1985 के तहत राजस्व न्यायालय के अधिकारियों को मिला संरक्षण
कोरबा 15 अक्टूबर। छत्तीसगढ़ शासन के राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग ने हाल ही में एक अधिसूचना जारी की है जिसमें न्यायाधीश (संरक्षण) अधिनियम, 1985 के अंतर्गत राजस्व न्यायालयों के पीठासीन अधिकारियों को उनके कार्यों के दौरान मिलने वाले कानूनी संरक्षण की जानकारी दी गई है।
विभाग के अनुसार, कई मामलों में असंतुष्ट पक्षकार, राजस्व अधिकारियों के निर्णयों के खिलाफ विधिवत अपील करने के बजाय सीधे पुलिस में शिकायत दर्ज कराते हैं। इससे अधिकारियों को पुलिस की जांच का सामना करना पड़ता है, जो कि न्यायिक प्रक्रिया के विरूद्ध है।अधिसूचना में स्पष्ट किया गया है कि छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता, 1959 के तहत राजस्व अधिकारियों को न्यायिक कार्यवाही के दौरान विशेष अधिकार प्राप्त हैं और उनके द्वारा दिए गए निर्णयों के खिलाफ अपील करने के प्रावधान मौजूद हैं। इस प्रकार, उन्हें सिविल या आपराधिक मुकदमों से न्यायाधीश (संरक्षण) अधिनियम, 1985 की धारा 2 और 3 के अंतर्गत कानूनी सुरक्षा प्राप्त है।विभाग ने कहा कि राजस्व न्यायालय के सभी अधिकारी, जो न्यायिक कार्यवाही करते हैं, अधिनियम के अंतर्गत न्यायाधीश माने जाएंगे और उन्हें उनके कार्यों के लिए किसी भी प्रकार की सिविल या आपराधिक कार्रवाई से बचाया जाएगा। यह अधिसूचना प्रदेश के सभी संभागीय आयुक्तों और जिलाधिकारियों को भेजी गई है ताकि राजस्व अधिकारियों को उनके न्यायिक कार्यों के लिए उचित संरक्षण मिल सके।
सर्कुलर के जारी होने से सभी राजस्व अधिकारियों में हर्ष ब्यापत है। कनिष्ठ प्रशासनिक संघ द्वारा लंबे समय से शासन से इसकी मांग की जा रही थी। इस सर्कुलर के आने से अब सभी राजस्व अधिकारी अपने पदेन्न दायित्वों का निर्वहन सहजता और निर्भीकता से कर पाएंगे । अमित केरकेट्टा, तहसीलदार दीपका तहसील
राजस्व न्यायालय के पीठासीन अधिकारियों को न्यायधीश संरक्षण अधिनियम 1985 के तहत संरक्षण प्राप्त है। जिसमे उनके द्वारा पारित आदेश के तारतम्य में किसी भी प्रकार का वाद-दावा या कानूनी कार्यवाही नही किया जा सकता है। इस संबंध में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा भी आदेश किया जा चुका है। साथ ही शासन द्वारा भी निर्देश प्रसारित किया गया है।
शशिभूषण सोनी, प्रवक्ता, छ.ग.कनिष्ठ प्रशासिनक सेवा संघ