देबू की जमीन का सीमांकन करने पहुंचे अधिकारी, लोगों ने किया विरोध
टाटा एस्सार की तरह देबू की जमीन भी वापस करने की मांग
कोरबा 15 मई. कोरबा तहसीलदार के नेतृत्व में राजस्व विभाग की एक टीम ग्राम रिसदी के समीप 20 साल पहले देबू के लिए अधिग्रहित जमीन के सीमांकन के लिए पहुंची. जानकारी होने पर ग्राम रिसदी के ग्रामीणों ने एकत्रित होकर इसका पुरजोर विरोध किया. लोगों का कहना था कि सख्त लॉकडाउन के बीच दबे पाँव, देबू की जमीन का सीमांकन किया जा रहा है, जो शासन की मंशा पर संशय को जन्म दे रहा है. लोगों का कहना है कि सीमांकन के साथ-साथ खेतों की मेड़ को जेसीबी चलाकर तोड़ा जा रहा है और जमीन को लेवल किया जा रहा है जिसका हम विरोध करते हैं.
देबू द्वारा उद्योग लगाने के लिए लगभग 20 वर्ष पूर्व जमीन का अधिग्रहण किया गया था. उसके बाद किसी प्रकार का कोई उद्योग स्थापित नहीं किया गया. इसलिए ग्रामीण अधिग्रहण की शर्तों के तहत उस जमीन को अपना बता रहे हैं. वहीं अधिकारियों का कहना है कि हाईकोर्ट के आदेश पर वे देबू की जमीन का सीमांकन करने पहुंचे हैं.
लेकिन सख्त लॉकडाउन के बीच अधिकारियों द्वारा बरसों पुरानी देबू की जमीन का सीमांकन करने पहुंचना अपने आप में कई संदेह को जन्म देता है. लोगों का कहना है कि देबू के साथ हुए अनुबंध के अनुसार उन्हें अधिग्रहण के 7 वर्षों के भीतर उद्योग स्थापित करना था. जिसके लिए लगभग 300 एकड़ जमीन अधिग्रहित की गई थी. लेकिन देबू द्वारा कोई उद्योग स्थापित नहीं किया गया.
जानकारी के अनुसार उद्योग में भू विस्थापितों को नौकरी देने और मुआवजे का प्रावधान था. उद्योग स्थापित नहीं होने से लोगों की पीढ़ियां समाप्त हो गईं. अब बरसों से लोग इस जमीन पर खेती करते आ रहे हैं जिसमें शासन ने ऋण स्वीकृत करने के साथ-साथ समर्थन मूल्य पर धान की खरीदी भी की जाती है. ऐसे में अधिग्रहित भूमि पर देबू का कोई अधिकार नहीं रह जाता. अब ग्रामीण इस पर अपना अधिकार बता रहे हैं. लोगों की मांग है कि जिस प्रकार भूपेश सरकार ने टाटा एस्सार के लिए अधिग्रहित भूमि वापस की थी ,उसी प्रकार देबू के लिए बरसों पूर्व अधिग्रहित भूमि भी किसानों को यथावत वापस की जानी चाहिए.
ग्रामीणों के समर्थन में भाजपा के मंडल अध्यक्ष अजय विश्वकर्मा भी कार्यकर्ताओं के साथ पहुंचे. उन्होंने भी देबू की इस जमीन सीमांकन का विरोध किया है और शासन की मंशा पर सवाल खड़े किए हैं.