कटघोरा में कैसे खिलेगा कमल, डगर में कांटे ही कांटे

न्यूज एक्शन। आसन्न विधानसभा चुनाव को लेकर प्रत्याशियों ने अपने पक्ष में माहौल बनाने पूरी ताकत झोंक दी है। अब जनता किसे अपना समर्थन देकर विधायक चुनती है यह तो 20 नवंबर को ही तय हो जाएगा। चुनावी नतीजों में उलटफेर की प्रबल संभावना है। इसी कड़ी में चुनावी महासमर में कोरबा जिला के कटघोरा विधानसभा सीट पर उलटफेर के कयास लगाए जाने लगे हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो कटघोरा क्षेत्र का पिछड़ापन इस चुनाव में भाजपा को भारी पड़ सकता है। पिछले कार्यकालों के सत्ता का सुख भी कांग्रेस के लिए इस बार हानिकारक साबित हो सकती है। ऐसे में साफ है कि भाजपा-कांग्रेस का नुकसान यानि सीधा फायदा जकांछ को मिल सकता है।
कटघोरा विधानसभा क्षेत्र की बात की जाए तो पिछला कार्यकाल क्षेत्रवासियों के लिए कोई खास सौगातों भरा नहीं रहा। क्षेत्र के विकास के लिए कई घोषणाएं हुई। मगर धरातल पर योजनाओं का अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। कटघोरा की बहुप्रतीक्षित जिला बनाने की मांग अब भी कायम है। यही कारण है कि विधायक लखन लाल देवांगन के प्रति विकास कार्यों को लेकर जनता का रोष है। जनता की नब्ज टटोलने पर विकास का पैमाना उनके विरोध की ओर इशारा कर रहा है। जर्जर सड़कें, बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा के अलावा अब भी भूविस्थापितों की मांग जस की तस बनी हुई है। पांच साल के विकास कार्यों के आंकलन के आधार पर कटघोरा में वोट तय होते हैं तो भाजपा को पिछले चुनाव की अपेक्षा नुकसान उठाने की उम्मीद है। जनचर्चा तो यह भी है कि पांच सालों में कटघोरा का नहीं बल्कि विधायक लखन लाल देवांगन का ही विकास हुआ है। रही बात कांग्र्रेस की तो भाजपा से पहले बोधराम कंवर कांग्रेस का परचम लहराते रहे हैं। उनके कार्यकाल के दौरान भी विकास की गति मंद रही। लिहाजा जनता ने उन्हें सत्ता से दूर कर दिया था। अब भाजपा-कांग्रेस दोनों के सामने ही यही स्थिति है। इस परिस्थिति में कटघोरा सीट पर जोगी कांग्रेस का दमखम जरूर नजर आ रहा है। इस सीट पर जकांछ ने पूर्व नगर पंचायत छुरी अध्यक्ष गोविंद सिंह राजपूत को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। गोविंद सिंह राजपूत की राजनीतिक छवि स्वच्छ मानी जाती है। उद्योगपतियों के खिलाफ कई लड़ाई लडऩे के कारण आमजन उनके खासा करीब माने जाते रहे हैं। अब जब भाजपा-कांग्रेस के खिलाफ जन आक्रोश उभर रहा है तो जोगी कांग्रेस एक विकल्प के रूप में सामने आ चुकी है। देखना होगा कि कटघोरा में इस बार क्या हाथ और कमल पर हल चलाता किसान भारी पड़ता है।
सड़क हादसों का ऊंचा ग्राफ
कटघोरा क्षेत्र की सड़कें काफी जर्जर है। जर्जर सड़कों पर पिछले पांच सालों से रफ्तार का कहर देखने को मिलता रहा है। जब भी हादसे होते थे लोगों का गुस्सा फूटता था। त्वरित तौर पर नो एंट्री का आश्वासन पुलिस प्रशासन व जनप्रतिनिधि आमजन को दे देते थे। दूसरे दिन से आश्वासन कागजों में ही सीमित साबित होती थी। लिहाजा न तो सड़क की स्थिति और न ही हादसों का ग्राफ कम हुआ। ऐसे में आम जनता का वोट भी चमचमाती सड़क व हादसों पर अंकुश लगाने के वादों को जा सकता है।

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