सर पर 20 लाख का लोन और पति की हो गई मौत.. बीमा कंपनी ने फेर लिया मुँह.. उपभोक्ता आयोग से मिला अबला को न्याय
कोरबा। जिंदगी के सफर में कब कौन सा मोड़ आ जाए यह कोई नही जानता। यही कारण है कि आजकल हर व्यक्ति कोई अनहोनी घटित हो जाने की स्थिति में अपने स्वजनों का भविष्य सुरक्षित करने हेतु ना-ना प्रकार की बीमा पॉलिसी लेता है ताकि उसके बाद भी उसके परिवारजनों का जीवन सुखमय व चिंतामुक्त व्यतीत हो। परंतु कुछ पूंजीवादी मानसिकता वाली बीमा कंपनियाँ लोगों को अपना अधिकार प्राप्त करने के लिए भी दर दर भटकने के लिए मजबूर कर देती हैं। ऐसा ही कुकृत्य एक प्रतिष्ठित बीमा कंपनी द्वारा सीएसईबी निवासी महिला के साथ किया गया जिसे अपने पति की मृत्यु पश्चात बीमा राशि के लिए उपभोक्ता आयोग का दरवाजा खटखटाना पड़ा।
प्राप्त जानकारी अनुसार सीएसईबी निवासी श्रीमती प्रमिला अटारे के पति स्व. पूरनलाल अटारे द्वारा वर्ष 2019 में एच.डी.एफ.सी बैंक से 20 लाख रुपये का होम लोन लिया गया था। उक्त होम लोन को सुरक्षित करने हेतु एच डी एफ सी लाइफ इंश्योरेंस कंपनी द्वारा स्व. अटारे को क्रेडिट प्रोटेक्ट प्लस पॉलिसी दिया गया था जिसके लिए स्वर्गीय अटारे से वन टाइम प्रीमियम के रूप में 2,34,064/- रुपये का भुगतान भी लिया गया था। उक्त प्रीमियम भुगतान के पश्चात स्वर्गीय अटारे के नाम से कंपनी द्वारा 22 लाख 34 हजार 24 रुपये का एच डी एफ सी लाइफ क्रेडिट प्रोटेक्ट प्लस पॉलीसी बांड जारी किया गया था। पॉलिसी लेने के लगभग डेढ़ वर्ष पश्चात अगस्त 2020 में पॉलिसी धारक पूरनलाल अटारे की मृत्यु ही गई। पति की मृत्यु पश्चात बीमा पॉलिसी में नॉमिनी श्रीमती प्रमिला अटारे ने बीमा कंपनी के समक्ष समस्त दस्तावेजों के साथ बीमा राशि हेतु आवेदन किया गया जिसे बीमा कंपनी द्वारा जनवरी 2021 में यह कहते हुए निरस्त कर दिया गया की बीमा धारक स्व.अटारे पहले से ही किडनी की गंभीर बीमारी से ग्रसित थे जिसकी जानकारी बीमा कंपनी को प्रदान नही की गई थी।
श्रीमती अटारे के बार-बार निवेदन किए जाने के पश्चात भी बीमा कंपनी द्वारा बीमा राशि का भुगतान नहीं किया जा रहा था। अंततः श्रीमती अटारे के द्वारा अधिवक्ता मंजीत अस्थाना के माध्यम से जिला उपभोक्ता आयोग में परिवाद प्रस्तुत किया गया।
बीमा कंपनी नही प्रस्तुत कर पाई दस्तावेज
परिवादीनी की ओर से तर्क करते हुए अधिवक्ता मंजीत अस्थाना ने बताया की प्रकरण में बीमा कंपनी की ओर से ऐसा कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया गया जिससे यह प्रतीत हो की स्वर्गीय पूरनलाल अटारे ने पॉलिसी लेने के समय किडनी की गंभीर बीमारी से ग्रस्त होने की बात छुपाई थी। साथ ही बीमा कंपनी द्वारा प्रकरण में प्रस्तुत दस्तावेजों में यह स्पष्ट उल्लेख है कि बीमा धारक की मृत्यु हृदयघात से हुई है। ऐसे में बीमा कंपनी द्वारा, बीमा धारक को किडनी की बीमारी से ग्रसित होना बताते हुए, परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत दावे को निरस्त कर देना अनैतिक है। इसके अतिरिक्त उन्होंने यह भी बताया कि बीमा धारक की मृत्यु के पश्चात परिवादिनी द्वारा होम लोन की शेष किस्तों का भुगतान भी नियमित रूप से किया जाता रहा। बीमा कंपनी द्वारा बीमा राशि समय पर नहीं दिए जाने के कारण पारिवादिनी को होम लोन की किस्तों को भरने हेतु मानसिक व आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ा जिसके लिए भी बीमा कंपनी ही जवाबदेह है।
दोनों पक्षों के तर्क सुनने व प्रस्तुत दस्तावेजों के अवलोकन पश्चात उपभोक्ता आयोग द्वारा बीमा कंपनी को सेवा में कमी का दोषी पाया गया। उपभोक्ता आयोग ने बीमा कंपनी को बीमा धारक की मृत्यु के पश्चात परिवादिनी द्वारा भुगतान किए गए होम लोन की शेष राशि अथवा कुल बीमा राशि, साथ ही परिवादिनी को हुई मानसिक एवं आर्थिक क्षति के एवज में ₹25000 तथा वाद व्यय के रूप में ₹5000 का भुगतान 30 दिवस के भीतर करने का आदेश दिया है। निश्चित समय अवधि में भुगतान नहीं किए जाने पर उपरोक्त समस्त राशियों पर परिवाद प्रस्तुति दिनांक से 9% प्रतिवर्ष की दर से ब्याज का भुगतान भी बीमा कंपनी द्वारा किए जाने का आदेश आयोग ने दिया है।