कारवां @ अनिरुद्ध दुबे
कारवां (13 जून 2023)-
■ अनिरुद्ध दुबे
जोगी पर भूपेश के वक्तव्य के मायने
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि “जब अजीत जोगी कांग्रेस से बाहर हुए तो हमारी सरकार बनी। जोगी से लोग घबराते थे। कांग्रेस भवन जाने से डरते थे। कोई मरवाही की तरफ सिर रखकर सोता भी नहीं था।“ मुख्यमंत्री ने यह बात एक नहीं दो जगह कही, बिलासपुर व रायपुर में। उसमें भी बिलासपुर में यह बात उन्होंने कांग्रेस के संभागीय सम्मेलन में कही। उल्लेखनीय है कि जिस मरवाही क्षेत्र से कभी जोगी परिवार जीतता रहा, वह बिलासपुर संभाग का ही हिस्सा है। इसलिए बिलासपुर संभागीय सम्मेलन में यह बात कहना मायने रखता है। मुख्यमंत्री की बात के एक-दो नहीं कई मायने हो सकते हैं। 2003 में जब जोगी सरकार हटी और भाजपा सत्ता में आई तब का राजनीतिक परिदृश्य पुराने कांग्रेसियों को आज भी याद है। महेन्द्र कर्मा छत्तीसगढ़ विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष बने थे और मोतीलाल वोरा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष। तब भी शक्ति का केन्द्र एक ही नज़र आता था जोगी बंगला। उस दौर में भूपेश बघेल, नंद कुमार पटेल एवं मोहम्मद अक़बर को छोड़ दें तो सारे के सारे कांग्रेस विधायक जोगी की तरफ खड़े नज़र आते थे। भूपेश बघेल अपने मित्र महेन्द्र कर्मा के कंधे से कंधा मिलाकर चलने वालों में से थे। वहीं नंद कुमार पटेल एवं मोहम्मद अक़बर तटस्थ थे। उसी दौर में कुछ ऐसा भी होते दिखा था कि भूपेश बघेल के पाटन विधानसभा क्षेत्र में अजीत जोगी के पुत्र अमित जोगी राजनीतिक सक्रियता बढ़ा दिए थे। तब पूरी दमदारी के साथ बघेल ने सवाल उठाया था कि अमित जोगी पाटन में कुछ ज़्यादा ही सक्रियता दिखा रहे हैं, वहां उनका क्या काम? इसके अलावा सन् 2013 में बघेल समन्वयक की भूमिका में हुआ करते थे। तब मीडिया की तरफ से अजीत जोगी को लेकर किसी भी तरह का सवाल होने पर बघेल की ओर से बेबाकी के साथ ज़वाब सामने आया करता था कि “जोगी जी के बारे में उन्हीं से पूछिये, क्योंकि उनसे जुड़े हर फैसले सोनिया जी करती हैं। जैसा कि जोगी जी आए दिन ज़ाहिर करते रहते हैं।“ इन पुराने संदर्भों पर गौर करें तो साफ हो जाता है कि जोगी और बघेल के बीच हमेशा से किस तरह दूरियां रहीं थीं।
यूनिपोलः कहीं बात
वेणु गोपाल और राहुल
गांधी तक न चली जाए
नगर निगम के यूनिपोल घोटाला को लेकर कई एपिसोड सामने आ चुके हैं। मामला बड़ा गंभीर है लेकिन इसके इतर जो कहानियां सामने आ रही हैं वो भी कम मज़ेदार नहीं। एक कहानी यह सामने आई कि यूनिपोल वाली बात कांग्रेस राष्ट्रीय महासचिव एवं छत्तीसगढ़ प्रभारी कुमारी सैलजा तक जा पहुंची है। सैलजा ने इस मामले में संज्ञान में लेते हुए पूछा कि “यूनिपोल घोटाले की कार्यवाही कहां तक पहुंची? इससे आम लोगों के बीच कांग्रेस को लेकर अच्छा मैसेज नहीं जा रहा है।“ दिन भर चर्चाओं में मशगूल रहने वाले कांग्रेस के ही कुछ लोग मजे लेकर कहने लगे हैं कि “अभी तो बात केवल सैलजा जी तक पहुंची है, उनसे आगे कांग्रेस राष्ट्रीय प्रभारी महामंत्री के.सी. वेणु गोपाल और राहुल गांधी तक भी जाएगी।