जमीनी कार्यकर्ताओं की फौज वाले नेता लगाएंगे पार्टी की नैय्या पार

न्यूज एक्शन। कोरबा में जमीनी कार्यकर्ताओं वाले नेता कम ही हैं। जो अपने बूते पर चुनाव जीतने का दमखम रखते हैं। जमीनी कार्यकर्ताओं की फौज वाले नेताओं में जयसिंह अग्रवाल, रामसिंह अग्रवाल और जोगेश लांबा माने जाते हैं। आगामी विधानसभा चुनाव में ऐसे ही जमीनी कार्यकर्ताओं वाले नेता चुनावी नैय्या पार लगाएंगे। जकांछ से तो यह फायनल हो चुका है। कांग्रेस मेें लगभग तय है और भाजपा भी इसी फार्मूले पर जीत की कवायद कर सकती है। अगर इन दिग्गजों के बीच मुकाबला हुआ तो वह रोचक रहेगा। क्योंकि तीनों नेता ही मजबूत जनाधार सहित जमीनी कार्यकर्ताओं की फौज वाले नेता माने जाते हैं।
आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) ने कोरबा विधानसभा सीट के लिए वरिष्ठ नेता रामसिंह अग्रवाल को प्रत्याशी घोषित कर दिया है। कांग्रेस से जयसिंह अग्रवाल की टिकट भी पक्की मानी जा रही है। वर्तमान विधायक होने के साथ ही जयसिंह का दबदबा कोरबा सीट ही नहीं पूरे जिले में माना जाता रहा है। वहीं बात की जाए भाजपा की तो कोरबा सीट पर एक अनार सौ बीमार की स्थिति बनी हुई है। ऐसे में भाजपा संंगठन के सामने भी कोरबा विधानसभा सीट पर प्रत्याशी चयन में कई मुश्किलें आ रही हैं। मगर कांग्रेस और जकांछ की तर्ज पर भाजपा जमीनी कार्यकर्ता वाले नेता को प्रत्याशी बनाती है तो जीत का प्रतिशत बढ़ जाएगा। इस मामले में भाजपा के अन्य नेताओं से जोगेश लांबा काफी आगे हैं। जोगेश लांबा के जमीनी कार्यकर्ता काफी अधिक हैं। बूथ लेबल से लेकर जिलेभर में लांबा समर्थकों की काफी संख्या है। भाजपा में जल्द ही प्रत्याशियों के नाम घोषित होने वाले हैं। भाजपा संगठन भी शायद इस नब्ज को टटोल चुका है। टिकट की दौड़ में लांबा का नाम भी प्रमुखता से सामने आ रहा है। अगर भाजपा जोगेश लांबा को टिकट देकर कोरबा सीट फतह करने उतरेगी तो विरोधियों को कड़ी टक्कर मिलेगी ही। मुकाबला त्रिकोणीय होगा। क्योंकि जोगेश लांबा के सामने जकांछ और कांग्रेस के जो प्रत्याशी होंंगे उनके जमीनी कार्यकर्ता भी कम नहीं हैंं। अगर भाजपा ने जोगेश लांबा के अलावा किसी और को प्रत्याशी चुन ा तो यह त्रिकोणीय मुकाबला कहीं जकांछ और कांगे्रस के बीच सीधी टक्कर साबित न हो जाए। सूत्रों का कहना है कि भाजपा के सर्वे रिपोर्ट में भी जोगेश लांबा सशक्त दावेदार माने जा रहे हैं।
जोगेश लांबा पड़ेंगे भारी
वैसे तो राजनीतिक दल विचार मंथन के बाद प्रत्याशी तय करती है, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में हार के बाद जोगेश लांबा को कम आंकना बड़ी भूल साबित हो सकती है। पिछले विधानसभा चुनाव में स्थितियां परिस्थितियां अलग थी। जोगेश लांबा के समर्थन में एक भाजपा नेता द्वारा ही सक्रिय तौर पर कार्य किया गया था। बाकी पार्टी के अन्य नेताओं ने रस्मअदायगी के तौर पर कार्य किया। जिसका खामियाजा जोगेश लांबा और पार्टी को भुगतना पड़ा था। विपरीत हालात के बाद भी जोगेश लांबा ने कड़ी टक्कर दी थी। मौजूदा समय में हालात बदल चुका है। पिछले विधानसभा चुनाव में हार के बाद जोगेश लांबा ने स्वयं आत्म मंथन तो किया ही है, जमीनी कार्यकर्ताओं की फौज तैयार करने में भी जी जान एक कर दी थी। पार्टी में उनकी सक्रियता से संगठन मजबूत हुआ है।
महापौर रहा हार का कारण
अपनी पिछली हार को स्वीकारते हुए जोगेश लांबा का कहना है कि उन्होंने महापौर रहते हुए विधानसभा चुनाव लड़ा था महापौर से जन अपेक्षाएं अधिक होती है। क्षेत्र में विकास चाहे कितना भी हो अपेक्षाएं बढ़ती जाती है। विधानसभा चुनाव में इसी का नुकसान उठाना पड़ा था। कमोबेश यही स्थिति बनी रहती है। अन्य दल के साथ भी ऐसा हो सकता है।

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