फसल और जनस्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहे राख, ग्रामीणों ने दी आन्दोलन की चेतावनी

कोरबा 11 मई। बिजली बेचकर भारी भरकम कमाई करने वाले कोरबा के पावर प्लांट हर दिन 13 लाख मैट्रिक टन राख उत्सर्जित कर रहे है, लेकिन इसके समुचित भंडारण को लेकर प्रबंधन गंभीरता नहीं दिखा रहे हैं। यहां से निकलने वाली राख आसपास के पर्यावरण के साथ-साथ लोगों के जनस्वास्थ और उनकी जीविका के विकल्पों के मामलों में नुकसान का कारण बनती जा रही है। समस्या से दो-चार लोगों ने प्रबंधन के खिलाफ  कड़े तेवर किये है।   

बिजली कंपनी की राख से कोरबा शहर के पास पंडरीपानी गाँव मे जन स्वास्थ्य और फसल के लिए खतरा पैदा हो गया है। राखड़ बांध के उचित प्रबंधन नही होने से पूरे इलाके में वातावरण प्रभावित हो रहा है। ग्रामीणों ने इसे लेकर प्रदर्शन शुरू कर दिया है। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद भाजपा के शासनकाल में कोरबा शहर के मीटर 500 मेगावाट क्षमता का डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ताप विद्युत केंद्र स्थापित किया गया था। कहां पर बिजली उत्पादन के लिए प्रतिदिन बड़ी मात्रा में कोयला का उपयोग किया जाता है । यहां से उत्सर्जित होने वाली राख के सुरक्षित भंडारण के लिए ग्रामीण क्षेत्र में ऐश पौंड तैयार किया गया है । शिकायत है कि यहां पर राख को उडऩे से रोकने के लिए उचित प्रबंधन नहीं किया गया है । नाराज ग्रामीणों ने इसे लेकर प्रदर्शन शुरू किया है । सरपंच के प्रतिनिधि राम सिंह कंवर ने बताया कि बिजली कंपनी के द्वारा लगातार वादाखिलाफी की जा रही है जबकि पंडरीपानी के रहने वाले नागेश्वर एकका ने आरोप लगाया कि सीएसईबी के द्वारा गांव में जो सुविधा देने की बात कही गई थी, इस पर अधिकारियों ने अमल नहीं किया फिलहाल ग्रामीणों के द्वारा सांकेतिक प्रदर्शन किया जा रहा है। समस्या का समाधान नहीं होने की स्थिति में उन्होंने आने वाले दिनों में उग्र आंदोलन करने की घोषणा की है     

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने बिजली घरों के प्रबंधन को निर्देशित किया है कि वहां से निकलने वाली राख का शत पतिशत उपयोग होना चाहिए। कोरबा जिले में बंद हो चुकी कोल माइंस को भरने से लेकर आसपास के सीमेंट कारखानों में इसका उपयोग करने के निर्देश दिए गए हैं। ईट निर्माण के लिए भी यह राख निशुल्क दी जा रही हैं। जिस तरह से राख की समस्या बनी हुई है उससे लगता है कि शत प्रतिशत उपयोगिता को लेकर ईमानदारी से काम नहीं हो रहा है और इसकी कीमत लोगों को चुकानी पड़ रहे हैं।

Spread the word