“ मानो यह मसला नगर निगम या रायपुर शहर तक ही सीमित नहीं रहा, प्रदेश स्तर का होने के बाद राष्ट्रीय स्तर का हो गया है। महापौर ने यूनिपोल पर प्रेस कॉफ्रेंस के दौरान कहा था कि “यूनिपोल घोटाला वैसा ही है जैसा कि गोल गोल रानी इत्ता इत्ता पानी।“ फिर महापौर ने मीडिया के सामने यह भी कहा था कि “जब अपना ही सोना खोटा हो तो सुनार का क्या दोष।“ हाल ही में किसी ने महापौर को यह कहते हुए मुफ़्त में सलाह दे डाली कि अब कि बार यूनिपोल को लेकर मीडिया से बात करें तो यह शेर ज़रूर कहें कि “हमें तो अपनों ने लूटा ग़ैरों में कहां दम था… मेरी कश्ती वहां डूबी जहां पानी कम था…”
अभिनंदन जूस बार
से सट्टा किंग तक
सट्टा किंग अभिनंदन उर्फ मन्नू नत्थानी की गिरफ्तारी की चर्चा चारों तरफ हो रही है। पुलिस ने खुलासा करते हुए बताया कि राजधानी रायपुर के पॉश इलाके अशोका रतन में रहने वाला मन्नू कई शहरों में सट्टे की ऑन लाइन आईडी बेचता था। ऑन लाइन क्रिकेट सट्टा में मन्नू बहुत बड़ा नाम हो गया था। जब भी कोई बड़ा इंटरनेशनल क्रिकेट मैच होता करोड़ों का दांव सट्टे पर लगा होता था। पुलिस का मानना है कि मन्नू के तार विदेशों तक से जुड़े रहे हैं। वहीं अन्य सूत्रों का कहना है कि एक आईपीएस अफ़सर मन्नू का दोस्त रहा। इसके अलावा एक आईएएस अफ़सर के प्रापर्टी के काम में मन्नू मददगार रहा है। अभिनंदन उर्फ मन्नू की ज़िन्दगी कोई आज से नहीं बहुत पहले से हाई प्रोफाइल रही है। मन्नू के पिता मदन नत्थानी रायपुर शहर का जाना-पहचाना नाम हुआ करते थे। रायपुर के बड़े बुजुर्ग बताते हैं मदन नत्थानी ने स्कूल के दिनों में ड्रामा करते हुए अपने अभिनय की अमिट छाप छोड़ी थी। रायपुर का सद्दानी चौक किसी ज़माने में अपनी अलग पहचान रखता था। उस चौक में मदन नत्थानी विभिन्न कारणों से सुर्खियों में रहा करते थे। अपने प्रिय बेटे अभिनंदन के नाम पर ही मदन नत्थानी ने सद्दानी चौक के पास अभिनंदन जूस बार खोला था। जूस बार के चलते में ही मदन नत्थानी ने एक्यूप्रेशर चिकित्सा को साध लिया था। मदन नत्थानी की एक्यूप्रेशर चिकित्सा की चर्चा जगह-जगह होने लगी थी। 2004 में लोकसभा के चुनाव प्रचार के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का भयंकर एक्सीडेंट हुआ। जोगी के इलाज़ के लिए ऐलोपैथी से लेकर होम्योपैथी एवं आयुर्वेदिक सभी तरह की चिकित्सा पद्धति का सहारा लिया गया। एक समय ऐसा भी आया जब मदन नत्थानी जोगी जी का एक्यूप्रेशर पद्धति से इलाज़ करने जोगी बंगले जाते थे। मदन नत्थानी जब जूते पहने होते तो उनके मोजे के नीचे कंचे (कांच की गोलियां) हुआ करते थे। मदन नत्थानी इसे भी एक्यूप्रेशर का पार्ट बताते थे। वे कहा करते थे कि इस विधा को इतना साध लिया हूं कि ऊपर वाला भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता, लेकिन वक़्त के आगे किसकी चली है। मदन नत्थानी आज हमारे बीच नहीं हैं। उनका दिमाग चलता नहीं बल्कि भागता था। बेटे अभिनंदन का भी तेज भागता है।
केबल कटा, मंत्रियों के
बंगलों के फोन ठप्प
विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत, कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे, वन मंत्री मोहम्मद अक़बर, आपदा प्रबंधन मंत्री जयसिंग अग्रवाल एवं पूर्व विधायक बृजमोहन अग्रवाल के बंगले आसपास हैं। अचानक इन सब के बंगले का लैंड लाइन फोन बैठ गया। लैंड लाइन का बैठना यानी इंटरनेट सेवा का भी अवरुद्ध हो जाना है। तेज धूप में दूरसंचार विभाग के कर्मचारी कहीं पर गड्ढा खोदे लाइन को सुधारते बैठे थे। फोन सेवा ध्वस्त हो जाने के पीछे कारण केबल का कट जाना बताया जा रहा है। केबल कैसे कटा इस पर रहस्य कायम है। माना यही जा रहा है किसी गंभीर शिकायत को दूर करने लंबा गड्ढा खोदा गया था। काम पूरा हो जाने के बाद गड्ढा पाटकर शिकायत तो दूर कर दी गई लेकिन उस चक्कर में चली कुदाली से टेलीफोन का केबल ज़रूर कट गया। नतीजतन मंत्री व उनके आसपास रहने वालों का लैंड लाइन बंद हो गया।
ज़मीनों पर
उल्टा-पुल्टा
राजधानी रायपुर में ज़मीनों को लेकर उल्टा-पुल्टा खेल कोई आज से नहीं बरसों से होते आ रहा है। इन दिनों ज़मीन से जुड़ी दो बड़ी ख़बरें सामने हैं। पहला चौरसिया कॉलोनी एवं भैरव नगर में बंद पड़ी गिट्टी खदानों को भू माफियाओं ने पाट-पाटकर बेच दिया। दूसरा- टेमरी के बहुत से लोगों को यह बताते हुए ज़मीन बेच दी गई कि रास्ता रेल्वे स्टेशन से केन्द्री के बीच बने एक्सप्रेस वे पर जाकर खुलेगा। इन दोनों ही मामलों की शिकायत कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेन्द्र भूरे के पास पहुंची। कलेक्टर ने जहां चौरसिया कॉलोनी एवं भैरव नगर का खदान क्षेत्र वाला खसरा ब्लाक करवा दिया वहीं टेमरी से एक्सप्रेस वे की तरफ खोले जा रहे रास्ते को बंद करने का आदेश जारी किया है। एक्सप्रेस वे मानो रायपुर शहर के लिए अबूझ पहेली हो गया है। साल भर से लगातार यही बात सामने आ रही है कि एक्सप्रेस वे के सामने किसी भी कॉलोनी का रास्ता खुलने नहीं दिया जाएगा, लेकिन इस पर अमल होते नहीं दिख रहा है। कितने ही लोग एक्सप्रेस वे की तरफ ताक लगाए बैठे हैं और इस बात से खुशी के मारे इनके पैर ज़मीन पर नहीं पड़ रहे हैं कि एक्सप्रेस वे बन जाने से इनकी ज़मीनों के रेट आसमान पर पहुंच गए हैं।
प्रमोशन या पनिशमेंट
रायपुर नगर निगम अपर कमिश्नर सुनील कुमार चंद्रवंशी को रायगढ़ नगर निगम का कमिश्नर बनाकर भेजा गया है। ज़रूरत से ज़्यादा धीर गंभीर रहने वाले सुनील चंद्रवंशी रायपुर नगर निगम में हुए तथाकथित यूनिपोल घोटाले की जांच समिति में अहम् भूमिका निभा रहे थे। पिछले कुछ दिनों से चंद्रवंशी को लेकर अलग-अलग कहानियां सामने आती रही थीं। पहले ख़बर आई कि चंद्रवंशी को उनके मूल विभाग सामान्य प्रशासन में भेजा गया है। फिर बताया गया कि वे लंबे अवकाश पर हैं। 7 जून की शाम को आदेश ही सामने आ गया कि चंद्रवंशी रायगढ़ नगर निगम कमिश्नर पद पर पदस्थ किए जाते हैं। जिस समय यह आदेश जारी हुआ तब तक रायपुर नगर निगम के कक्ष में सुनील चंद्रवंशी की ही नेम प्लेट लगी थी जहां कि वे बैठा करते थे। नये आदेश के सामने आने के बाद लोग इस बात में उलझे रहे कि चंद्रवंशी को रायगढ़ भेजा जाना पनिशमेंट है या प्रमोशन। पहली नज़र में देखा जाए तो रायगढ़ जैसे नगर निगम में कमिश्नर बनकर जाना प्रमोशन ही है। चंद्रवंशी को नज़दीक से जानने वाले यही कहते हैं कि साहब रायपुर नगर निगम में अपने काम को बेहतर तरीके से इंजॉय कर रहे थे। रायगढ़ नगर निगम में जाना यानी नई फ़िज़ा में जाना है। नई जगह में ढलने में वक़्त तो लगता ही है।
कारवां @ अनिरुद्ध दुबे, सम्पर्क- 094255 06660