सेवानिवृत्त कोल कर्मियों का पेंशन समीक्षा कर संशोधन नही: बैठे धरने पर


कोरबा 26 जुलाई। कोयला कर्मियों के पेंशन की समीक्षा कर संशोधन नहीं करने पर सेवानिवृत कर्मियों ने धरना शुरू कर दिया। एक माह तक चरणबद्ध ढंग से धरना दिया जाएगा। इसके बाद भी मांग पूरी नहीं होने पर उग्र आंदोलन का रास्ता अख्तियार किया जाएगा।

साउथ इस्टर्न कोलफिल्ड्स लिमिटेड एसईसीएल समेत कोल इंडिया से संबद्ध कंपनियों से सेवानिवृत अधिकारी-कर्मचारियों के पेंशन में अभी तक संशोधन नहीं किया गया है। नियमत: प्रत्येक तीन वर्ष में पेंशन की समीक्षा कर संशोधन किया जाना था, पर वर्ष 1998 से शुरू हुई पेंशन योजना की अभी तक समीक्षा नहीं की गई। इसे लेकर सेवानिवृत कर्मियों में असंतोष व्याप्त है। लगातार पत्राचार व वार्ता के बाद भी समस्या का निदान नहीं निकलने पर आल इंडिया कोल पेंशनर्स एसोसिएशन एआइएसीपीए, आल इंडिया एसोसिएशन आफ कोल एक्जीक्यूटिव,आइएसीई ने अन्य पेंशनभोगी व कल्याण संगठन के साथ मिल कर जंतर मंतर दिल्ली में आंदोलन की शुरूआत की है। संयोजक पीके सिंह राठौर ने बताया कि कोल खान भविष्य निधि संगठन सीएमपीएफ ओ को सेवानिवृत कोल कर्मियों के पेंशन की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। कर्मचारी व नियोक्ता के समान योगदान से एक पेंशन फंड बनाय गया था। प्रत्येक तीन वर्ष बाद इसकी समीक्षा की जानी थी, पर यह अभी तक नियमित रुप से नहीं किया गया। पिछले 24 साल से समीक्षा व संसोधन नहीं होने से सेवानिवृत कर्मियों को नुकसान झेलना पड़ रहा है। इसकी वजह से लगभग 50 हजार पेंशनभोगियों को प्रतिमाह एक हजार रुपये से कम मिल रहा है, जो दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नही है।

उन्होंने कहा कि गैर समीक्षा के कारण निधि का कुप्रबंधन हुआ। खदानों में मशीनीकरण शुरू होने के बाद कर्मचारियों की संख्या में कमी आते गई। जब सीएमपीएफओ शुरू किया गया तब खदान में कार्य करने वाले कर्मियों की संख्या सात थी, पर अब घट कर तीन लाख हो गई है। कोल मंत्रालय से संबंधित लोक लेखा समिति रिपोर्ट में पेंशन योजना में सुधार करने पर जोर दिया गया। इसके तहत केवल कोयले की बिक्री पर उपकर सेस लगाया गया, पर सेवानिवृत कर्मियों के पेंशन के संबंध में कोई निर्णय नहीं लिया गया। यही वजह है कि वर्ष 1998 में लागू होने के बाद आज तक पेंशन राशि एक समान है।

एसोसिएशन ने प्रबंधन के समक्ष कई बार पेंशन संशोधन करने का प्रस्ताव रखा। इसके साथ ही प्रधानमंत्री, कोयला मंत्री समेत 89 सांसद से संपर्क किया। इसमें 48 सांसदों ने कोयला मंत्री को सिफारिश पत्र भी लिखा, पर कोई निर्णय नहीं लिया गया। इसलिए मजबूरन आंदोलन का रास्ता अख्तियार करना पड़ रहा है। राठौर ने कहा कि एक माह तक चरणबद्ध धरना दिया जाएगा, इसके बाद उग्र आंदोलन का रास्ता अख्तियार किया जाएगा।

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