एक्सपोज हुआ कथित किसान आंदोलन, अब हटेगा षड्यंत्रकारियों की शक्ल से पर्दा
नई दिल्ली 27 जनवरी। देश में अन्नदाता के नाम से ख्याति अर्जित करने वाले किसानों के साथ जनता की हमदर्दी ख़त्म होती नजर आ रही है। दिल्ली में जो हुआ उसने किसानों का असली चेहरा साफ़ कर दिया। करदाता और अन्नदाता के बीच अंतर सड़कों पर साफ साफ नजर आया। अब करदाता सरकार से मांग कर रहे है कि किसानों की नहीं बल्कि उनकी सुध ले। क्योंकि उन्ही के करों से मिलने वाली सब्सिडी से ये किसान अन्नदाता कहलाने लगे। असल में वे अन्न उत्पादक है। अन्नदाता तो सिर्फ परमात्मा है।
दरअसल किसानों की छवि आमतौर पर खेतों में काम करते हुए ही लोगों को भांति है। इसी के कारण ही उन्हें अन्नदाता का दर्जा मिलता है। लेकिन देश की राजधानी दिल्ली में 26 जनवरी को जब गणतंत्र दिवस का गौरव गान हो रहा था, उस वक्त दिल्ली में वो सब हुआ जिसकी उम्मीद भी किसी ने नहीं की होगी। किसानों ने शांतिपूर्ण तरीके से ट्रैक्टर रैली निकालने का वादा किया था। लेकिन सुबह होते ही हिंसा का सिलसिला शुरू हो गया।
सड़कों पर हिंसक ट्रैक्टर रेस लगाते नजर आये। कई इलाकों में नंगी तलवार लिए किसान आक्रमण करते नजर आए | इन किसानों ने हाथों में हथियार लेकर पुलिस वालों को भी मारा पीटा | गणत्रंत दिवस के दिन जनता की सुरक्षा में जुटी पुलिस लाठियों – डंडों से बुरी तरह से पिटते नजर आई। लाल किले से लेकर सड़कों में तिरंगे का अपमान करने में किसानों ने कोई कसर बाकि नहीं छोड़ी। ऐसी तस्वीरें दिन भर दिल्ली के कोने-कोने से सामने आई।
इन तस्वीरों और वीडियो देखकर लोगों को एक बारगी तो विश्वास ही नहीं हुआ कि ये देश का किसान है जिसे हम अन्नदाता कहते हैं… या कोई हिंसक गुंडे – बदमाश। लोगों को तो ऐसा लग रहा था कि हिंसक लोगों का गैंग हिंसा और अराजकता फैलाने में उतर आया है। इन्हे ना तो कानून का डर है और ना ही गणत्रंत दिवस की गरिमा का।
जब हिंसा भड़की तो दिल्ली पुलिस ने प्रदर्शन कर रहे किसानों से अपील की कि वे कानून को अपने हाथ में न लें और शांति पूर्ण तरीके से ट्रैक्टर रैली निकाले। पुलिस ने किसानों को ट्रैक्टर परेड के लिए उनके पूर्व-निर्धारित मार्गों पर जाने के निर्देश दिए। लेकिन ट्रैक्टर पर सवार किसान अपना वादा तोड़ते हुए सड़कों पर अराजक हो गए।
हजारों प्रदर्शनकारी कई स्थानों पर पुलिस से भिड़े जिससे दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में अराजकता की स्थिति उत्पन्न हुई। इस दौरान हिंसा हुई जबकि किसानों का दो महीने से जारी प्रदर्शन अब तक शांतिपूर्ण रहा था। बड़ी संख्या में उग्र प्रदर्शनकारी बैरियर तोड़ते हुए लालकिले पहुंच गए और उसकी प्रचीर पर एक धार्मिक झंडा लगा दिया जहां भारत का तिरंगा फहराया जाता है।
ट्रैक्टरों, मोटरसाइकिलों और कुछ घोड़ों पर सवार किसान निर्धारित समय से कम से कम दो घंटे पहले बेरिकेड तोड़ते हुए दिल्ली में प्रवेश कर गए जिसकी अनुमति प्राधिकारियों द्वारा दी गई थी। शहर में कई स्थानों पर पुलिस और किसानों के बीच जोरदार झड़प हुई। किसानों ने लोहे और कंक्रीट के बैरियर तोड़ दिये। ट्रेलर ट्रकों को पलट दिया। सड़कों पर ईंट और पत्थर बिखरे पड़े थे। यह इस बात का गवाह था कि जो किसान आंदोलन दो महीने से शांतिपूर्ण चल रहा था अब वह शांतिपूर्ण नहीं रहा।
किसानों के तांडव को देखकर देश के करदाता कहने लगे है कि तुम अन्नदाता नहीं हो बल्कि अन्न उत्पादक हो। यदि किसान खुद को अन्नदाता प्रचारित करते है तो उन्हें समझ लेना चाहिए कि करदाता के कारण ही इन्हे मुफ्त बिजली, पानी, कर्ज माफ़ी और कृषि के लिए भारी सब्सिडी मिलती है। किसानों का उत्पादन करदाताओं पर निर्भर होता है, बावजूद इसके करदाता कीमत चुकाकर अन्न खरीदते है। ये किसान उन पर कोई अहसान नहीं करते। उन्हें समझ लेना चाहिए कि दुनिया में अन्नदाता सिर्फ परमात्मा है, वे तो करदाताओं के बदौलत अन्नदाता के नाम की झूठी वाह वाही लूट रहे है।