कुसमुंडा माइंस में कोयला चोरी का सिलसिला फिर से शुरू
कोरबा 28 फरवरी। घरेलू और व्यवसायिक उपभोक्ताओं की जरूरत को पूरा करने का काम कोल इंडिया की लाभकारी कंपनी एसईसीएल कर रही है। उस पर ऐसे लक्ष्य को पूरा करने का दबाव भी है। मेगा माइंस के रूप में चर्चित कुसमुंडा माइंस में लंबे समय तक कोयला चोरी थमे रहने के बाद अब फिर से यह सिलसिला शुरू हो गया है। इस तरह की गतिविधियों से जहां कंपनी को चपत लग रही है, वहीं सुरक्षा व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह खड़े हो रहे हैं।
मिनी रत्न कंपनी एसईसीएल की ओर से कोरबा जिले में संचालित अपनी विभिन्न परियोजनाओं में सुरक्षा पर करोड़ों की राशि हर महीने खर्च की जा रही है। विभागीय सुरक्षा तंत्र के साथ-साथ अर्द्धसैनिक बल की तैनाती इस मामले में की गई है। इसके अलावा सुरक्षा को पुख्ता करने के लिए कई डिजिटल संसाधन भी इंस्टाल कराए गए हैं। इतना सबकुछ करने के बावजूद खदानों से कोयला की चोरी थमने का नाम नहीं ले रही है। 28 मार्च बुधवार, सुबह 7.30 बजे हमारे संवाददाता ने कोयला चोरी के एक नजारे को अपने कैमरे में कैद किया। इस दौरान एक महिला अपनी स्कूटी से सर्वमंगला मंदिर नहर से कुसमुंडा जाने वाली बायपास मार्ग पर कोयला चोरी करते नजर आई। कुछ ही देर में उसके द्वारा अपनी दुपहिया से पांच बार कोयले की बोरियां पार कर दी। यह केवल कोयला चोरी का एक छोटा सा नमूना यह बताने के लिए काफी है कि संगठित गिरोह नए पैटर्न के साथ इस काम को आगे बढ़ा रहे हैं। इनके जैसे कई लोग दूसरे संसाधन से कोयला चोरी करने में लगे हुए हैं। बताया गया कि साइकिल, मोटरसाइकिल और चारपहिया वाहनों का उपयोग भी इस काम में किया जा रहा है। सूत्रों ने बताया कि प्रतिदिन दिनदहाड़े सुरक्षा बलों के सामने इस प्रकार से सैंकडों टन कोयला चोरी की जा रही है। इतना सबकुछ जानने समझने पर भी नियंत्रण करने में रूचि क्यों नहीं है, यह समझ से परे है।
प्राप्त सूचनाओं में बताया गया कि रोज सुबह 5-6 बजे से इस प्रकार का नजारा आपको देखने को मिल जायेगा। जबकि यहां खदान की सुरक्षा के लिए तीन तरह के सुरक्षा व्यवस्था की गई है जिसमें सी.आई.एस.एफ., त्रिपुरा राइफल के जवान और एस.ई.सी.एल. के स्वयं के सुरक्षा गार्ड हैं। इनके पीछे करोड़ों रूपये खर्च किये जा रहे हैं। दावा किया जा रहा है कि निगरानी के लिए जिन हाथों को जिम्मेदारी दी गई है, उनकी सांठगांठ और अप्रत्यक्ष संरक्षण के बिना इस प्रकार का काम बिल्कुल नहीं हो सकता। जानकारी मिली है कि दुपहिया में आगे-पीछे 4 बोरियों में कोयला ढोने का काम कुशल और अर्द्धकुशल चोर बड़ी आसानी से कर रहे हैं। उनके द्वारा 150 से 200 किलो की मात्रा हर फेरे में चोरी की जा रही है। चोर बाजार में इस कोयला को बेचने से उन्हें एक बार में लगभग एक हजार रुपए की प्राप्ति होती है। पकड़े जाने पर ये लोग अपनी कथित गरीबी का हवाला देकर सहानुभूति बटोरने की कोशिश करते हैं।
देश के लिए बिजली और कई अन्य उद्योगों का संचालन सुचारू रूप से करने के लिए कोयला सबसे प्रमुख जरूरत है। इसलिए इसे राष्ट्रीय संपदा में शामिल किया गया है। घोषित होने के बावजूद खदानों से कोयला की चोरी होने का मतलब राष्टीय क्षति को बढ़ावा देना है। यदि समय रहते इसे रोकने हेतु कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो इस चोरी से होने वाले घाटे का खामियाजा देश के साथ-साथ यहां के कर्मचारियों को भी भुगतना पड़ेगा। सवाल उठ रहा है कि ऐसे मामलों की जानकारी होने पर एसईसीएल के ट्रेड यूनियन आखिर चुप क्यों है।