ड्यूटी के दौरान हुई पिता की मौत, बेटे ने फिर भी निभाया चुनाव में अपना फर्ज

निजी दुख से ऊपर उठकर राष्ट्रीय कर्तव्य को दी प्राथमिकता
कोरबा 20 फरवरी। छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के उरगा थाना क्षेत्र में पिता की मौत की खबर मिलने के बाद भी शिक्षक बेटे ने पहले अपनी चुनाव ड्यूटी निभाई और फिर नम आंखों से पिता का अंतिम संस्कार किया। 55 वर्षीय बजरंग पटेल की सीढ़ियों से गिरने के कारण मौत हो गई।
मामला देवरमाल गांव की है। घटना के समय उनके बेटे चूड़ामणि पटेल की अकलतरा में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में चुनावी ड्यूटी पर तैनात थे। पिता की मौत की खबर मिलने पर भी चूड़ामणि शोक में डूब गए। एक ओर उनका मन पिता के अंतिम दर्शन के लिए बेचौन था, वहीं दूसरी ओर देश के लोकतांत्रिक कर्तव्यों का भी सवाल था। लेकिन चूड़ामणि ने पहले अपनी चुनाव ड्यूटी पूरी करने का फैसला किया। उन्होंने परिवार को संदेश भेजा कि उनकी ड्यूटी पूरी होने तक पिता का अंतिम संस्कार न किया जाए। बेटे ने ड्यूटी पूरी करने के बाद पिता का अंतिम संस्कार किया। बजरंग पटेल घर में सीढ़ी से गिरकर गंभीर रूप से घायल हो गए थे। उनके सिर में गहरी चोट लगी थी, जिसके बाद उन्हें तत्काल मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती किया गया। मगर लाख कोशिशों के बावजूद डॉक्टर उन्हें बचा नहीं सके और मेडिकल कॉलेज अस्पताल में इलाज के दौरान उन्होंने अंतिम सांस ली। उस वक्त उनका बेटा चूड़ामणि उनके साथ नहीं था। चूड़ामणि की ड्यूटी त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में लगी थी। जब उन्हें अपने पिता के निधन की खबर मिली, तो उनके लिए यह पल बेहद कठिन था।
एक ओर उनका मन पिता के अंतिम दर्शन के लिए बेचौन था, वहीं दूसरी ओर देश के लोकतांत्रिक कर्तव्यों का भी सवाल था। लेकिन चूड़ामणि ने उस समय जो निर्णय लिया, जिसने हर किसी की आंखें नम कर दीं। उन्होंने तत्काल अपने परिवार को संदेश भिजवाया कि वे अभी चुनावी ड्यूटी में हैं और उनकी गैरमौजूदगी में अंतिम संस्कार न किया जाए। उन्होंने साफ कहा कि जब तक वे अपनी ड्यूटी पूरी कर घर नहीं पहुंचते, तब तक उनके पिता का अंतिम संस्कार न किया जाए। यह सुनकर परिजन भावुक हो गए और उनके निर्णय का सम्मान किया। जब चूड़ामणि ने अपना निर्वाचन कार्य पूरा किया, तो वे घर पहुंचे। अपने पिता का चेहरा देखते ही उनकी आंखें छलक पड़ीं, लेकिन उन्होंने खुद को संभाला। आज जब उनके पिता की अंत्येष्टि हुई, तो हर किसी की आंखों में आंसू थे। उनकी इस कर्तव्यनिष्ठा की गांव और आसपास के क्षेत्र में जमकर सराहना हो रही है। लोग उनके इस फैसले की तारीफ कर रहे हैं कि उन्होंने निजी दुख से ऊपर उठकर राष्ट्रीय कर्तव्य को प्राथमिकता दी।