सड़कों पर दौड़ते भारी वाहन: कागजों में सिमटा नियम, नो एंट्री बना मजाक

कोरबा 21 सितंबर। यह जरूरी नहीं कि सभी नियमों का पालन किया जाए। कई नियम बनते ही इसलिए हैं कि उन्हें हासिए पर रखा जाए अथवा उनके पालन में बिल्कुल रूचि का प्रदर्शन न हो। औद्योगिक नगर कोरबा में नो एंट्री से जुड़ी व्यवस्था कुछ ऐसी ही है। यहां की सडक़ों पर हर समय दौड़ते भारी वाहन यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि नियम केवल कागजों पर ही मौजूद हैं और जमीन से उसका कोई लेना-देना नहीं है।

छत्तीसगढ़ के ज्यादा राजस्व देने वाले जिलों में शामिल कोरबा में यातायात से जुड़े मसले रेलवे से लेकर सडक़ यातायात को लेकर एक जैसे हैं। रेल गाडिय़ों में अनियमित और असंतोषजनक परिचालन से जनता वैसे ही परेशान है उपर से खराब सडक़ों और लगातार जाम के साथ.साथ हर समय विभिन्न मार्गों पर व शहर के भीतर भारी वाहनों की निर्बाध आवाजाही परेशानी का कारण बनी हुई है। कहने के लिए जिला प्रशासन की रूचि से सरकारी विभाग के साथ-साथ पीएसयू के द्वारा बीते वर्षों में रिंग रोड और बायपास तैयार कराए गए हैं। उद्देश्य यही था कि भारी वाहनों को शहर में प्रवेश दिए बिना उनकी पहुंच बाहरी रास्तों से अपने गंतव्य के लिए सुनिश्चित हो। लेकिन लगातार देखने को मिल रहा है कि ढर्रा पहले की तरह बना हुआ है। अभी भी भारी वाहनों का आवागमन शहर के भीतर से ही जारी है। तुलसीनगर, राताखार,ट्रांसपोर्ट नगर, जैन मंदिर, कुआंभ_ा, मुड़ापार, अमरैया होते हुए भारी वाहनों का दौडऩा जारी है। इसी तरह दूसरे क्षेत्रों में स्थिति ऐसी है। यह बात जरूर है कि अफसरों के नाम से कुछ चौक-चौराहों पर भारी वाहनों के परिचालन को कुछ घंटों के लिए बाधित रखने से जुड़े बोर्ड लगाए गए हैं जिनमें नो एंट्री की सूचना दर्शायी गई है। वास्तविकता यह है कि इसका लेना-देना केवल सूचना लगाने मात्र से है। व्यवस्था पर अमल करने से नहीं।

जिले के नए कलेक्टर सौरभ कुमार की ज्वाइनिंग के बाद क्षेत्र की समस्याओं को गंभीरता से लिया गया। अलग-अलग स्तर से मामले जानकारी में आने पर बदलाव किये गए। फौरी तौर पर मुड़ापार अमरैया से भारी वाहनों के परिचालन को बंद कर दिया गया था। इसके साथ ही दूसरे रास्तों का उपयोग करने पर जोर दिया गया था। इससे मुड़ापार अमरैया क्षेत्र के लोगों को राहत हुई। अधिकतम हफ्ते भर तक इस तरह के हालात बने रहे लेकिन उसके बाद फिर सबकुछ यथावत हो गया।

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