कल कहीं कोई फूल खिला….@ डॉ. सधीर सक्सेना

ज्यादा पुरानी बात नहीं है। वह इतनी ताजा है कि उसे सहज ही ऊंगलियों की पोरों पर गिन सकते हैं:

दक्षिण भारत का तटीय नगर विशाखापटनम। शब्द-लाघन से वाइजाग। इस्पात संयंत्र के आगे एक वीरान भूखण्ड था। कोई बसाहट नहीं। सड़क तो क्या पगडंडी भी नहीं। न बिजली के खंबे। न चांपाकल। कोई नामकरण नहीं, यहाँ तक कि कोई
पिन कोड भी नहीं….

यह अविश्वसनीय प्रतीत होता सच अब दूसरे अविश्वसनीय सच में बदल चुका है। यह सच विस्मयकारी है। वह हैरतअंगेज है कि वाइजाग में देखते ही देखते एक नामुमकिन मुमकिन हुआ है। वह मान‌वीय संकल्प, मेधा और सामूहिक श्रम से मूर्तिमंत हुआ सुन्दर सपना है। दुनिया आज उसे एएमटीजेड के नाम से जानती है। भारत की धरती पर साकार हुए एक खूबसूरत ख्वाब की अनूठी दास्तान है एएमटीजेड। आकाश में लहराते विशाल तिरंगे के तले कारीब पौने तीन सौ एकड़ भूभाग में फैला यह परिसर भारतीय प्रतिभा और कौशल की जीती-जागती परिणति है। सरसब्ज परिसर में विन्यस्त लगभग सवा सौ ईकाइयों ने मेडिकल टेक्नालाजी के क्षेत्र में भारत को ऐसी सुनहरी पायदान पर खड़ा कर दिया है कि हम सिर्फ दांतो तले ऊंगली नहीं द‌बाते, बल्कि गर्वीली अनुभूति की अनिर्वच पुलक से भर उठते हैं।

हर निर्माण समय मांगता है। एएमटीजेड यकीनन समय के तकाजे को पूरा करने का उपक्रम है, लेकिन बिला शक इसने घड़ी की सुइयों को पीछे छोड़ दिया। कीर्तिमान समय में कीर्तिमान रचनाएं। यशस्वी वैज्ञानिक प्रतिभा डॉ. कलाम के नाम पर निर्मित डॉ. कलाम कन्वेंशन सेंटर समय से होड़ का प्रतीक है।

कहते हैं कि प्रकाश और ध्वनि की गति सबसे तीव्र होती है। उसका विस्तार भी अपरिमित है। एएमटीजेड में हमें बरबस चप्पे-चप्पे पर इसका परिचय और प्रमाण मिलता है। एएमटीजेंड की बदौलत भारत आज हेल्थ- केयर के क्षेत्र में विश्व में सुपरिचित और बड़ा नाम है। वह उस पायदान पर जा खड़ा हुआ है, जहाँ पहुंचना कुछ साल पहले तक कोरी कल्पना थी। वह सन् 2016 के शुरूआती दिनों का एक सर्द दिन था, जब इंडिगो की उड़ान से दिल्ली से  एक टोली विशाखापटनम पहुंची थी। इसके बाद जो कुछ हुआ, उसी की रोमांचक और रोचक गाथा है ‘मेड उन ‘लॉकडाउन’। इस गाथा के अनेक पात्र हैं। गाथा में अनेक अध्याय है। कुछ क्षेपक भी हैं। कथानक दिलचस्प है। वह  मनुष्य के अदम्य हौसले की कई पड़ावों से गुजरती कथा है। लेकिन उसमें ऐसे भी प्रसंग है, जो दर्शाते हैं कि साहस और संकल्प हो तो दैव भी सहायक होता है। इसी का परिचायक है कि निर्माण के दौरान एकदा पूरा वाइजाग भीगता है, लेकिन एएमटीजेड में  कतरा तक नहीं गिरता। इसे क्या कहेंगे कि 14-15 दिसंबर, सन् 2018 को चक्रवात थमा रहता है और उद्‌घाटन कायक्रम का समापन होते हुए तूफान और बारिश का
कहर शुरू हो जाता है।

एएमटीजेड आज चिकित्सा प्रॉदयोगिकी की पाटनगरी या राजधानी है। सनद रहे कि मेड टेक सिटी मात्र 342 दिनों में बना है और डॉ. कलाम कन्वेंशन सेंटर ने केवल 78 दिनों में आकार ग्रहण किया है। इमारतों के उठने और मशीनों की स्थापना का सिलसिला मुसलसल जारी है; अबाध, अहर्निश। अब वहाँ अनुसंधान केन्द्र, प्रयोगशालाएं और उपकरण निर्मात्री ईकाइयां ही नहीं हैं, वरन अस्पताल और छात्रावास भी है। शीघ्र विद्यापीठ भी होगा। परिसर में सुमधुर सिने- गीतों की धुनें गूंजती रहती है, जो आह्लादकारी वातावरण की सृष्टि करती है।

एएमटीजेड आज जैसा है, वैसा कल नहीं रहेगा, क्योंकि नवाचार उसकी वृत्ति है। इसमें निरंतर नया और नया जुड़ता रहेगा। नये भवन बनेंगे। नये यंत्र आयेंगे। नये लोग आयेंगे, लेकिन सबका अभीष्ट एक ही होगा। ‘मेड इन लॉकडाउन’ ने सिद्ध कर दिया है कि आपदा ही अवसर है। यह लिखते वक्त मुझे पार्श्व में बजता गीत सुनाई दे रहा है: ‘मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिये।’ इस वेला में मुझे बचपन में सुनी कहावत भी याद आ रही है कि हजार मील का सफर एक छोटे से कदम से शुरू होता है। यहां यह जिक्र भी जरूरी है कि नये-नये एम ओ यू यानि अनुबंध पत्रों का क्रम लगातार जारी है। अब एएमटीजेड एक फूल नहीं, विशाल  गुलिस्तां है, जहाँ रंग, रूप, रस और गंध के खूबसूरत और अलबेले फूलों के खिलने का दौर जारी है।

तो ‘मेड इन लॉकडाउन’ हिन्दी में आपके हाथों में है। ध्येय है कि एएमटीजेड की अभिनव- गाथा वैज्ञानिकों, चित्सिकों और अंग्रेजी-पाठकों के साथ-साथ हिन्दी पाठकों यानि वृहत्तर समाज तक पहुंचे। हिन्दी में प्रस्तुति दुरुह रही, क्योंकि वैज्ञानिक एवं तकनीकी पारिभाषिक शब्दावली को अपनाना अपरिहार्य था। फिर भी मुझे यकीन है कि यह गाथा पढ़कर हम सबको गर्व की अनुभूति होगी। जहां तक निजी अनुभूति का प्रश्न है, ‘मेड इन लॉकडाउन’ की हिन्दी में प्रस्तुति से मुझे जिस तोष का अनुभव हुआ है, उसे शब्दों में व्यक्त करना कठिन है। प्रसंगवश, इस समय और श्रम साध्य उपक्रम में क्रियात्मक सहयोग के लिए मैं अनुजवत रईस अहमद लाली का आभारी हूं, जिनका
अनुल्लेख अकृतज्ञता होगी। एएमटीजेड हमारे लिए चिकित्सा प्रोद्योगिकी का तीर्थ है और यहां सक्रिय सभी छोटे-बड़े कार्यकर्ता हमारे पुरोधा है, जो हमारी बधाई एवं शुभकामनाओं के अधिकारी हैं…

डॉ. सुधीर सक्सेना

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