संस्मरण @ विष्णुचंद्र शर्मा

‌संस्मरण: आदरणीय विष्णु चंद्र शर्मा जी

चंपा के फूलों से सजा घर


दिल्ली का प्रवास याद आता है कि कैसे हमने दिल्ली के भीड़भाड़ और व्यवसायिकता से पटे – बड़े महानगर को बहुत करीब से देखा …….और डरे भी…. कितना अजीब है न अपने देश का महानगर भी हमको डराता है…. दिल्ली के मुख्य स्टेशन पर जब हम उतरे.. बड़ी बेचैनी से लोगों को अपने अपने गंतव्य की ओर भागते हुए पाया.. हम यानि संजीव जी, भाभी जी, रजत, विजय, छोटा सूरज, शैलेश और एक दो लोग विष्णु चंद शर्मा जी के बुलावे पर साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित लघु पत्रिकाओं पर विचार विमर्श कार्यक्रम में दिल्ली पहुंचे थे ,दिल्ली आने के पीछे मुख्य मकसद तो विष्णु जी से मिलते हुए दिल्ली घुमना था… दिल्ली पहुंच कर सादतपुर जहां विष्णु जी रहते हैं उनके घर को खोजने में ही हमको डेढ़ से 2 घंटे लग गये थे.. दिल्ली के उस चमकीले शहर से उलट सादतपुर का इलाका बहुत ही अलग था बिल्कुल विष्णु शर्मा जी की तरह सादा , जीवन से भरा ..हमको पहचानता ,हमको छूता सादतपुर पहुंच कर हम डरे नहीं जी उठे थे.. सादतपुर ढूँढने की तकलीफ हम भूल चुके थे
दिल्ली के धूल भरे और अजनबीयत भरे माहौल से थके हम बहुत जल्दी से जल्दी विष्णु चंद शर्मा जी से मिलना चाहते थे…
जैसे तैसे हम टैक्सी में गलियों के अंदर पहुंच कर जब और गली के अंदर टैक्सी का जाना मुमकिन नहीं हुआ तब ऐसे में हम
वहीं उतर गए और पैदल उस गलियों की ओर बढ़ चले जहां शर्मा जी हम सब का इंतजार कर रहे थे…. कुछ दूर चलने पर विष्णु चंद्र शर्मा जी अपने गेट पर ताके हम सब का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे‌ …विष्णु चंद्र शर्मा जी के घर में चंपा फूल वाले आंगन से उनके उस बैठक में पहुंचे जहां कितने ही साहित्यिक दिग्गजों ने साहित्य के लिए चर्चा की होगी कितने हैं मनीषियों द्वारा साहित्य के लिए सार्थक और जीवंत बैठक से साहित्य के जनपद को उर्वर किया होगा ……. उसी बैठक में हम सब बैठकर फूले नहीं समा रहे थे, विष्णु जी से मिलकर वैसे ही हम सब जी उठे थे.. उनके चेहरे की खुशी और ताप से हमारी सारी थकान छू मंतर हो चुकी थी.. विष्णु जी के अहाते में खिला चंपा फूल हम सब से मिलकर खुश था……..विष्णु शर्मा जी के कमरे में उनकी पढ़ने वाली किताबों ,पत्रिकाएँ हमें टकटकी बांधे देख रही थी..

