कोरबा भाजपा: सभापति चुनाव में शर्मनाक हार के पीछे सोची समझी साजिश..! केन्द्र ने लिया गंभीरता से, कड़ी कार्रवाई की तैयारी

कोरबा। नगर पालिका निगम कोरबा के सभापति चुनाव में भाजपा की हुई भारी किरकिरी के मामले में रोज नए खुलासे हो रहे है। ताजा जानकारी के अनुसार भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी हितानंद अग्रवाल को भले ही चुनाव में 18 वोट मिल गए, लेकिन उन्हें पार्टी की ओर से कोई प्रस्तावक- समर्थक तक नहीं दिया गया था। अपने निजी संपर्क से दो पार्षदों के सहयोग से वे अपना नामांकन दाखिल कर पाए थे। भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने इसे पार्टी को खुला चुनौती मानते हुए गंभीरता से लिया है और कड़ी कार्रवाई की तैयारी कर ली है।

प्रारम्भिक स्तर पर सभापति चुनाव में जिसे बगावत समझा जा रहा था, वह केवल बगावत नहीं था। बल्कि सम्पूर्ण घटनाक्रम किसी बड़ी साजिश की ओर इशारा कर रहे हैं। भाजपा को शर्मसार कर देने वाली इस साजिश का खुलासा निष्पक्ष और ईमानदार जांच से ही हो सकता है।

जानकारी के अनुसार भारतीय जनता पार्टी के सभी पार्षदों को पार्टी कार्यालय के सभाकक्ष में बंद कर रखा गया था। नामांकन का समय समाप्त होने के करीब 20 मिनट पहले पर्यवेक्षक ने प्रत्याशी का नाम घोषित किया। हितानंद अग्रवाल नामांकन के लिए अकेले ही भागते दौड़ते निर्वाचन कार्यालय पहुंचे। उन्होंने, अपने संपर्क के दो भाजपा पार्षदों के सहयोग से नामांकन दाखिल किया। जबकि हितानंद अग्रवाल भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी थे। उनका नामांकन दाखिल कराना संगठन का दायित्व था। पार्टी कार्यालय में इस चुनाव के लिए नियुक्त पर्यवेक्षक पुरंदर मिश्रा, राज्य के श्रम मंत्री और प्रदेश उपाध्यक्ष लखनलाल देवांगन, प्रदेश मंत्री विकास महतो, जिलाध्यक्ष मनोज शर्मा एवं अन्य पदाधिकारी मौजूद थे। इन्हें प्रस्तावक और समर्थक के साथ प्रत्याशी को ले जाकर या किसी वरिष्ठ पदाधिकारी के साथ निर्वाचन कार्यालय भेजकर नामांकन जमा कराना था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

यहां बड़ा सवाल यही है कि पार्टी पदाधिकारियों ने प्रस्तावक समर्थक के साथ निर्वाचन अधिकारी के पास जाकर प्रत्याशी का पर्चा जमा क्यों नहीं कराया? क्या किसी पदाधिकारी ने प्रस्तावक समर्थक बनने के लिए किसी पार्षद को निर्देशित किया? अगर हां, तो किस किस पार्षद को निर्देश दिया गया, जिन्होंने संगठन के निर्देश की अवहेलना की? पार्टी के निर्देश पर भाजपा पार्षद सुबह 9.30 बजे से पार्टी कार्यालय पहुंच गए थे, मगर पर्यवेक्षक ने अधिकृत प्रत्याशी का नाम अंतिम समय में क्यों घोषित किया, नामांकन के पर्याप्त समय पहले क्यों नहीं?

प्रचारित किया जा रहा है कि पार्टी के पार्षदों ने एक राय होकर हितानंद को अस्वीकार कर दिया था और उन्होंने नूतन सिंह ठाकुर को अपना प्रत्याशी बनाया था। अगर ऐसा ही था, तो नूतन सिंह ठाकुर के प्रस्तावक समर्थक भाजपा के पार्षद क्यों नहीं बने? भाजपा के कथित बागी नूतन सिंह ठाकुर के प्रस्तावक समर्थक भी भाजपा के ही बागी दो निर्दलीय पार्षद सीता पटेल और बहत्तर सिंह क्यों बने? क्या भाजपा पार्षदों ने प्रस्तावक समर्थक बनने से इनकार कर दिया था? अगर इनकार किया तो फिर सामूहिक बगावत कैसे हुई? नूतन सिंह ठाकुर पार्षदों के सर्व सम्मत प्रत्याशी कैसे माने जा सकते हैं? नूतन सिंह ठाकुर ने पार्टी के प्रत्याशी का नाम घोषित होने से पहले ही निर्दलीय पार्षदों के सहयोग से नामांकन जमा कर दिया था। क्या उसे पहले से पता था कि उसे प्रत्याशी नहीं बनाया जा रहा है?

सभापति के लिए मतदान के समय मौके पर कोरबा भाजपा में जिन्हें कद्दावर नेता माना जाता है, ऐसे सभी नेता श्रम मंत्री लखनलाल देवांगन, महापौर संजूदेवी राजपूत, पार्टी के प्रदेश मंत्री विकास महतो, प्रदेश कार्य समिति सदस्य, पूर्व महापौर जोगेश लाम्बा, पूर्व सभापति एवं प्रदेश कार्य समिति के विशेष आमंत्रित सदस्य अशोक चावलानी मौजूद थे, लेकिन कोई भी नेता ने पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के पक्ष में पार्षदों से वोट नहीं मांगा। सूत्रों के अनुसार मतदान के समय नूतन सिंह ठाकुर अपने गले में भाजपा का चुनाव चिन्ह अंकित साफा पहने हुए थे। पर्यवेक्षक पुरंदर मिश्रा ने वह साफा हटवाने के लिए कहा, लेकिन किसी भी पदाधिकारी ने उनके निर्देश को महत्व नहीं दिया।

इस तरह सभापति के चुनाव के पूर्व और बाद के घटनाक्रम चीख- चीख कर कह रहे हैं कि कोरबा में जो कुछ हुआ वह बगावत नहीं बल्कि पार्टी और प्रदेश संगठन के निर्णय के खिलाफ एक बड़ा षड्यंत्र था। पार्टी में अनुशासन बनाये रखने और पार्टी के सम्मान की सुरक्षा सुनिश्चित रखने के लिए पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच और कठोर कार्रवाई किया जाना आवश्यक माना जा रहा है, ताकि दोबारा कभी ऐसी शर्मनाक स्थिति उतपन्न नहीं हो। बड़ी बात यह भी है कि कोरबा के भाजपा नेताओं को एक दिन पहले ही पार्टी के निर्णय की जानकारी हो गई थी। इन पंक्तियों के लेखक को भी सूत्रों से यह जानकारी मिल गई थी।

सामान्य तौर पर प्रत्येक पार्टीगत चुनाव में व्हिप जारी किया जाता है। क्या संगठन ने पार्षदों को पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करने के लिए व्हिप जारी किया था? अगर नहीं तो क्यों? ना तो किसी ने पार्टी प्रत्याशी को प्रस्तावक समर्थक उपलब्ध कराया, ना ही कोई नामांकन दाखिल करने उनके साथ गए और ना ही व्हिप जारी किया गया। सूत्रों का दावा है कि पार्टी कार्यालय के सभा कक्ष में पार्षदों को नूतन सिंह ठाकुर के पक्ष में मतदान करने के लिए स्पष्ट शब्दों में कहा गया। यही नहीं उन्हें बताया गया कि पार्टी में ऊपर बात हो चुकी है और नूतन सिंह को ही सभापति निर्वाचित करना है।

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