सच्चा पुत्र वही जो अपने पितरों को नर्कवासी होने से रोके: देवकीनंदन
कोरबा 20 सितंबर। पितृगण शरीर छोडऩे के पहले अपने पुत्र से आशा करते हैं कि अपने कुल पवित्र रखें। सच्चा पुत्र वही होता है जो अपने पितरो को नर्क का वासी होने से रोके। इसी के लिए हमें शास्त्रों का ज्ञान होना ज़रूरी है।
यह बात कटघोरा के गोकुलधाम में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दौरान पंडित देवकीनंदन महाराज ने कही। चतुर्थ दिवस की शुरुआत विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई। जिसके बाद पूज्य महाराज जी ने भक्तों को मीठे रस से भरीयो रीए राधा रानी लागे भजन का श्रवण कराया। उन्होने कहा कि सनातन धर्म को आगे बढ़ाना सनातनी का सर्वप्रथम धर्म होना चाहिए। सूर्य देवता के नाराज होने से शरीर में तमाम रोग लग जाते हैं। सभी मनुष्य को सुबह-सुबह सूर्य देव को एक लोटा जल अवश्य चढ़ाना चाहिए। जिससे मनुष्य का जीवन कल्याण की ओर जाएगा। श्राद्ध पक्ष में अगर हम ब्राह्मण को भोजन कराये तो उनको एक दिन पहले निमंत्रण देना चाहिए और ब्राह्मण देव को श्राद्ध भोजन से एक दिन पहले से उपवास करना चाहिए एवं जो ब्राह्मण गायत्री मंत्र का जाप करता हो उसे ही श्राद्ध का भोजन करना चाहिए।
भोजन कराने से पहले पत्तल पर काले तिल डाल देने चाहिए। श्राद्ध पक्ष का भोजन करने से ब्राह्मण अशुद्ध हो जाते हैं और जब तक 1100 गायत्री मंत्र का जाप नहीं करते तब तक अशुद्ध ही रहते हैं। भगवान ने ह्रदय, नेत्र,मन,ज्ञान बुद्धि,श्रवण मनुष्य को सब कुछ दिया है और आज का व्यक्ति कहता है कि मैं भगवान में नहीं मानता। यह कृतज्ञता नहीं कृतघ्नता की श्रेणी में आता है।