बारह साल पहले एक किसान ने शुरू की ड्रिप से खेती, अब पूरे गांव ने इसे अपनाया

कोरबा 16 मार्च। क्या ड्रिप सिंचाई पद्धति से सब्जी की खेती करते हुए पूरा गांव आर्थिक रूप से सक्षम और आत्मनिर्भर बन सकता है? इसका जवाब है हां, लेकिन इसके लिए आपको बिलासपुर से लगे ग्राम कोरमी जाना होगा। जहां 500 एकड़ में किसान ड्रिप के माध्यम से सब्जी की खेती कर रहे हैं। यहां शायद ही ऐसा कोई परिवार है, जो सब्जी की खेती करता हो और उसने ड्रिप सिंचाई पद्धति को न अपनाया हो। ग्रामीण तो दावा करते हैं कि ऐसा एक भी परिवार नहीं।

वैसे तो ग्राम कोरमी में वर्षों से ग्रामीण सब्जी की खेती करते आ रहे हैं लेकिन 12-13 साल पहले महज नौवीं तक पढ़े मनाराम धुरी ने ड्रिप पद्धति से खेती के महत्व को समझा। बड़े-बड़े सब्जी उत्पादकों की बाड़ियों में गए और दो साल तक इसका खूब अध्ययन किया। रानीगांव में सुरेंद्र कश्यप के काम से प्रभावित हुए और फिर सब्सिडी से तीन एकड़ में ड्रिप की खेती शुरू की। फायदा हुआ तो अपनी साढ़े 6 एकड़ के साथ ही किराए पर साढ़े तीन एकड़ और लेकर वे दस एकड़ में ड्रिप से खेती कर रहे हैं। उनका कहना है कि ड्रिप सब्जी की खेती में क्रांति ला सकता है। इस गांव में तो यहीं हुआ। वह पहले परंपरागत सिंचाई कर खेती करते थे लेकिन ड्रिप ने उन्हें आर्थिक रूप से इतना सक्षम बनाया कि बच्चों को अच्छी शिक्षा दिला सके।

इस पद्धति में लागत कम, उत्पादन अधिक और मेहनत भी कम है। उनके बाद सेवा राम, सन्यासी, प्रभाकर शुक्ला, महेंद्र सहित गांव के 90 फीसदी किसानों ने इस पद्धति को अपनाया और लाभ उठा रहे हैं। अब पड़ोसी गांव बसिया, धूमा, सिलपहरी के किसान भी प्रेरणा ले रहे हैं।

कोरमी का हर किसान मेहनतकश-गुप्ता : पूर्व उद्यान अधीक्षक महेंद्र गुप्ता बताते हैं कि उन्होंने कोरमी जैसा गांव नहीं देखा। इस पद्धति को इस गांव के किसानों ने जिस तरह से अपनाया है, वैसा मुझे नहीं लगता कि किसी गांव में अपनाया गया हो। वहां के किसान बेहद मेहनतकश है।

मजबूत अर्थव्यवस्था: सब्जी से तीन करोड़ की आय-ग्रामीणों ने बताया कि गांव में 700 एकड़ खेती का रकबा है। 650 एकड़ में खरीफ सीजन में धान की खेती होती है। धान बेचने पर 2500 रुपए प्रति क्विंटल की दर से किसानों को 2 करोड़ 44 लाख रुपए करीब मिलता है। बाकी सीजन में 500 एकड़ में सब्जी उगाते हैं। मौसम अच्छा रहा तो सब्जी से सालाना करीब तीन करोड़ रुपए की आय होती है। फूल गोभी व टमाटर की प्रमुख खेती होती है।

बढ़िया समन्वय: पानी देकर चुकाते हैं जमीन का किराया,फ्री में सब्जी-किसानों का कहना है कि सभी में आपस में अच्छा समन्वय है। जो किसान सब्जी की खेती नहीं करते, उनसे हम किराए पर उनकी खेत ले लेते हैं और खरीफ सीजन में अपने ट्यूबवेल से सिंचाई के लिए पानी देते हैं। अब इसे आप जमीन का किराया भी कह सकते हैं। उस पर संबंधित परिवार को सब्जी भी फ्री में देते हैं।

सक्षम किसान: खुद फिटिंग कर बचाते है रुपए : ढाई एकड़ में ड्रिप से सब्जी उगाने वाले जेठूराम के मुताबिक ज्यादातर छोटे किसान हैं। खुद रुपए लगाकर ड्रिप लगवाते हैं। एक एकड़ में 30 हजार रुपए खर्च आता है। जो सक्षम है, वे भी अनुदान नहीं ले रहे हैं।

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