राशन घोटाला उजागर होते ही हो गया खेला, भ्रष्ट नौकरशाहों के सहयोग का हुआ पर्दाफाश
खाद्य विभाग में भ्रष्टाचार का बोलबाला, कुर्सी तोड़ते, रिश्वत बटोरते बैठे हैं अधिकारी
कोरबा 14 अप्रैल। नगरीय क्षेत्र में रातखार शासकीय उचित मूल्य की राशन दुकान में घपले का पर्दाफाश होते ही राशन माफिया ने खेला कर दिया। इसमें जिले की भ्रष्ट नौकरशाही ने भी भरपूर सहयोग दिया। लॉक डाउन के दरम्यान नागरिक आपूर्ति निगम के गोदाम से चावल निकल कर राशन माफिया के गोदाम में पहुंच गया।
आपको बता दें कि न्यूज़ एक्शन ने 13 अप्रैल 2021 को नगरीय निकाय क्षेत्र में जय अम्बे महिला प्रा. सह. उ. भ. (आई डी.नंबर- 551001002) राताखार कोरबा की उचित मूल्य की दुकान का ऑनलाईन उपलब्ध आंकड़ा के आधार पर प्रमाणित भ्रष्टाचार को उजागर किया था। इस दुकान में खाद्यान्न नहीं होने के बावजूद उपभोक्ताओं को सामग्री वितरित किया जाना बता दिया गया था, जिसके चलते दुकान का खाद्यान्न स्टाक मायनस में प्रदर्शित हो रहा था।
उपलब्ध दस्तावेज के अनुसार 13 अप्रैल को जय अम्बे महिला समूह का चावल का स्टाक 6088.00 कि.ग्रा., अंत्योदय चावल 40.00 कि. ग्रा., चना 761.00 कि. ग्रा., नमक 1641.00 कि. ग्रा. स्टाक में मायनस दिखाई दे रहा था। जानकारों के अनुसार
इसका अर्थ यह होता है कि राशन दुकानदार को सामाग्री का आबंटन प्राप्त नहीं हुआ था, लेकिन उसने उपभोक्ताओं को उक्त मात्रा में खाद्यान्न का वितरण कर दिया था। ये आंकड़े खाद्य विभाग के ऑनलाईन पी डी एस पोर्टल में दर्ज थे।
न्यूज़ एक्शन ने सवाल उठाया था कि जब राशन दुकान में खाद्यान्न स्टाक में उपलब्ध ही नहीं था, तो उपभोक्ताओं को इतनी बड़ी मात्रा में चावल, चना, नमक आदि का वितरण कहां से कर दिया गया? क्या राशन दुकान संचालक ने बाजार से खाद्य सामाग्री खरीद कर उपभोक्ताओं में वितरण किया था? या उसके अधिकार में बड़ी संख्या में फर्जी राशन कार्ड हैं, जिसमें उसने वितरण बता दिया था? प्रबल संभावना इसी बात की है कि राशन दुकानदार के पास बड़ी संख्या में फर्जी राशन कार्ड हैं और उनमें खाद्य सामाग्री का फर्जी तौर पर वितरण करना दर्शा दिया गया था, लेकिन स्टाक और वितरित सामाग्री की गणना में भूल की वजह से स्टाक से अधिक मात्रा में सामाग्री वितरित करना दर्ज कर दिया गया, जिसके कारण ऊपर बतायी गयी मात्रा की एन्ट्री मायनस में हो गयी।
सूत्रों का यह भी कहना था कि जय अम्बे महिला समूह द्वारा लम्बे समय से खाद्यान्न की अफरा- तफरी की जा रही है। यहां तक कि महिलाओं के नाम पर समूह बनाकर एक कुख्यात राशन माफिया इस दुकान का संचालन कर रहा है। महिला समूह का भौतिक सत्यापन करने पर समूह की वास्तविकता का भी पता चल सकता है। यही नहीं, लम्बे समय से राताखार राशन दुकान में बरती जा रही अनियमितता का भी खुलासा हो सकता है।
राशन घोटाला उजागर होते ही हड़कम्प मच गया। लेकिन साथ ही साथ घोटाले पर पर्दा डालने का उपक्रम भी शुरू हो गया। इस उपक्रम के चलते पी डी एस से जुड़े नौकरशाहों का असली चेहरा भी उजागर हो गया। यह भी पता चल गया कि जिले में पदस्थ खाद्य विभाग का अमला सरकार से वेतन लेकर केवल कुर्सी तोड़ने और रिश्वत बटोरने में मशगूल है। पूरे जिले में पी डी एस में जमकर धंधली हो रही है। कहावत भी है- सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का? राशन माफिया भी निर्भीक होकर प्रतिमाह लाखो रुपयों का राशन घोटाला करने में मशगूल है।
राताखार का पी डी एस घोटाला सामने आते ही राशन माफिया और नौकरशाहों का काकस लीपापोती में जुट गया। देखते ही देखते रास्ता तलाश लिया गया। नागरिक आपूर्ति निगम के गोदाम से चावल जारी हो गया।लेकिन यह चावल राताखार की जगह खरमोरा सोसायटी में उतारा गया। इसकी पुष्टि ऑन लाइन पोर्टल में हो रही है। दरअसल जय अम्बे को राताखार के साथ संलग्नीकरण के नाम पर खरमोरा का राशन दुकान भी आबंटित करके रखा गया है। अब खरमोरा सोसायटी में स्टॉक ज्यादा है और राताखार में कम। लेकिन इसे स्टॉक कम होने का सजता हुआ कारण बताकर घोटाला पर पर्दा डालने का प्रयास के रूप में देखना चाहिए। राशन माफिया और खाद्य विभाग के अधिकारी कह सकते हैं कि राताखार सोसायटी में कोई घोटाला नहीं हुआ है। उसका चावल उसकी दूसरी दुकान खरमोरा में महफूज है। सतही तौर पर माना जा सकता है कि वास्तव में कोई घोटाला नहीं हुआ। लेकिन यह भ्रष्ट तंत्र का लीपापोती का असफल प्रयास ही कहा जायेगा। क्योंकि इस उपक्रम के बाद भी घोटाला का न तो पुराना सबूत नष्ट होता है और न ही नया सबूत छुपता है।
तथ्यों का विवेचन करें तो भ्रष्ट तंत्र ने भ्रष्टाचार का एक और सबूत परोस दिया है। पहला तो यह कि जो सामान सोसायटी को 13 अप्रेल को आबंटित किया गया उसका वितरण इस दिन से पहले कैसे हो गया? दूसरा, राताखार सोसायटी का खाद्यान्न, खरमोरा सोसायटी में क्यों उतारा गया? तीसरा, सोसायटी को एक साथ पूरा खाद्यान्न आबंटित क्यों नहीं किया गया? सवाल और भी हैं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि खाद्य विभाग का अमला कभी इन दुकानों की जांच भी करता है या सरकारी वेतन लेकर दफ्तर में कुर्सी तोड़ते बैठा रहता है? सूत्रों के अनुसार कोरबा नगर क्षेत्र में कई राशन माफिया हैं, जिन्हें खाद्य विभाग का संरक्षण प्राप्त है। कई तरह का बहाना बनाकर लोगों को खाद्य सामग्री से वंचित रखा जाता है और उसकी काला बाजारी की जाती है। प्रति माह लाखों रुपयों का खेला होता है। लेकिन खाद्य विभाग की पकड़ में कोई घोटाला नहीँ आता? न्यूज़ एक्शन का दावा है कि राशन वितरण का भौतिक सत्यापन कराया जाता है, तो एक बड़ा घोटाला उजागर हो सकता है।