धनरास गांव में राखड़ की समस्या: एनटीपीसी के अधिकारी वादा कर मुकरे, लोगों ने किया प्रदर्शन


कोरबा 30 जनवरी। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम एनटीपीसी प्रबंधन के दोहरे मापदंडों को लेकर परियोजना प्रभावितों की नाराजगी बढ़ी हुई है। धनरास गांव में राखड़ समस्या से परेशान होकर लोगों ने फिर प्रदर्शन किया। वे इस बात से नाराज दिखे कि तीन महीने पहले एनटीपीसी के अधिकारियों ने त्रिपक्षीय वार्ता में समस्या को हल करने की बात कही लेकिन इस पर काम नहीं किया। 2600 मेगावाट बिजली उत्पादन करने वाले एनटीपीसी संयंत्र ने अपने यहां से निकलने वाली राख के सुरक्षित भंडारण के लिए धनरास में राखड़ बांध बनाया है। क्षमता विस्तार के लिए यहां पर पूर्व के वर्षों में रेजिंग का काम भी किया गया।

सरकार के द्वारा तय मापदंडों के अंतर्गत यहां वाटर स्प्रिंकलर लगाए गए ताकि हर समय राखड़बांध का इलाका नमीयुक्त रहे। कहा जाता है कि ठेके पर कराये जा रहे इस तरह के कार्यों को लेकर लापरवाही बरती जा रही है। ऐसे में हल्की या तेज हवा चलने पर यहां से राख का गुबार उठता है और आसपास के इलाके सहित लोगों के घरों को बूरी तरह से प्रभावित करता है। खास तौर पर धनरासए छुटकी छूरी और सलोरा का इलाका इन कारणों से समस्याग्रस्त हैं। धनरास में स्थिति कुछ ज्यादा ही खराब है। तीन महीने पहले ग्रामीणों ने इसी मसले को लेकर यहां प्रदर्शन किया था। कटघोरा विधायक पुरूषोत्तम कंवर ने इस दौरान हस्तक्षेप करते हुए एनटीपीसी प्रबंधन को चेताया था। तब निश्चित अवधि में राखड़ को उडऩे नहीं देने के लिए ठोस कार्य योजना बनाने और इस पर काम करने का भरोसा अधिकारियों ने दिया था। समय सीमा बीतने पर भी परेशानी बनी हुई है और ग्रामीण दिक्कतों से जूझ रहे हैं। उन्होंने एनटीपीसी पर वादाखिलाफी करते हुए आज फिर प्रदर्शन किया और कहा कि अगर रवैय्या नहीं बदला तो यहां राखड़ फें के जाने पर रोक लगाई जाएगी। पंडरीपानी में दिखाये गए तेवर इससे पहले सीएसईबी कोरबा पश्चिम परियोजना के राखड़ बांध निर्माण से प्रभावित लोगों को नौकरी और पुनर्वास का मामला विवादों में है। इसके अलावा वायु प्रदूषण की समस्या भी यहां पर कायम है।

वर्ष 2022 में पंडरीपानी और लोतलोता के लोगों ने इस विषय को लेकर काफी दिनों तक प्रदर्शन किया और प्रबंधन की चुनौतियां बढ़ायी। तब कहीं जाकर नीतिगत रूप से उनके मामलों का निराकरण करने का भरोसा दिया गया। प्रशासन ने साप्ताहिक रिपोर्ट लेने की नीति बनायी तब कहीं जाकर सीएसईबी के अधिकारियों में कान में जंू रेंगी है।

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