बाबू जी ने कहा था @ सरिता सिंह
बाबू जी ने कहा था
बचपन में चांवल के दाने
हाथ में रखकर कहा था
बिखेर दो धरती में
चुगने दो चिड़ियों को
आसमान में उड़ने के लिए
उड़ो चिड़ियों की तरह
उड़ो अनंत आसमान में
नदी को देख कर कहा
रूको नहीं
नदी की तरह पार करना है
पहाड़ी रास्ता
सूरज की रोशनी
दिखाकर कहा
देखो सूरज सा चमकना है
मेरा क्या ,रहूँ न रहूँ
रहूँगा लेकिन
तुम्हारी हथेलियों में
मुस्कान की तरह
खिलता हूँ, खिलता रहूँगा
तुम सब के मन में
इस तरह जैसे भोर की पहली किरण
खिलती है पृथ्वी में
मुस्कान की तरह !
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चलो दोस्त
गले में हाथ डाल
चले समुद्र की ओर
और
सबसे ऊंचे टीले में बैठ
चांद को शामिल कर लेंगे
हमारी हँसी में
दूधिया रोशनी में नहाया
समुद्र और खिलेगा जब लहरें
खिलखिलाकर बतियायेगी समुद्र से
मछलियों की हंसी
नावों से उछलकर
लहरों को छूती
हमारे – तुम्हारे पास से
आसमान में बिजली की तरह चमकेगी
दोस्त,
कड़कती बिजली की चमक
बरसते पानी की नन्ही – नन्ही बूंदें
जब गिरेगी हमारी हथेलियों पर
तब हमारी दोस्ती
खेत की तरह लहलहा उठेगी !
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