विशेष: शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में अंतर क्या है? आइये जानें
यूं तो शिवजी की पूजा-उपासना करने के लिए हर दिन शुभ होता है लेकिन सावन, सोमवार, शिवरात्रि और महाशिवरात्रि का विशेष महत्व होता है। शिवरात्रि हर मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आती है लेकिन महाशिवरात्रि फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आती है, जिसे भोले के भक्त बहुत ही हर्षोर्ल्लास और भक्ति के साथ मनाते हैं। इस बार देशभर में महाशिवरात्रि का पर्व 11 मार्च दिन गुरुवार को मनाया जाएगा। महाशिवरात्रि के दिन शिवभक्त अपने आराध्य का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उपवास रखते हैं और रात्रि के समय जागरण करते हैं। आइए जानते हैं आखिर शिवरात्रि और महाशिवरात्रि के बीच क्या अंतर है।
शिवरात्रि और महाशिवरात्रि के बीच अंतर
हर माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है, इसे मासिक शिवरात्रि के नाम से जानते हैं। ऐसे में सालभर में 12 शिवरात्रि पड़ती हैं। पंचांग के अनुसार, जब सावम महीने में चतुर्दशी आती है तो बड़ी शिवरात्रि मनाई जाती है। इस तरह सभी शिवरात्रियों के अलावा सावन शिवरात्रि का भी विशेष महत्व है। साथ ही शिवरात्रि के दिन अपना बोध किया जाता है कि हम सभी शिव के अंश हैं और उनके ही संरक्षण में हैं।
महाकालेश्वर मंदिर में लगता है दीपस्तंभ
सभी शिवरात्रि में फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहते हैं। इस दिन को देशभर में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। महाशिवरात्रि के दिन ही उज्जैन में के महाकालेश्वर मंदिर में लोग दीपस्तंभ लगाते हैं। लोग दीपस्तंभ इसलिए लगाते हैं कि ताकि शिवभक्त शिवजी के अग्नि वाले अनंत लिंग का अनुभव कर सकें और जान सकें कि शिव का ना तो आदि है और न ही अंत।
शिव-पार्वती का विवाह
महाशिवरात्रि के दिन शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था, इसलिए यह दिन बेहद खास होता है और शिवजी को यह दिन बहुत प्रिय है। माता पार्वती की कठोर तपस्या के बाद शिवजी ने उनको पत्नी रूप में स्वीकार किया था और इस शुभ दिन पर विवाह किया था। इसलिए रात में कई जगह शिव बारात भी निकाली जाती है लेकिन ज्यादातर लोग केवल महाशिवरात्रि को इसी वजह से जानते हैं लेकिन इस पवित्र से दिन से कई कथाएं जुड़ी हुई हैं, जो दर्शाती हैं कि आखिर महाशिवरात्रि का पर्व महत्वपूर्ण क्यों है।
महाशिवरात्रि पर प्रकट हुआ था अग्नि-स्तंभ
ईशान संहिता के अनुसार, फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महादेव शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे और करोड़ों सूर्य के समान प्रभाव लेकर लिंग के रूप में स्थापित हुए थे। दरअसल ऐसा इसलिए हुआ था कि सृष्टि की शुरुआत में ब्रह्माजी और भगवान विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया था कि कौन श्रेष्ठ है। दोनों के विवाद के बीच एक विशाल करोड़ों सूर्य से भी तेज एक अग्नि-स्तंभ प्रकट हुआ, जिसको देखकर दोनों चकित रह गए। अग्नि-स्तंभ का पता लगाने के लिए ब्रह्माजी और विष्णुजी ने बहुत कोशिश की लेकिन दोनों नाकाम हो गए। फिर शिवलिंग से भगवान शिव ने दर्शन दिए। जिस दिन भगवान शिव ने दर्शन दिए, उस दिन फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि थी। उसी दिन से भगवान शिव का प्रथम प्राकट्य महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाने लगा।
पुरुष और प्रकृति का मिलन
शिव और माता पार्वती का विवाह महाशिवरात्रि के दिन होना यह एक पौराणिक घटनाओं और पुराणों में का उल्लेख किया गया है लेकिन इस दिन का महत्व इसलिए भी है कि महाशिवरात्रि शिव रूप अर्थात पुरुष प्रकृति यानी पार्वती के मिलन का दिन भी माना जाता है। इसी रूप में प्राचीक काल से शिव पूजा का महत्व चला आ रहा है, जिसका वर्णन सिंधु काल में भी देखने को मिलता है। पुरुष और प्रकृति के मिलन का दिन, जिसे सृष्टि के आरंभ का स्त्रोत माना गया है। महाशिवरात्रि का अन्य शिवजी के व्रतों और पूजा से भी ज्यादा महत्व रहा है। साल की 12 शिवरात्रि में पूजा का फल आप केवल महाशिवरात्रि के दिन विधि-विधान से पूजा करने पर प्राप्त कर सकते हैं।