हम विष्णु जी को सुन रहे थे.. वे हमसे से पूछ रहे कि यहां आने में कोई तकलीफ तो नहीं हुई.. फिर छत्तीसगढ़ के मित्रों के बारे में उन्होंने पूछा.. हम सब तटस्थ बैठ उनकी बातों को सुन रहे थे. हम से कोई कुछ नहीं बोल रहा था.. हम तो उनके चेहरे हमसे मिलकर उनकी खुशी, उत्साह को छू रहे थे.. …….. अचानक विष्णु जी ने कहा अरे चाय बनाओ भाई …………..शैलेश ,उठकर अंदर किचन की तरफ बढ़ा गया और वापस लौटा तो चाय की प्यालियों के साथ …हम सब विष्णु जी की बातों में खोए हुए थे इसी बीच सूरज ने दूध की मांग कर दी ..….विष्णु जी से पूछ पड़ा क्या आपके घर दूध मिलेगा मुझे दूध पीना है………. एकाएक विष्णु जी खड़े हो गए और उन्होंने कहा हां हमारे घर में बहुत सा दूध है…… और हंस पड़े……. आपको भी पीने मिलेगा यह कह वह कमरे की ओर बढ़ने लगे……. हम सब ने उन्हें कहा आप बैठिए हम लोग देख लेंगे। तब तक महेश दर्पण जी भी विष्णु जी के घर पहुंच गए थे उन्होंने नाश्ता व्यवस्था की और सूरज के लिए दूध की भी। विष्णु शर्मा जी से बातचीत के दौरान उनका अकेलापन साफ-साफ शब्दों पर दिखाई देता था हालांकि की महेश जी और साथी उनके साथ बराबर बने हुए थे ………..फिर भी पत्नी के ना रहने की रिक्तता उनके चेहरे पर साफ -साफ नजर आता……. बातें ही बातों में कई बार उन्होंने अपनी पत्नी की यादों को दोहराया था। उनका अकेले रहने का दर्द साफ-साफ उनके चेहरे पर झलक रहा था। बातों ही बातों में हम दंतेवाड़ा में आयोजित सूत्र सम्मान समारोह में पहुंच गए कितनी सारी यादों को विष्णु शर्मा जी कहते जा रहे थे और हम तटस्थ सुन रहे थे। समारोह में विष्णु चंद्र शर्मा से मेरी पहली मुलाकात थी। अद्भुत सादगी से भरा सौम्य व्यक्तित्व से लबरेज दिल्ली की तथाकथित छवि को ध्वस्त करते एक बड़े कवि के सहजपन और सादगी से मैं वाकिफ हुई थी बड़े कवियों के बने बनाये तथाकथित स्वभाव, दंभ से चूर चूर समय में विष्णु की सहजता ने हमें, हमारे समय को जीवंत कर दिया था.. । बिना लाग लपेट बात करना और सीधी सीधी अपनी बात रखना विष्णु शर्मा जी के रचनात्मक गवाही थी,जनपद – लोक के लिए समर्पित विष्णु जी के सहज लेखन …से ……. कहीं से नहीं लग रहा था कि दिल्लीवासी है ……………..विष्णु शर्मा जी हम सबके बीच उसी तरह घुल मिल गये थे 2001 में बस्तर के सुदूर इलाका दंतेवाड़ा में आयोजित सूत्र सम्मान का और सम्मान पाने वाले कवि थे निर्मल आनंद का………. सूत्र सम्मान के अवसर पर हमारे और साथी पूरे छत्तीसगढ़ और भारत से इस समारोह में शामिल होने के लिए बस्तर के सुदूर इलाकों में आए थे। एक वाक्या मुझे याद आता है सभी सूत्र सम्मान के मुख्य अतिथि विष्णु चंद्र शर्मा जी के साथ सूत्र सम्मान समारोह के बाद के बाद खाना खाते खाते बहुत रात हो गई और अब सब आराम करने के लिए अपनी अपनी जगह जाने लगे विजय सिंह जी ने भी विष्णु चंद्र शर्मा जी से आराम करने का आग्रह किया और दंतेवाड़ा के गेस्ट हाउस में पहुंचाने जाने के लिए चलने कहा …….लेकिन यह क्या विष्णु शर्मा जी ने साफ इंकार कर दिया और कहा सारे साथी जब इसी धर्मशाला में रुके हैं तो मैं क्यों गेस्ट हाउस में जाकर आराम करूंगा …….