यह इश्क नहीं आसां… यानि किस्सा चुनाव का @ सुधीर सक्सेना

सामयिकी

पिछला पूरा माह तकरीबन यात्राओं में गुजरा। यात्राएं भी एक नहीं तीन। तीन सूबों की। पहले मध्य- प्रदेश। मध्यप्रदेश में उज्जैन, नागदा, मंदसौर, नीमच और मनासा। फिर तेलंगाना मेेंं हैदराबाद, संगारेड्डी, सिद्दी पेट और विकाराबाद। इसके बाद छत्तीस गढ़ मे रायपुर, बिलासपुर, कोरबा, बालोद, राजनांदगांव, धमतरी और कांकेर। तीन सूबों में जाने का मकसद एक ही था। जनता के मिजाज को भांपना। तीनों प्रांतो में खुदबुदा रही एण्टी-इन्कंबेंसी की थाह लेना और अनौपचारिक गुफ्तगू से इस बात की तफ्तीश कि लोक लुभावन योजनाओं और मुक्त-हस्त रेवडियों से ‘राज’ के प्रति प्रजा की सोच में मुलामियत और मिठास आ रही है या फिर परिवर्तन का भूमिगत कंपन सत्ता के धराशायी होने का सबब बनेगा?
तीन राज्यों के दौरे से कुछ धारणाओं की चूलें हिलीं तो कुछ मान्यताओं की पुष्टि हुई। इस बात की तस्दीक हुई कि मुंडेर पर बैठे हुए मतदाताओं की संख्या कम नहीं है। तीनों प्रांतों में बड़ी तादाद में ऐसे वाटर है, जो ‘तेल देखो, तेल की धार देखों’ की लीक पर चल रहे हैं, यहां तेल की धार में सरकारी ऐलानों, स्थानीय या बाहरी उमीदवार का चयन, जातीय समीकरणों को वरीयता या उपेक्षा, दल बदल के अंदेशे और प्रचार-शैली का समावेश है। तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में अलग-अलग पार्टियों की सरकार है, लेकिन तीनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों में यदि कोई समानता है तो वह यह कि ‘दानलीला’ में तीनों निष्णात है। लोकलुभावन योजनाओं में कोई भी किसी से पीछे नहीं है, अलबत्ता भूपेश बघेल और के सीआर से शिवराजसिंह चौहान तनिक आगे इस नाते हैं कि उन्होंने सरकारी खजाने के पट खोल दिये हैं और उनकी घोषणाओं का फलक बड़ा है। यूँ तो छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल ने अत्यंत चतुराई से धर्म का मुद्दा बीजेपी से छीन लिया है और इस मुद्दे पर बीजेपी से बड़ी लकीर खींचने में कामयाबी पाई है। श्रीराम वनगमन पर्यटन परिपथ उनकी दूरगामी और महत्वाकांक्षी योजना है। छत्तीसगढ़ में 2260 किमी लंबे मार्ग को विकसित और 75 स्थानों को चिह्नित करने का श्रेय बघेल के खाते में गया है। चंद्रखुरी और शिवरी- नारायण में कार्यों का लोकार्पण कमश: अक्टूबर, 21 और रामनवमी, 22 को हो चुका है। इस बात में शक नहीं कि बघेल-सरकार का चेहरा पूर्ववर्ती सरकारों के मुकाबले अधिक आत्मीय, सलोना और देशज है। वह अभिजात्य नहीं, छतीसगढ़िया सरकार है। उसकी मुखाकृति बघेल ने बहुत सलीके से बुनी है। उन्होंने छत्तीसगढ़ी रीति-रिवाजों, खेलों, तेहारों (पर्वों), परिधान और व्यंजनों को बढ़ावा दिया है। माटी के खेलों की खुशबू से महमह छत्तीसगढ़िया ओलंपिक का प्रतिवर्ष आयोजन उनका विशिष्ट व अनूठा उपक्रम है। यह अकारण नहीं है कि वरिष्ठ पत्रकार-लेखक सतीश जायसवाल कहते हैं कि अब छत्तीसगढ़ के पास अपनी एक स्पष्ट सांस्कृतिक दृष्टि है और उसकी सांस्कृतिक नीति गौरव का बोध कराती