गर्भ में लिये वचन का पालन करें जीवन में: आचार्य ललितवल्लभ

कोरबा 08 फरवरी। पंडित रविशंकर शुक्ल नगर के चिल्ड्रन पार्क में चल रहे श्रीमद भागवत कथा के तृतीय दिवस में श्रीधाम वृंदावन रसिक भागवत आचार्य श्री ललितवल्लभ नागार्च महाराज ने श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहा कि जीव जब जन्म लेता है तब माया साथ आती है। और मनुष्य अपने शरीर व माया को प्रधान मान लेता है । जबकि शरीर नश्वर है । कर्म सेवा करो निष्काम हो वही भक्ति है ।

जीव जब गर्भ में रहता है तब उसे गर्भ में प्रभु का दर्शन होता है। जब वह जन्म लेता है तब बोलता है कहां कहां हो कहां है जिसका मुझे गर्भ में दर्शन हो रहा क्या। गर्भ में जीव कहता है कि मुझे इसमें से निकालो मैं आपका भजन करूंगा लेकिन गर्भ के बाहर माया में लिप्त हो जाता है । और भूल जाता है कि मैंने वचन दिया था कि भजन करूंगा । अत: प्रभु आश्रय से कल्याण निश्चित है। प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए महाराज ने ध्रुव चरित्र सती चरित्र का वर्णन किया । ध्रुव चरित्र में बताया कि ध्रुव की तरह अटल प्रतिज्ञा होनी चाहिए। उन्होंने छोटी सी उम्र में प्रभु का साक्षात्कार में बताया कि अभिमन मुक्त यज्ञ कभी सफल नहीं होते। प्रजापति दक्ष ने अपने यज्ञ में भगवान शंकर का अपमान किया जिस कारण यज्ञ विध्वंस हुआ । आगे व्याख्या में बताया कि जड़भरत चरित्र नरको का वर्णन अजामिल उपा ख्यान प्रह्लाद चरित्र का वर्णन किया। भारत महिमा में कहा कि भारत भूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ है क्योंकि ना तो स्वर्ग में गंगा बहती है ना यमुना ना राम कथा होती है ना कृष्ण कथा । प्रह्लाद चरित्र में बताया कि भक्ति नौ प्रकार की होती है । जीव एक का भी सहारा ले ले तो उद्धार सुनिश्चित है।

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