नहीं मैं तो तुम लोग के साथ ही यहां जमीन पर बिछे हुए गद्दो पर आराम करूंगा…… और पास ही लगे हुए गद्दा पर पीठ पर तकिया लगाए आराम से लेट गये । सभी साथी अल्हादित थे और एक आदर्श भी बन पड़ा था कैसे बड़ा होना बड़ा होने को परिभाषित करता है सूत्र सम्मान के बाद दूसरे दिन बस्तर भ्रमण का आयोजन था साल की वन वृक्षों के बीच हमारी गाड़ियां दौडी जा रही थी और हम सब पूरे रास्ते अनेकों दिलचस्प किस्से और साहित्य के लिए ही चिंता हम सबको विरासत में सौपे जा रहे थे। साथ ही कह रहे थे विजय सिंह जी और साथी सभी मिलकर आप जो साहित्य की सेवा कर रहे हैं वह अद्भुत है मैं अब थकने लगा हूं और सर्वनाम को निरंतर निकालना है मैं चाहता हूं मेरे जीवित रहते ही इसे सही हाथ में सौंप दूं। छत्तीसगढ़ हर राजनीति से दूर केवल सहजता से साहित्य करता है और कोई लाग लपेट भी नहीं होता यहां के लोगों में एक सादगी है सच्चापन है ,साहित्य और रचना का असल जनपद छत्तीसगढ़ है यहाँ एक हफ्ते रहकर मैंने महसूस किया ,शर्मा बोले जा रहे थे और हम सब सुन रहे थे.. शायद यही से उन्होंने भूमिका बनाई कि सर्वनाम का आगामी अंक का कार्यभार रजत को सौंपकर अंक छत्तीसगढ़ के बागबाहरा से निकालने की… दन्तेवाड़ा से लौटकर शर्मा जी फिर से बागबाहरा गये और वहां से दुर्ग जहां मेरा मायका है । वहीं से उनकी दिल्ली के लिए ट्रेन थी.. दिल्ली के लिए ट्रेन में सवार होने से पहले दुर्ग के पदमानापुर वाले मेरे घर में जहां मेरे माता पिता रहते थे वहां उन्होंने कुछ समय गुजारा , फिर बड़े भारी मन से दिल्ली के लिए रवाना हुए उस समय मैं और विजय दुर्ग के घर में ही थे शर्मा जी को दिल्ली छोड़ने के लिए हम दुर्ग आ गये थे.. स्टेशन में ट्रेन की खिड़की के पास बैठे विष्णु जी के चेहरे में एक संतुष्टि और विश्वास का भाव दिख रहा था शायद उन्होंने सर्वनाम के लिए अपना उत्तराधिकारी खोज लिया था! विष्णु जी तो सादतपुर के घर को भी छत्तीसगढ़ के रचनाकारों के लिए ” छत्तीसगढ़ सदन ” का प्रस्ताव भी हमारे दिल्ली प्रवास में दिया था! करीब 3 या 4 घंटे हम विष्णु शर्मा जी के घर पर रहे महेश दर्पण जी से भी बहुत बातचीत हुई ,दर्पण जी कह रहे थे शर्मा जी की स्मृति कुछ धूमिल सी हो गई है बार-बार इलाहाबाद के अपने घर को याद करते हैं कहते हैं मेरी जड़े वहां है मैं वहां जाऊंगा। लेकिन उनका कोई भतीजा वहां रहता है वह शर्मा जी सही हाल-चाल नहीं लेता ऐसे में मैं उनकी इच्छा को कैसे पूरी करूँ फिर भी मैं जरूर इलाहाबाद उन्हें ले जाऊंगा महेश दर्पण जी कह रहे थे.. विष्णु चंद्र शर्मा जी के स्वास्थ्य पर भी बहुत चर्चा हमने की फिर देर शाम को हम सादतपुर के चंपा फूल वाले आंगन की खुशबू और विष्णु जी की सरलता, जीवंतता को छोड़कर वापस दिल्ली जैसे महानगर की ठस दिनचर्या में लौट आये थे! आधी रात को छत्तीसगढ़ के लिए हमारी वापसी थी.. दिल्ली स्टेशन को छोड़ते हुए मैं विष्णु जी को याद कर रही थी बार बार उनका हंसमुख चेहरा और बेहद सादगी से जीवन को जीने की उनकी दिनचर्या और रचना ताकत को याद कर रही थी.. ……

सरिता सिंह
बंद टाकीज के सामने
जगदलपुर
मो. 9826663595

Spread the word