है। बघेल सरकार ने बइला बक्खर को जाहार किया है, तिजहारिन मन की सुध ली है और उसके प्रयासों से छत्तीसगढ़ के अंगना में छत्तीसगढ़िया खेलकूद की रंगत बढ़ी है। मैत्री- पर्व छेरछेरा पर सीएम का घर-घर जाकर दान मांगना, जन-मन को खूब सुहाता है। सूबे में मिलेट्स के दिन बहुरे है। आज समर्थन मूल्य पर मिलेट्स की खरीद करने वाला छत्तीसगढ़ पहला राज्य है। कांकेर में अवनि आयुर्वेद ने 5000 टन क्षमता का मिलेट प्रसंस्करण केंद्र खोल्ला है, जो एशिया में सबसे बड़ा है। तात्पर्य यह कि किसान खुश है। पंद्रह साल सत्ता में रहे चांउर वाले बाबा यानि डॉ. रमन सिंह बघेल सरकार के खिलाफ कोई भी मोर्चा खोलने में विफल रहे हैं। कांग्रेस शहरों में किंचित कमजोर भले ही दिखे, लेकिन गांवों में उसके पांव मजबूत है और इसी के बूते सत्ता-दल सत्ता में वापसी का तूमार बांध रहा है। प्रदेश में जोगी कांग्रेस अपनी जमीन खो चुकी है। विधानसभा में श्रीमती रेणु जोगी उसकी इकलौती एमएलए हैं। अमित जोगी अपने पिता के जूतों में पांव डालने में नितांत विफल रहे हैं। उनका अतीत आज भी उनका पीछा कर रहा है। आगामी चुनाव जोगी कांग्रेस के लिये विसर्जन-वेला सिद्ध हो सकते हैं। लेकिन देखना दिलचस्प होगा कि अरविन्द नेताम और आप की सक्रियता कांग्रेस के वोट-बैंक को कितना कुतरती है। छत्तीसगढ़ में भाजपा के अजेय नेता बृजमोहन अग्रवाल को दायित्व सौंपकर पार्टी छत्तीसगढ़ में बखूबी मोर्चा बांध सकती थी, लेकिन शीर्ष नेतृत्व की अनदेखी ने वह मौका गंवा दिया है। बीजेपी की इस भूल-चूक में कांग्रेस के लिए चुनावी नफा सन्निहित है।
किसी भी सूबे में चले जाइये सर्वत्र होर्डिग की बाढ़ आई हुई है। बीते बरसों में होर्डिंग कल्चर पनपा हैं। इस मायने में हैदराबाद और रायपुर भोपाल से कही आगे हैं। करीब दो दशक पहले जनमे छत्तीसगढ़ में होर्डिंगों का वैभव देखते ही बनता है। इबारतें ध्यान खींचती है : भूपेश सरकार, भरोसे की सरकार, भूपेश है तो भरोसा है, नोनी (बिटिया) हो रही सशक्त, पूरा हुआ वादा, बिजली बिल आधा, हमने रखा बेटियाँ का ध्यान, 50,000 का कन्यादान, 56 महिने का काल- असंभव को किया संभव, मुख्यमंत्री दाई दीदी योजना, 727 स्वामी आत्मानंद स्कूल, मुख्यमंत्री शहरी स्लम योजना, अस्पताल पहुंचा आपके द्वार इत्यादि उत्तर में बीजेपी की होर्डिंग है.. अऊ नहिं सहिबो, बदल बो.. बदलबो, बदलबे।
सात बार एमएलए रहे मप्र के मंत्री सत्यनारायण शर्मा कहते है- किचित एंटी इन बेसी है और कहीं कहीं प्रत्याशियों से नाराजगी भी, लेकिन कुल जमा कांग्रेसी मिजाज के छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की स्थिति मजबूत है। बात सही है, लेकिन काडर और फंड के मान से बीजेपी मजबूत है यानि यही कि यह इश्क नहीं आसां…

( डॉ. सुधीर सक्सेना देश की बहुचर्चित मासिक पत्रिका ” दुनिया इन दिनों” के सम्पादक, देश के विख्यात पत्रकार और हिन्दी के लोकप्रिय कवि- साहित्यकार हैं। )

@ डॉ. सुधीर सक्सेना, सम्पर्क- 09711123909

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