Uncategorized चुनाव 23: राजस्थान @ सुधीर सक्सेना काम किया दिल से, (क्या) कांग्रेस फिर से..? Gendlal Shukla October 13, 2023 चुनाव 23: राजस्थान काम किया दिल से, (क्या) कांग्रेस फिर से…? सुधीर सक्सेना मरुधरा राजस्थान जाइये तो एक होर्र्डिंग आपको राजधानी जयपुर से लेकर तमाम नगरों में प्रमुखता से दिखाई देगा और मुमकिन है कि वह होर्र्डिंग दूर और देर तलक आपका पीछा करता रहे। इस होर्डिंग की इबारत बहुत संक्षिप्त है, लेकिन इस छोटी-सी इबारत का संदेश बड़ा है और उससे भी बड़ा है उसमें निहित प्रश्न। इबारत है ‘काम किया दिल से, कांग्रेस फिर से’ गिने-चुने शब्द… सादा इबारत। मगर इस वाक्य में अगर्चे क्या चस्पां कर दें तो वाक्य बड़ा मानीखेज हो जाता है और वह एक बड़े सवाल – एक अनुत्तरित प्रश्न की शक्ल में उभर आता है। राजस्थान में कांग्रेस सत्ता में है। करीब पाँच साल पहले वह राजपूताने में तब सत्ता में आई थी, जब दिल्ली से कांग्रेस-मुक्त भारत की हुंकारी भरी जा रही थी। हर कोई जानता है कि गुजरात से दिल्ली का रास्ता राजस्थान से होकर जाता है। दिल्ली का तख्त हासिल करने के लिए, राजस्थान फतह करना जरूरी है। लोकसभा में 25 सांसद राजस्थान की नुमाइंदगी करते हैं। गत चुनाव में बीजेपी ने पच्चीस की पच्चीस सीटें जीती थीं। बीजेपी चाहेगी कि सन् 24 में उसकी पुनरावृत्ति हो, लेकिन इसकी पुनरावृत्ति में सन् 23 का चुनावी रण अवरोध साबित हो सकता है। अवरोध इस नाते कि असेंबली – चुनाव के नतीजे भगवा- महत्त्वाकांक्षा की राह में काटे बिछा सकते हैं। होडिंग का मजमून इसी सन्दर्भ से जुड़ा हुआ है। क्या कांग्रेस फिर से का उत्तर तलाशने के लिए सन्दर्भों को खंगालना जरूरी है। अशोक गहलोत बड़े वरिष्ठ और परिपक्व राजनेता हैं। बतौर मुख्यमंत्री उनका रास्ता पुरखार रहा है और इसके पुरखार होने का सबसे बड़ा सबब रहे हैं सचिन पायलट। सचिन को राजनीति बिरसे में मिली है। ठीक ज्योतिरादित्य की मानिंद, लेकिन दोनों ही युवा नेता सियासत के खेल में कच्चे साबित हुए हैं। सचिन को सूबे में डिप्टी सीएम का पद मिला, संगठन की कमान मिली। सियासत उनके लिए बड़ी और उजली संभावना थी, लेकिन अति-महत्त्वाकांक्षा और उतावलापन उन्हें ले डूबा। अशोक गहलोत ने उन्हें किनारे लगाने अथवा उनकी मुश्कें कसने में कोई कोताही नहीं बरती। आज सचिन हाशिये में हैं। बीजेपी में ‘आउटसाइडरों’ का हश्र वह देख चुके हैं। कांग्रेस में उनकी भावभंगिमा और कवायद ने पार्टी की भृकुटि में बल पैदा किये। वह गुजर, समुदाय से हैं, जो राज्य में एक शक्तिशाली वोट-बैंक है। गूजर नेता होते हुये भी सचिन के ‘बेअसर’ हो जाने के दो बड़े कारण हैं – एक तो यह कि सचिन गूजर- बिरादरी को साध नहीं सके हैं। दूसरे गुजर पारंपरिक तौर पर बीजेपी का वोट-बैंक हैं। गुजरों को उनसे जातीय अस्मिता ने जोड़ा था। मगर गूजरों का ‘लाड़ला’ सीएम नहीं बना। बनने के आसार भी नहीं है। बिरादरी छिटक गयी है। प्रदेश की 23 सीटों पर पलड़े को ऊपर-नीचे करने की ताब गुजरों में है, किंतु ऐसी परिस्थितियां नहीं हैं कि इन्हें किसी ओर हांका जा सुके। गूजर बीते वर्षों में बीजेपी और सचिन दोनों से छिटके हैं। गूजरों की बड़ी बिरादरी आज मुंडेर पर है। सिर्फ गूजर ही नहीं, बड़ी संख्या में लोग मुंडेर पर हैं। इसमें शक नहीं कि ऐसे लोगों को लुभाने और अपने पाले में करने में अशोक गहलोत ने कोई कोर-कसर नहीं उठा रखी है और अपने राजनीतिक और सामरिक कौशल से वह इसमें सफल भी रहे हैं। यह अकारण नहीं है कि राजस्थान में एण्टी इकबेंसी का घनत्व बहुत कम है। गहलोत की सामाजिक सुरक्षा योजनाएं कामयाब रही हैं; औरतों को मोबाइल फोनों और वाई-फाई ने उनके चेहरों पर चमक पैदा की है। पेंशन योजना कारगर रही है. और सर्वाधिक ‘दुआ’ बटोरी है, मुख्यमंत्री की स्वास्थ्य-स्कीम ने। 