकों को भी कोरोना सर्वे के कार्य में लगाया जा रहा है? और अगर जानकारी थी तो उनके द्वारा नियमों की इस गंभीर अवहेलना पर किसी प्रकार की कार्यवाही क्यों नहीं की गई ?
बहरहाल इस पूरे मामले में कलेक्टर की चुप्पी रहस्य बनी हुई है। कलेक्टर के अलावा जिले के विधायक और राजस्व मंत्री के द्वारा भी इस विषय पर किसी प्रकार की टीका टिप्पणी नहीं की गई ना ही कोई कार्यवाही देखने को मिली। इनमें से किसी ने भी अगर शिक्षकों की मांग पर ध्यान दिया होता या अपनी जिम्मेदारी निभाई होती तो शायद हो सकता था कि एक बेकसूर को अपने जीवन से हाथ धोना नहीं पड़ता।
बहुत देर कर दी हुजूर आते आते… मौत के बाद बैकफुट पर प्रशासन, जारी किया आदेश
2 दिनों में 2 शिक्षाकर्मी सधवा बंजारे व सुषमा लहरे की मृत्यु के पश्चात कोरबा जिला प्रशासन बैकफुट पर आ गया। दिव्यांग शिक्षक की मौत का मामला तूल पकड़ता देख आनन-फानन में पोड़ी उपरोड़ा एसडीएम के द्वारा देर रात 20 मई को आदेश जारी किया गया जिसके अनुसार 40 प्रतीशत से अधिक दिव्यांग, गर्भवती महिला कर्मचारी व 6 माह की शिशुवती महिला कर्मचारियों को फील्ड वर्क, सर्वे कार्य व अन्य जोखिमपूर्ण कार्य से हटाकर, कम जोखिमपूर्ण कार्यों अथवा कार्यालयीन कार्यों में ड्यूटी लगाई जावेगी।
यही तत्परता यदि प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा समय रहते दिखाई गई होती तो शायद जिले के कई शिक्षकों समेत सधवा बंजारे व सुषमा लहरे का जीवन बचाया जा सकता था।