कोरबा : नियम विरुद्ध गिरफ्तारी पुलिस की गलती, 2 लाख क्षतिपूर्ति देने उच्च न्यायालय का आदेश

कबाड़ व्यवसाय से जुड़े 2 व्यक्तियों को कोरबा के तत्कालीन सीएसईबी चौकी प्रभारी कृष्णा साहू ने गिरफ्तार कर रिमांड पर जेल भेजा था। इस कार्यवाही से आहत होकर प्रार्थियों ने हाईकोर्ट की शरण ली थी। जिसपर निर्णय देते हुए हाईकोर्ट ने यह माना कि पुलिस ने नियमों के खिलाफ कार्यवाही की है. कोर्ट ने प्रार्थियों को क्षतिपूर्ति के तौर पर 2 लाख रुपये देने का आदेश शासन को दिया। साथ ही भविष्य में इस तरह की घटना ना दोहराने की पुलिस को हिदायत दी है।

बिलासपुर/कोरबा। जिले के दो कबाड़ व्यवसायियों के गिरफ्तारी के मामले में पुलिस की कार्यवाही को गलत ठहराते हुए छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने दोनों याचिकाकर्ताओं के पक्ष में फैसला देते हुए राज्य शासन को उन्हें 1-1 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया है। चीफ जस्टिस की बेंच ने क्रिमिनल प्रोसीजर कोड की धारा 41(1) डी की व्याख्या करते हुए याचिकाकर्ता को क्षतिपूर्ति प्रदान की है। साथ ही यह टिप्पणी की है कि पुलिस और जुडिशल मजिस्ट्रेट गिरफ्तारी और जमानत देने के प्रावधानों का पालन करें।

न्यायालय ने आदेश की कॉपी को रजिस्ट्रार जनरल के माध्यम से राज्य के समस्त ज्यूडीशल मजिस्ट्रेट, डीआईजी, आईजी व पुलिस अधीक्षकों को भेजने के भी निर्देश दिए हैं, ताकि भविष्य में इस प्रकार की गलत कार्यवाही की पुनरावृति ना हो।

क्या है मामला

कोरबा के सिटी कोतवाली थाना क्षेत्र अंतर्गत सीएसईबी चौकी प्रभारी सब इंस्पेक्टर कृष्णा साहू ने 20 फरवरी 2021 को दो कबाड़ व्यवसाई मुकेश साहू व आशीष मैती को गिरफ्तार कर ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया था और पुलिस रिमांड की मांग की थी। ज्यूडिशल मजिस्ट्रेट ने 5 मार्च 2021 तक की पुलिस रिमांड स्वीकृत करते हुए दोनों व्यवसायियों की जमानत रद्द कर दी थी।

तत्पश्चात दोनों व्यवसायियों ने उच्च न्यायालय में जमानत आवेदन पेश किया था जहां से उन्हें जमानत प्राप्त हुई थी। जमानत के साथ ही दोनों व्यवसायियों ने एक याचिका भी प्रस्तुत की थी जिसमें कहा गया कि पुलिस ने मनमानी कार्यवाही करते हुए अवैधानिक ढंग से उन्हें गिरफ्तार किया है। चोरी का सामान रखने व विक्रय करने का आरोप लगाकर बिना वारंट के ही उन्हें गिरफ्तार किया गया। दोनों व्यवसाईयों ने पुलिस पर मानसिक व शारीरिक प्रताड़ना का आरोप लगाते हुए 5-5 लाख रुपये क्षतिपूर्ति प्रदान करने का निवेदन याचिका में किया था जिस पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस की बेंच ने याचिकाकर्ताओं के पक्ष में फैसला सुनाते हुए पुलिस की कार्यवाही को गलत करार दिया तथा याचिकाकर्ताओं को 1-1 लाख की क्षतिपूर्ति प्रदान की। क्षतिपूर्ति राशि को 30 दिवस के भीतर ही याचिकाकर्ताओं को प्रदान करने का निर्देश भी आदेश में उल्लेखित है।

न्यायालय का निर्णय राज्य के लिए मिसाल

उच्च न्यायालय ने याचिका में उल्लेखित बातों का संज्ञान लेते हुए यह माना कि इस मामले में संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन हुआ है। उच्च न्यायालय ने राज्य के सभी मजिस्ट्रेट और पुलिस प्रशासन के आला अधिकारियों को आदेश की कॉपी भिजवा उन्हें क्रिमिनल प्रोसीजर कोड की धारा 41(1) डी अंतर्गत नियमानुसार कार्यवाही करने की हिदायत दी है। साथ ही भविष्य में इस प्रकार की अवैधानिक कार्यवाही की पुनरावृत्ति ना हो इस बात का भी ध्यान रखने के निर्देश दिए हैं।

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