ये हैं देश के तारणहार, कर रहे हैं नयी पीढ़ी का बंठाधार

कोरबा 27 जनवरी। देश को आगे ले जाने की जिम्मेदारी कैसे-कैसे लोगों के हाथ में है? देश में कैसे-कै से पढ़े-लिखे अधिकारी और बुद्धिजीवी हैं? नयी पीढ़ी को कै सा ज्ञान बांट रहे हैं? इनके अधूरे ज्ञान के कारण देश और समाज किस तरह दुकड़े -टुकड़ों में बंट रहा है? इसका एक छोटा सा उदाहरण है-26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रध्वज वंदन के अवसर पर किया गया ध्वजारोहण शब्द के उपयोग का मामला।
गणतंत्र दिवस समारोह का शासकीय स्तर पर किये गये आयोजन को लेकर छत्तीसगढ़ शासन के जन सम्पर्क विभाग से पूर्व में जारी खबरों में 26 जनवरी पर अमुक करेंगे ध्वजारोहण और परेड की सलामी लेंगे, लिखा गया। समारोह के बाद ही खबरों में भी अमुक ने किया ध्वजारोहण लिखा गया। प्रिन्ट और इलेक्ट्रानिक मीडिया ने भी इसी का अनुशरण किया। फलतः गणतंत्र दिवस पर सर्वत्र ध्वजारोहण हुआ। जबकि गणतंत्र दिवस पर ध्वजारोहण की जगह राष्ट्रध्वज फहराया जाता है। ध्वजारोहण आजादी के बाद पहली बार किये गये ध्वज-आरोहण के जिस दिन हम अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुए और लाल किला में पहली बार हमारा राष्ट्रध्वज चढ़ाया गया, उसके प्रतीक स्वरूप 15 अगस्त को ध्वजारोहण किया जाता है। आईये ध्वजारोहण और राष्ट्रध्वज फहराने के अंतर को जानें-
ध्वजारोहण और राष्ट्रध्वज फ हराने में क्या कोई अंतर है? भारत में कब होता है ध्वजारोहण और कब फ हराते हैं राष्ट्र ध्वज? दोनों में क्या है अंतर? आओ जानें!
भारत में स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को ध्वजारोहण किया जाता है और गणतन्त्र दिवस 26 जनवरी को राष्ट्रध्वज फ हराया जाता है।
पहला अंतरः-15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर ’झंडे को नीचे से रस्सी द्वारा खींच कर ऊपर ले जाया जाता है, फि र खोल कर फ हराया जाता है, जिसे ’ध्वजारोहण’ कहा जाता है क्योंकि यह 15 अगस्त 1947 की ऐतिहासिक घटना को सम्मान देने हेतु किया जाता है जब प्रधानमंत्री जी ने ऐसा किया था। संविधान में इसे में ध्वजारोहण कहा जाता है। जबकि 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के अवसर पर झंडा ऊपर ही बंधा रहता है, जिसे खोल कर फ हराया जाता है, संविधान में इसे झंडा फ हराना कहा जाता है।
दूसरा अंतरः-15 अगस्त के दिन प्रधानमंत्री जो कि केंद्र सरकार के प्रमुख होते हैं वो ध्वजारोहण करते हैं, क्योंकि स्वतंत्रता के दिन भारत का संविधान लागू नहीं हुआ था और राष्ट्रपति जो कि राष्ट्र के संवैधानिक प्रमुख होते है, उन्होंने पदभार ग्रहण नहीं किया था। इस दिन शाम को राष्ट्रपति अपना सन्देश राष्ट्र के नाम देते हैं। जबकि 26 जनवरी जो कि देश में संविधान लागू होने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, इस दिन संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति झंडा फ हराते हैं।
तीसरा अंतरः-स्वतंत्रता दिवस के दिन लाल किले से ध्वजारोहण किया जाता है। जबकि गणतंत्र दिवस के दिन राजपथ पर झंडा फ हराया जाता है।
कोई कह सकता है, शब्दों के हेर-फेर से क्या होता है? भाव तो एक है। राष्ट्रध्वज का सम्मान, देश का गौरवगान, देश पर अभिमान। लेकिन एक बारीक अन्तर है, जो नयी पीढ़ी का सच्चे ज्ञान से दूर ले जाता है। आने वाले वर्षों में नई पीढ़ी ध्वजारोहण और झण्डा फहराने से पीछे के भाव और तथ्य को अनभिज्ञ हो जायेगी। फिर इसका दुष्परिणाम भी सामने आने लगेगा। इसका एक सटीक उदाहरण भी है। इस तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता कि हिन्दू धर्मावलंबी कई पंथों में बंटे हुए हैं। लेकिन अन्ततः सभी हिन्दू हैं। जैसे-सिक्ख पंथ, जैन मत, बौद्ध मत, कबीर पंथ। लेकिन कथित बुद्धिजीवियों द्वारा लम्बे समय से सिक्ख धर्म,जैन धर्म, बौद्ध धर्म आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता रहा है, जिसके कारण नयी पीढ़ी धीरे-धीरे इन्हें धर्म समझने लगी है। इसीलिए जरूरी है कि गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर झण्डा वंदन कार्यक्रमों के लिए अवसर के अनुरोध झण्डारोहण और झण्डा फहराना शब्द का उपयोग किया जाये।

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