कोरबा जिले में कस्टम मिलिंग: प्रोत्साहन राशि घोटाला की तैयारी में जुटे राईसमिल मालिक, पिछले साल भी शासन को लगा चुके हैं करोड़ों रुपयों की चपत

जिला व्यापार एवं उद्योग केन्द्र और खाद्य विभाग भी घोटाले में है शामिल

कोरबा 8 दिसम्बर। जिले के कई राईस-मिल संचालक पिछले वर्ष कस्टम मिलिंग में राज्य सरकार को करोड़ों रूपयों का चूना लगाने के बाद एक बार फिर कूटरचना और धोखाधड़ी के जरिये करोड़ों रूपयों का घोटाला करने में जुट गये हैं। शासन और प्रशासन मामले की जांच कर निष्पक्ष कार्रवाई करता है, तो करोड़ों रूपयों की बचत हो सकती है। यही नहीं संबंधित राईस मिल संचालकों से करोड़ों की रिकव्हरी भी की जा सकती है। इस धोखाधड़ी में उद्योग विभाग और खाद्य विभाग की लिप्तता से इनकार नहीं किया जा सकता।

जानकारी के अनुसार जिले के कई राईस-मिल संचालक अपने मिल की उत्पादन क्षमता से कम क्षमता का पंजीयन खाद्य विभाग में कराने में जुटे हुए हैं। राईस-मिल के उत्पादन प्रमाण पत्र में दर्ज उत्पादन क्षमता से कम क्षमता का खाद्य विभाग में पंजीयन होने पर शासन को प्रोत्साहन राशि के रूप में करोड़ों रूपयों की आर्थिक क्षति पहुंचेगी। नियमानुसार जिला व्यापार एवं उद्योग केन्द्र से जारी उत्पादन क्षमता से कम क्षमता में इन राईस मिलों का पंजीयन नहीं किया जा सकता। लेकिन उद्योग केन्द्र और खाद्य विभाग की सांठ-गांठ से जिले के कई मिलों का पंजीयन उनको जारी उत्पादन प्रमाण-पत्र से कम क्षमता में करने की प्रक्रिया आरंभ कर दी गयी है।

न्यूज़ एक्शन के पास उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार जिले के राईस-मिल संचालक पहली बार राज्य शासन से धोखाधड़ी नहीं कर रहे। पिछले वर्ष भी उन्होंने जिला व्यापार एवं उद्योग केन्द्र और जिला खाद्य विभाग से सांठ-गांठ कर राईस मिलों का वास्तविक क्षमता से कम में खाद्य विभाग में पंजीयन कराया था। इसकी वजह से गत वर्ष भी शासन को करोड़ों रूपयों के प्रोत्साहन राशि की क्षति पहुंच चुकी है। दरअसल जिले के राईस मिल संचालकों ने पिछले वर्ष भी अपने मिल को जारी उत्पादन क्षमता प्रमाण पत्र से कम क्षमता के साथ मिल का पंजीयन कस्टम मिलिंग के लिए कराने में सफलता हासिल कर ली थी। उन्होंने धोखाधड़ी कर शासन से करोड़ों रूपयों का प्रोत्साहन राशि भी हासिल कर लिया। लेकिन इससे भी उनकी अर्थ पिपासा कम नहीं हुई। अब वे पिछले वर्ष से भी कम क्षमता में पंजीयन कराने के लिए प्रयासरत हैं। उन्होंने कम क्षमता में पंजीयन का आवेदन भी जमा कर दिया है और खाद्य विभाग से सांठ-गांठ कर पंजीयन कराने में जुटे हैं।

इस बड़े घोटाले को इस तरह समझा जा सकता है, कि कस्टम मिलिंग का दर शासन ने दस रूपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया है। कोई भी मिल अपनी क्षमता के अनुपात में दो माह का उत्पादन पूर्ण कर लेता है, तो उसे दस रूपये प्रति क्विंटल मिलिंग राशि के साथ तीस रूपये प्रति क्विंटल प्रोत्साहन राशि दिया जाता है। लेकिन कोई मिल अपनी क्षमता से कम उत्पादन करता है, तो उसे केवल दस रूपये के दर से भुगतान होता है। धोखाधड़ी की शुरूआत यहीं से होती है। जिले के कई राईस मिल संचालक अपने मिल की क्षमता से कम में खाद्य विभाग में पंजीयन कराते हैं और प्रोत्साहन राशि घोटाला करते हैं। इस घोटाला में उद्योग एवं खाद्य विभाग भी संलिप्त रहता है। यह गठजोड़ इतना दुस्साहसी है, कि शासन के लिखित आदेश का भी उल्लंघन कर राईस मिलों का कम क्षमता में पंजीयन कर देता है। सूचना का अधिकार के तहत उपलब्ध दस्तावेजों से पता चलता है कि कोरबा जिले के कई राईस मिल मालिक इस घोटाले में लिप्त हैं। पिछले वर्ष की ही जांच कर ली जाये तो करोड़ों रूपयों का कस्टम मिलिंग घोटाला उजागर हो सकता है। शासन और जनहित में न केवल इन घोटालों की जांच जरूरी है बल्कि संबंधित राईस मिल संचालकों से घोटाले की राशि की रिकव्हरी भी की जाने की आवश्यकता है।

Spread the word