25 लाख रुपयों तक आॅपरेशन की सुविधा ‘अमृत- तुल्य’ है। पकी उम्र में गहलोत फ्रंट फुट पर खेल रहे हैं। कलाई के मोड़ से गेंद को सीमा रेखा के पार भेजने का हुनर, उन्होंने विकसित कर लिया है। बीजेपी के पास आज गहलोत का तोड़ नहीं है। नतीजा यह कि वह गहलोत को घेरने में विफल है। आसन्न चुनाव में गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की सफलता की संभावना का एक बड़ा भेद भी बीजेपी नेतृत्व की शैली में निहित है। पूर्व मुख्यंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया की अवहेलना यकीनन बीजेपी को भारी पड़ेगी। मोदी-शाह का वसुंधरा को हलके में लेना बीजेपी को कई कारणों से भारी पड़ेगा। बीजेपी के पास सूबे में कोई और पैन राजस्थान लीडर नहीं है। विजय विद्रोही जैसे पत्रकार तो यहां तक कहते हैं कि और कुछ हो या नहीं, मगर वसुंधरा, बीजेपी को एक चुनाव हरवा तो सकती है। बिला शक वसुंधरा स्वाभिमानी और हठी नेत्री हैं और इस मानिनी- नायिका को मनुहार से मनाने में तो देर हो चुकी है और दूसरे मोदी-शाह की भाव-भंगिमा और शैली इसकी उम्मीद नहीं जगाती। बीजेपी की परिवर्तन यात्राओं में वसुंधरा ‘रस्म अदायगी’ के तौर पर शरीक हुई हैं, उनकी उदासिनता से बीजेपी और तितर-बितर तथा निरुपाय होगी। कहा जाता है कि राजस्थान में सत्ता का रास्ता मेवाड़ से होकर जाता है, जहां कभी मोहनलाल सुखाड़िया जैसे नेता का बोलबाला था। वरिष्ठ पत्रकार अनुराग त्रिवेदी कहते है, ‘कोई ताज्जुब नहीं कि इस दफा मेवाड़ से बीजेपी का सूपड़ा साफ हो जाये। सोचने की बात है कि मेवाड़ गया तो बीजेपी पांव कहां टिकाएगी? राजस्थान में फिलवक्त अजब तमाशा दरेपेश है। मिर्धा- परिवार अब पहले-सा सशक्त नहीं रहा, जगदीप धनकड़, गुलाब कटारिया दूर बैठे चाबी भर रहे हैं। सतीश पूनियार, राजेंद्र राठौड़, गजेंद्र शेखावत सब अपना-अपना खेल खेल रहे हैं। मेघवाल वर्सेज मेघवाल का दौर जारी है, यात्राओं में भीड़ कम है, तामझाम ज्यादा। लाल डायरी ‘हौवा’ नहीं बन सकी है। उसकी चीजें मोशा के अनुरूप आकार नहीं ले रही है। प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार ओम सैनी दो टूक कहते हैं कि बीजेपी का ढर्रा फ्लॉप हो गया है और अचरज नहीं होगा गर 156 सीटें जीतने का अशोक गहलोत का अर्र्सा पहले कहा गया कथन सच साबित हो जाये। Spread the word Continue Reading Previous 15 अक्टूबर को व्यापमं द्वारा आयोजित भर्ती परीक्षा स्थगितNext कांग्रेस ने नहीं बनने दिया गरीबों का 16 लाख घर- लखनलाल देवांगन Related Articles Uncategorized दामाखेड़ा विवाद को लेकर युवा मोर्चा कोरबा ने किया कांग्रेस का पुतला दहन Navneet Rahul Shukla November 4, 2024 Uncategorized अपराध कानून कोरबा छत्तीसगढ़ हादसा स्थानीय युवकों ने एक परिवार के साथ मारपीट कर बलवा को दिया अंजाम Gendlal Shukla October 18, 2024 Uncategorized रानू साहू की आंखों से छलक पड़े आंसू, फिर कहा- मैं स्ट्रांग हूं…. 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