दूधी टांगर समिति में आर्थिक मनमानी को लेकर खुलासा, नीति और नीयत पर सवाल

कोरबा 08 अपै्रल। वन विभाग में ग्रामीण क्षेत्र में काम करने वाली वन्य प्रबंधन समिति के लिए क्या अलग-अलग नियम हो सकते हैं? निश्चित रूप से इसका जवाब नहीं में हो सकता है। बालको नगर रेंज के अंतर्गत आने वाले दूधी टांगर समिति में आर्थिक मनमानी को लेकर एक खुलासा सूचना के अधिकार से हुआ। इस मामले में रेंज ऑफिसर का तर्क है कि रकम ड्रा करने के लिए प्रस्ताव की जरूरत नहीं है जबकि दूसरे मामलों में ऐसा हुआ है। इससे नीति और नीयत पर सवाल खड़े हो गए हैं।
प्राप्त सूचनाओं में कहा गया है कि वन मंडल कोरबा के अंतर्गत बालको नगर रेंज की वन प्रबंधन समितियां में सरकारी रकम ड्रा करने के लिए अलग-अलग नियम बना दिए गए हैं। असली सामान तो इसी विषय को लेकर है। कहा जा रहा है कि जब समितियां वन विभाग के अंतर्गत कम कर रही हैं तो उनके लिए नियम की एकरूपता होनी चाहिए ना की भिन्नता। जानकारी मिली है कि दूधी टांगर वन समिति के द्वारा कई प्रकार के कार्य कराए गए हैं। राज्य सरकार की ओर से ऐसे कार्यों के लिए धनराशि भेजी जाती है। सूत्रों ने बताया कि इस धनराशि को खर्च करने के लिए समिति के सदस्यों की बैठक और प्रस्ताव पारित करना आवश्यक होता है। लेकिन दूधी टांगर के मामले में इसे जरूरी नहीं समझ गया और धनराशि ड्रा कर ली गई। हैरानी की बात यह है कि वन मंडल की दूसरी समितियां के लिए इस प्रकार के नियम बांडेड किए गए हैं।
बताया गया कि श्रमिक कल्याण समिति के द्वारा दूधी टांगर से जुड़े विषय को लेकर सूचना के अधिकार से जानकारी प्राप्त की तो उसमें कहां गया कि दूध ही टांगर समिति को किसी प्रस्ताव की जरूरत नहीं है। जबकि दावा किया जा रहा है कि सूचना के अधिकार से जो दस्तावेज प्राप्त हुए हैं, उसमें स्पष्ट होता है कि इस समिति में वित्तीय स्तर पर भारी गड़बड़ी की गई है। सवाल उठाए जा रहे हैं कि जब बहुत सारी समितियां वन विभाग के द्वारा बनाई गई है और उसके नियंत्रण में संचालित हो रही है तो फिर उनके लिए नियम अलग कैसे हो सकते हैं। प्रदेश में जिस तरह से विभिन्न विभागों में आर्थिक फसलों को लेकर सरकार की जांच एजेंसी इकोनामिक ऑफेंस विंग के द्वारा जांच शुरू की गई है कहीं ना कहीं उसकी आवश्यकता वन विभाग के कार्यों में महसूस हो रही है।