शानी की चिट्ठी@ विजय सिंह
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शानी का काला जल, दलपतसागर और उनकी चिट्ठियां लाला जगदलपुरी और ऱऊफ़ परवेज़ के नाम…
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विजय सिंह ,जगदलपुर
शानी का शहर जगदलपुर भूले से भी शानी को याद नहीं करता! हाँ उनके जन्मदिन पर शहर की एकाध साहित्यिक संस्थाएँ गोष्ठी- वोष्ठी कर याद करने की रस्म जरूर पूरा कर लेती हैं ! यहाँ तक जगदलपुर का दलपतसागर जिसकी पृष्ठभूमि और ठहरे हुए उथले जल से ” काला जल” जैसे विश्व प्रसिध्द उपन्यास का जन्म हुआ वह दलपतसागर भी ‘ शानी’ को भूल गया है! कभी आप दलपतसागर जायें और काला जल के उथले नीले पानी को देखना चाहें तो आपके हाथ निराशा ही आयेगी । लेकिन भारतीय साहित्य के निर्माता ‘ शानी’ ने इसी इस ठस और ठहरे उथले पानी को छूकर – जीकर ” काला जल” जैसा क्लासिक- ऐतिहासिक उपन्यास लिखकर जगदलपुर को, दलपतसागर को बाहरी दुनिया से जोड़ा! वह शहर जहां शानी पैदा हुए थे वह शहर आज ‘शानी’ को नहीं जानता ! यह इस समय की एक भयानक त्रासदी है कि लिखने – पढ़ने ,संवेदना और जीवन से शब्द गढ़ने वाले कलमकार को उसका अपना ही शहर विस्मृत कर देता है ….यह तो भला हो इस शहर के उन दोस्तों और रचनाकारों का जिन्होंने जीते जी शानी को कभी विस्मृत नहीं किया .. आज मैं जगदलपुर के प्रख्यात लोक साहित्यकार लाला जगदलपुरी जी और चर्चित शायर रऊफ परवेज़ जी को याद करना चाहूंगा ! जब भी मैं लाला जी और रऊफ परवेज़ जी के पास बैठा उन्होंने मुझे शानी जी को लेकर रोचक संस्मरण और उनके साथ बिताये महत्वपूर्ण घटना का जिक्र किया ! हांलाकि शानी जी से मेरी कभी मुलाकात नहीं हुई जब मैंने लिखना पढ़ना प्रारंभ किया था 90 के आसपास तब शानी जी दिल्ली में रहा करते थे लेकिन मैंने शानी जी की तमाम कहानियां किताबें, संस्मरण सारा कुछ पढ़ा है और आज भी शानी को पढ़कर जीने की कोशिश करता रहता हूं … रचना संसार के बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि शानी जी की पहली कहानी ‘ बारात ‘ जगदलपुर के स्थानीय पत्र ‘ अंगारा’ में 1951 में छपी थी! इस पत्र का संपादन लाला जगदलपुरी जी किया करते थे !
अपनी कहानी भेजते हुए शानी जी ने लाला जगदलपुरी जी को एक पत्र लिखा था वह आप भी पढ़ें..
श्रध्देय लाला जी,
सादर वंदे
अरसे के बाद आपका पता लगा कि आप महासमुंद चले गये तथा एक पत्र का संपादन भार भी संभाले हुए हैं! सच बेहद खुशी हुई ! लाला जी, काश ” अंगारा ” की रोशनी धीमी न होती तो आपको अपना पत्र संपादन छोड़ दूसरे पत्र को अपनाना क्यों पड़ता? खैर, यही मंजूर था शायद! मेरे तुच्छ ह्रदय की सारी सहानुभूति ,हमदर्दी ,श्रृद्धा आपके साथ है । आपके पत्र के साथ वह कहानी जो आपको पसंद थी पुनः आपके पास भेज रहा हूँ ! वही ‘ बारात’ कहानी प्रकाशनार्थ प्रेषित कर रहा हूँ ! आशा है आप मेरी सेवा स्वीकार करेंगे! उस समय इसी कहानी को आपने संशोधन कर दिया था उसे ही फेयर कर प्रेषित कर रहा हूँ ! क्या आपके सेवक को आपके दर्शन होंगे! सच मैं निहाल हो उठूँगा यह समझकर कि आप हमें भूले ही नहीं ! कहानी प्रकाशनार्थ भेज रहा हूँ !
आशा है सेवक शीघ्र आपसे मिल सकेगा । विशेष कृपा
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आपका
शानी
जगदलपुर
06 / 08 / 51
शानी जी एक चिट्ठी उनके दोस्त रऊफ परवेज़ जी के नाम !यह चिट्ठी शानी जी की अंतिम चिट्ठियाों में से एक है……
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प्यारे परवेज़
तुम्हारा प्यार भरा ख़त मिल गया था वक्त पर ही! माफी चाहता हूँ कि इससे पहले चाहकर भी मैं तुम्हें लिख नहीं पाया हालांकि कोई दिन एेसा नहीं गुजरा जब मैंने याद न किया हो! शायद उसी दिन मुझे जहूर का भी खत मिला था! उसे भी मैं आज जवाब लिखने जा रहा हूँ ! इससे पहले जो खत मैंने लिखवाया था, उस वक्त मेरी तबीयत ख़राब थी! डायलिसिस का नया – नया मामला था अब तो इस कमबख्त मशीन के सहारे जिन्दगी जीते आठ माह होने जा रहे हैं ! अब मैं पहले से अच्छा हूँ और जिस हाल में भी अल्लाह ने रखा है, उसका शुक्रगुजार हूं ! चलता फिरता हूँ ,आसपास गाड़ी भी चलाता हूं और खुश रहता हूं एक लिखना पढ़ना छूटा हुआ है, उसे नये सिरे से पकड़ना चाहता हूँ ..
ईंशा अल्लाह बहुत जल्द यानी दो – चार दिनों में ही! एक किताब जो मेरी आत्मकथा है, उसे पूरी करना चाहता हूँ ! सच तो यह है कि उसे पूरी पूरी करने के बाद मेरे सीने से एक बोझ भी उतर जायेगा और लगेगा कि मैंने अपनी जिम्मेदारी पूरी कर दी!
यह अज़ीब बात नहीं कि इधर आय दिन मुझे सपनें में जगदलपुर और तुम लोग दिखाई देते हो! वजह साफ है कि अब मैं कभी भी वहां नहीं पहुंच पाऊँगा और पता नहीं तुम लोगों को अब देख भी पाऊँगा या नहीं ,अल्लाह से दुआ कर रहा हूँ कि एेसी सुरत बने और तुम भाभी जी के साथ दिल्ली आओ या यहां से गुजरों तो कितना अच्छा हो! कितना अच्छा हो कि जिन्दगी में कम से कम एक बार मेरे घर आकर दो चार रोज गुजारो पता नहीं, कुछ लगता सा है कि एेसा जरूर होगा !
भाभी से कहना कि उनके खिलाए हुए चीले अब भी याद हैं, चटनी का वो जायका और तुम मानो या न मानो सलमा से कहकर जब भी वैसी चटनी बनवाता हूँ भाभी की याद शामिल होती है। उन्हें मेरा बहुत बहुत सलाम कहना! बाबी को प्यार
यार जिंदा सोहबत बाकी!
तुम्हारा हमेशा की तरह
शानी
नई दिल्ली
24/ 10/1994
🛑शानी की चिट्ठियां ” सूत्र ‘ के पत्र अंक से साभार